रेगिस्तान के जहाज को लेकर आजीविका तलाशने वाले ढाणीवासियों का ऊंट पालन के प्रति धीरे-गांव में वर्तमान में 400 की संख्या में ऊंट हैं। ग्रामीण बताते हैं कि 50 वर्ष पूर्व इसी गांव में 40 घरों की बस्ती में 5000 से अधिक ऊंट थे। निरंतर बढ़ रही समस्याओं के कारण ऊंटों की संख्या घट रही है। अब मात्र 30 से 35 परिवार इस व्यवसाय से जुड़े हुए हैं। ऊंटपालक ऊंकारराम देवासी और घेवरराम ने बताया कि पूर्व छह माह का टोडिय़ा (ऊंट का बच्चा) 15 से 20 हजार रुपए में बिकता था। अब इसके स्थान्तारण पर रोक के बाद पुष्कर के मेले में 3 से4 वर्ष के ऊंट की कीमत मात्र 4 हजार रुपए आंकी जाती है। ऊंटों की चराई की समस्या, चारा भूमि में अतिक्रमण, विलुप्त होती घास, अरावली की तलहटी में वन विभाग का प्रतिबंध, ऊंटों की गोचर में चराई पर मनाही सहित कई समस्याओं के कारण चरवाहों को दिक्कत आ रही है। ढाणी निवासी जवानाराम देवासी व पूर्व उपसरपंच ऊंकारराम शेखावत ने बताया कि सरकार द्वारा पूर्व में मादा ऊंट व बच्चे को टैग लगवाकर 10 हजार की राशि तीन किश्तों में ऊंटपालक को मिलती थी, जो अब आवश्यक कागजी खानापूर्ति किए जाने के बाद भी आदेशों के फेर में अटकी पड़ी है।
अन्नजी की ढाणी मात्र एक व्यक्ति सरकारी सेवा में रहा है। पूर्व वायु सैनिक जवानाराम देवासी अब सेवानिवृत्त हो चुके है। अब गांव में सीनियर स्कूल है लेकिन क्रमोन्नत होने के बाद स्थानीय प्रतिनिधियों और जिम्मेदारों की उदासीनता के कारण विद्यालय में भौतिक संसाधनों में किसी प्रकार का विस्तार नहीं हुआ है। यहां पांच कमरों में 12 कक्षाएं चलती हैं।
प्रधानमंत्री ग्राम सडक़ योजना के तहत दो दशक पहले सडक़ मार्ग बना। गांव में सरकारी या निजी किसी भी प्रकार की बसों का संचालन नहीं होने से गांव से बाहर जाने के लिए जोजावर तक पैदल जाना पड़ता है। वहा से बस मिलती है। –पपलीदेवी, वार्डपंच