देश के प्रधानजी भले ही कांग्रेस मुक्त भारत का नारा दे रहे हैं। कपड़ा नगरी में ये नारा पूरी तरह से बुलंद नहीं हुआ। यहां कांग्रेस-भाजपा में अभी भी भाइचारा बना हुआ है। हाल ही में कचरा निस्तारण करने वाले प्लांट के उद्घाटन समारोह में ऐसा सद्भावी नजारा दिखाई दिया। यह बात और है कि शहरी निकाय के आयोजन पर कांग्रेस की पूरी छाप थी। प्लांट का अस्तित्व शहरी सरकार के मुखिया की भागदौड़ का ही नतीजा है। ऐसे में श्रेय कोई और ले, इससे पहले ही वे सक्रिय हो गए। सूबे में विपक्ष की सरकार। इसलिए समझौता करना ही ठीक समझा। मंत्रीजी के हाथों फीता कटवाया और श्रेय खुद ले गए। मंत्रीजी से वाहवाही बटोरी सो अलग।
कपड़ा नगरी में शहरी सरकार के मुखिया की लॉटरी ओबीसी महिला के नाम आरक्षित होने के बाद से ही ‘श्रीमती’ सुर्खियों में है। ओबीसी वर्ग के कई जनप्रतिनिधि अब ‘श्रीमती’ नाम की माला जपने लगे हैं। कइयों ने पार्टी पदाधिकारियों के सामने नाम चला दिया है। कई अंदर ही अंदर माहौल बना रहे हैं। यूं तो श्रीमती का नाम जपने की कभी आदत नहीं रही। सियासत ने यह भी सिखा दिया है। सालों से सियासी परिदृश्य से गायब एक ‘श्रीमतीजी’ भी अचानक सक्रिय हो गई। कौन-सी श्रीमती भाग्यशाली होगी, यह तो वक्त ही बताएगा।