पुरानों’ पर ही विश्वास जताया जाए या फिर इस बार ‘नए-नवेले’ पर करें विश्वास। मारवाड़ जंक्शन विधानसभा क्षेत्र 1998 के चुनाव तक खारची विधानसभा क्षेत्र के नाम से ही जाना जाता रहा है। परिसीमन के बाद 2008 में खारची विधानसभा क्षेत्र का नाम मारवाड़ जंक्शन विधानसभा क्षेत्र हो गया, तो देसूरी विधानसभा सीट खत्म होने के साथ ही इसका भी अधिकांश हिस्सा इसके हिस्से में आ गया। यहां भाजपा से केसाराम चौधरी पांचवीं बार चुनाव मैदान में हैं। केसाराम को 1998 में भाजपा ने यहां पहली बार मैदान में उतारा था। वे 2003 में उतरे, लेकिन जीत की बाजी कांग्रेस प्रत्याशी खुशवीरसिंह के हिस्से आई। हालांकि, पिछले दो चुनावों 2008 व 2013 में केसाराम ही विधानसभा में पहुंचे। अब केसाराम पुराने राजनीतिक अनुभव व कार्यकर्ताओं के बूते अपने गढ़ को बचाने चुनाव मैदान में डटे हुए हैं। इस बार जातिगत वोटों के धु्रवीकरण के साथ ही पार्टी के ही बागी के चुनाव मैदान में ताल ठोकने से डगर जरूर कठिन है।
इधर, कांग्रेस ने जसाराम राठौड़ के रूप में नया चेहरा तो उतारा, लेकिन वह भाजपा के जातिगत वोट बैंक में तो सेंधमारी कर रहे हैं। साथ ही कांग्रेस के परम्परागत वोट बैंक का भी सहारा मिल रहा है। रानी क्षेत्र से जुड़े होने से जसाराम की उस क्षेत्र में स्थिति ज्यादा मजबूत दिखाई पड़ रही है। प्रवासियों के बूते भी वे खुद को मजबूत मान रहे हैं। 2003 के चुनाव में सोजत विधानसभा से जीतकर मंत्री रहे लक्ष्मीनारायण दवे भी बागी होकर ताल ठोक चुके हैं। परिसीमन के बाद मारवाड़ जंक्शन विधानसभा क्षेत्र में सम्मिलित हुई सोजत क्षेत्र की करीब 13 पंचायतों में अच्छी पैठ के साथ ही विकास के दावों के नाम पर इन्होंने भाजपा प्रत्याशी की मुश्किलें बढ़ा दी है। दवे को उनका भी साथ मिल रहा है, जो केसाराम से खफा हैं। इधर, इसी विधानसभा से 2003 में चुनाव जीत चुके खुशवीरसिंह ने इस बार टिकट नहीं मिलने पर बगावत काझंडा उठा लिया है। जातिगत वोट और जोजावर क्षेत्र में प्रभाव के बूते वे नैया पार करने की जुगत में हैं। खुशवीरसिंह ने कांग्रेस प्रत्याशी की राह में कांटे बिछा दिए हैं। 2008 में तो वे महज 1782 वोटों से ही हारे थे। ऐसे में इस बार रोमांचित करने वाला परिणाम आएगा।
स्वच्छ छवि जरूरी
वोट दूंगी।
मीनाक्षी मालवीय, गृहिणी
केसाराम चौधरी, भाजपा
ताकत: मारवाड़ क्षेत्र में तीन बार विधायक होने से जाना-पहचाना चेहरा, जातिगत आधार, किसानों में पकड़, सहज उपलब्धता
कमजोरी: पार्टी के परम्परागत वोटों में सेंध, लक्ष्मीनारायण दवे की बगावत के कारण पार्टी मतों में बंटवारलक्ष्मीनारायण दवे, निर्दलीय
ताकत: जाना-पहचाना चेहरा, परिसीमन के बाद मारवाड़ जंक्शन में सम्मिलित हुई सोजत की 13 पंचायतों में पकड़, पूर्व मंत्री रहते करवाए गए विकास कार्यों का फायदा, एंटी-इंकम्बेंसी का फायदा।
कमजोरी: दो चुनावों में टिकट नहीं मिलना, लम्बे समय से राजनीतिक सक्रियता में कमी, बगावत के कारण मतों में बंटवारा
जसाराम राठौड़, कांग्रेस
ताकत: पार्टी का परम्परागत वोट बैंक, सीरवी व मुस्लिम मतों का सहारा, रानी क्षेत्र का फायदा, मिलनसारिता, कार्यकर्ताओं की सुदृढ़ टीम,
कमजोरी: मारवाड़ विधानसभा क्षेत्र के दूसरे किनारे के क्षेत्र की पंचायतों में कम प्रभाव, खुशवीरसिंह के बागी होने से वोटों का बंटवारा
जसाराम राठौड़, कांग्रेस
ताकत: पार्टी का परम्परागत वोट बैंक, सीरवी व मुस्लिम मतों का सहारा, रानी क्षेत्र का फायदा, मिलनसारिता, कार्यकर्ताओं की सुदृढ़ टीम,
कमजोरी: मारवाड़ विधानसभा क्षेत्र के दूसरे किनारे के क्षेत्र की पंचायतों में कम प्रभाव, खुशवीरसिंह के बागी होने से वोटों का बंटवारा
बोलीं जनता, निर्दलीयों से मिला विकल्प
यहां फ्लोराइड के दंश के साथ ही मारवाड़ जंक्शन कस्बे में दो-दो रेलवे फाटकों की बड़ी समस्या है। चतुष्कोणीय संघर्ष में उलझे मतदाता खुलकर कुछ नहीं बोलते। मारवाड़ जंक्शन में चुनावी चर्चा में व्यस्त चंदन तिवारी का कहना था इस बार चुनने के लिए कई विकल्प हैं। क्षेत्र की ज्वलंत समस्याओं का समाधान जरूरी है। नवीन सुनारिया बोले इस बार तो विकास के नाम पर ही वोट दिया जाएगा, जो कहीं नहीं है। रमेश घांची ने गुस्सा निकाला, जनता ने तो भाजपा और कांग्रेस दोनों को मौका दिया लेकिन, काम कुछ नहीं हुआ। गजेन्द्रसिंह बोले, रेलवे फाटक, अंडरब्रिज के साथ ही चिकित्सा सम्बन्धी समस्याएं हैं। इस बार तो मतदाता कुछ नया ही करेंगे।