प्रकरण के अनुसार पाली के भलावतों का वास निवासी नेमीचंद देवड़ा की पत्नी ने श्रीराम यूनियन फाइनेंस से एक करोड़ रुपए का लोन लिया था। इस लोन के तहत उनकी पत्नी का एक करोड़ रुपए का बीमा श्रीराम लाइफ इंश्योरेंस से किया गया। कुछ समय बाद श्रीमती देवड़ा की कैंसर से मृत्यु हो गई। नेमीचंद देवड़ा ने क्लेम लगाया तो इंश्योरेंश कम्पनी ने यह कहते हुए खाजिर कर दिया कि श्रीमती देवड़ा ने बीमा पॉलिसी प्राप्त करते समय अपने मेंबर एनरोलमेंट कम डिक्लेरेशन फार्म में अपनी पूर्व की बीमारी ब्रेस्ट कैंसर के संबंध में महत्वपूर्ण तथ्य छिपाते हुए बीमा पॉलिसी प्राप्त की है। अत: बीमित द्वारा बीमा की संविदा का उल्लंघन किया गया है।
इस पर नेमीचंद देवड़ा ने स्थाई लोक अदालत में आवेदन किया। अदालत ने भी देवड़ा की दावा खारिज कर दिया। अदालत ने बीमा कम्पनी श्रीराम लाइफ इन्श्योरेंश कम्पनी के अधिवक्ता आलोक डोभाल के तर्कों से सहमत होते हुए अपने पंचाट में कहा कि बीमा धारक ने बीमा का अनुबंध करते समय प्रस्तुत मेंबर एनरोलमेंट कम डिक्लेरेशन फार्म में पूर्व बीमारी का उल्लेख नहीं किया, जो महत्वपूर्ण तथ्य है, जिसके आधार पर बीमा करने वाली कम्पनी का निर्णय प्रभावित हो सकता था। इसी आधार पर बीमा अधिनियम, 1938 की धारा 45 में दी गई शक्तियों के अनुसार तीन वर्ष की अवधि के भीतर बीमा को निरस्त किया गया है और क्लेम को अस्वीकार किया गया है।