टोपी वाले महकमे में तीन-चार ठिकाणों के ठिकाणेदार छुट्टियों पर है। उनकी जगह मुख्यालय से साहब लोगों को भेजा। कप्तान ने यह भी कोहनी के गुड़ लगा दिया कि बढिय़ा काम करोगे तो फल भी मिलेगा, फिर क्या, जो दो-पांच दिन के लिए गए, वे लग गए पैठ जमाने में। काम करना भी चाहिए, अच्छा है, लेकिन भिक्षु स्थल नगरी में लगाए गए तीन स्टार वाले साहब तो ऐसा काम करने लगे कि मानो उनको तो स्थाई ही कर दिया हो। ठिकाणे का रंग-रोगन, साफ-सफाई के काम चालू, बस ठिकाणा चमक जाना चाहिए। बात भी फैला दी कि पहले वाले साहब ने कुछ नहीं किया। किसी ने सुरसुरी छोड़ दी, नए तीन स्टार वाले साहब को भी सब जानते हैं। भले ही हाथ-पांव मारे, कुछ हाथ नहीं आएगा।
साल का अंतिम माह है, कामकाज ठीकठाक है। नए मुकदमे जरूरी है तो करो वरना रहने दो, कुछ ऐसा ही इन दिनों ठिकाणों में चल रहा है। लम्बित मामलों का चक्कर जो हैं, सभी आनन-फानन में फाइलें निपटाने में लगे हैं, जैसे भी हो, लम्बित फाइलें निपट जाए। इस फेर में परिवादी जरूर चक्कर लगा रहे हैं, उनको सब भूल गए। सभी फाइलों में पेन घिस रहे हैं, लेकिन आम आदमी चक्कर लगा रहा है। रही-करी कसर चोरों ने निकाल दी। बात सीधी सी है, जनता का काम पड़ जाए तो जरूरी हो तो ठिकाणों में जाना, वरना घर पर ही ठीक है, सुनने वाला भगवान ही है।