हाल ही में केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने 450 दुर्लभ रोगों के उपचार को लेकर राष्ट्रीय नीति जारी की है। पहली बार वर्ष 2017 में नीति तैयार की गई थी। इसकी समीक्षा के लिए वर्ष 2018 में एक समिति बनाई गई। आयुष्मान भारत योजना के तहत दुर्लभ रोगों के इलाज के लिए 15 लाख तक देने का प्रस्ताव है। इसमें स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय अम्ब्रेला योजना, राष्ट्रीय आरोग्य निधि के तहत वित्तीय सहायता प्रदान करेगा।
महज पांच प्रतिशत से भी कम बीमारियों के उपचार के लिए थैरेपी है। दुर्लभ बीमारियों की तीन श्रेणियां है। इनमें एक बार उपचार के लिए उत्तरदायी रोग, ऐसे रोग जिनमें लम्बे समय तक उपचार की जरूरत होती है, लेकिन लागत कम है। दूसरे ऐसे रोग जो दीर्घकाल तक उपचार वाले है, उनकी लागत भी उच्च है। इसके अलावा बच्चों में होने वाले दुर्लभ रोग भी है। गर्भावस्था के 20 सप्ताह से पहले प्री-नेटल जांच होनी चाहिए। जिससे अन्य बच्चों में दुर्लभ रोग की सम्भावना हो तो रोका जा सके।
पाली। रेयर डिजीज 80 प्रतिशत तक आनुवांशिक बीमारी है। एंजाइम की कमी और जीन की समस्या के कारण होती है। इनकी पहचान करना मुश्किल होता है। देश में करीब दो हजार बच्चे इन दुर्लभ बीमारियों से पीडि़त है। यह बीमारियां त्वचा, मस्तिष्क, कंकाल, हृदय, तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करते हैं। –डॉ. एमएच चौधरी, प्रोफेसर, मेडिकल कॉलेज, पाली
डूयेकेनी मस्कुलर डिस्ट्रॉफी : बच्चा खड़ा नहीं हो सकता और चल नहीं सकता है। ग्रसित व्यक्ति 25 साल से अधिक नहीं जी सकता।
अहरलर डेनोल्स सिंड्रोम : अंगुंलिया व हाथ आदि पीछे की तरफ पूरी तरह मुड़ जाते हैं। त्वचा खींचने पर रबर की तरह हो जाती है।
लाइसोसामल स्टोरेज डिस्टॉर्डर: यह आनुवांशिक मेरोपोलिक बीमारी है। जिसमें एंजाइम की कमी होती है।