कुंभकारों ने बताया कि इसके लिए चिकनी काली मिट्टी दूर तालाबों से लानी पड़ती है। इसके लिए उन्हें काफी मेहनत करनी पड़ती है। पिछले कुछ वर्षों से मिट्टी के बने दीपको की मांग बढऩे से अच्छी आमदनी होने की उम्मीद बढ़ी है।
महंगाई के इस दौर में अब पुश्तैनी धन्धे से जुड़े रहना मुश्किल हो रहा है, लेकिन पिछले तीन-चार साल से मिट्टी के दीपकों की मांग बढऩे से इस बार तो पिछले साल से अधिक दीपक तैयार किए जा रहे हैं। दिवाली पर दीपकों की अधिक ब्रिकी होने से पहले प्रतिदिन चाक चलाकर मिट्टी के दीपक बनाए जा रहे हैं।
जगदीश प्रजापत, कुंभकार बाबरा