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पाली

भामाशाहों के रूप में पहचाना जाने वाला पाली जिला लोगों का जीवन बचानें में भी है आगे…..यहां पढे़

– जागरूकता के चलते अब खुशियों के पलों को मनाने के लिए भी हो रहा रक्तदान
 

पालीJun 14, 2018 / 12:55 pm

rajendra denok

world blood donor day

भामाशाहों के रूप में पहचाना जाने वाला पाली जिला लोगों का जीवन बचानें में भी है आगे…..यहां पढे़

यह है हमारे देश में रक्तदान की स्थिति

– 59 फीसदी रक्तदान ही है स्वैच्छिक हमारे देश में
– 32 फीसदी स्वैच्छिक रक्तदान दिल्ली में

– 1 करोड़ यूनिट की जरूरत है प्रतिवर्ष भारत में
– 75 लाख यूनिट ही उपलब्ध हो पाता है रक्त
जिले की स्थिति

– जिले में 700 से ज्यादा रक्तदाता तैयार रहते हैं रक्तदान के लिए

– प्रतिदिन 30 से 50 यूनिट औसत रक्त की आवश्यकता

पाली. भामाशाहों के रूप में पहचाना जाने वाला हमारा जिला लोगों का जीवन बचाने में भी सबसे आगे है। इसका सबसे बडा उदाहरण जिले में हर समय तैयार रहने वाले 700 से ज्यादा रक्तदाता है। यह रक्तदाता मरीज की जान बचाने के लिए किसी भी समय व किसी भी परिस्थिति में रक्तदान का धर्म निभाने अस्पताल पहुंच जाते हैं। यही कारण है कि जिला मुख्यालय पर आने के बाद किसी भी मरीज को रक्त की आवश्यकता पडऩे पर ज्यादा संघर्ष नहीं करना पड़ता है। समय के साथ रक्तदान जैसे पुनित कार्य को लेकर लोगों की सोच में काफी बदलाव आया है। अब लोग अपने जन्मदिन व अन्य खुशी के पलों पर रक्तदान कर मरीजों की मदद कर रहे हैं।
इस लिए मनाया जाता है रक्तदाता दिवस

हर साल 14 जून को रक्तदाता दिवस मनाया जाता है। 1997 में सौ प्रतिशत स्वैच्छिक रक्तदान की नीति को बढ़ावा देने के लिए 124 देशों में यह कार्यक्रम प्रारंभ किया गया। यह दिन कार्ल लेंडस्टाइनर नामक अपने समय के विख्यात ऑस्ट्रियाई जीव विज्ञानी और भौतिकीविद् की याद में उनके जन्मदिन के अवसर पर तय किया गया है। वर्ष 1930 में शरीर विज्ञान में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित कार्ल को श्रेय जाता है कि उन्होंने रक्त में अग्गुल्युटिनिन की मौजूदगी के आधार पर रक्त के अलग-अलग रक्त समूहों ए,बी,ओ में वर्गीकरण कर चिकित्सा विज्ञान में अहम योगदान दिया।
रक्तदान में उत्साह से पाली में स्थिति शानदार

रक्तदान के मामले में पाली स्थिति बहुत अच्छी है। पाली शहर में रक्तदाताओं का उत्साह देखते ही बनता है। हालांकि देश में हाल अच्छे नहीं है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानक के तहत भारत में सालाना एक करोड़ यूनिट रक्त की जरूरत है। लेकिन उपलब्ध 75 लाख यूनिट ही हो पाता है। भारत की आबादी भले ही सवा अरब पहुंच गई हो, रक्तदाताओं का आंकड़ा कुल आबादी का एक प्रतिशत भी नहीं है।
शहर के रक्तदान में इनका योगदान

जिला अस्पताल में होने वाले रक्तदान में शहर के नौशाद खान, नियाकत गौरी, मेहबूब पीलू, गणपत मेघवाल, प्रेमचंद, नोरतनमल, मेहबूब टी, दीपक सोनी, राजुराम हरियाल, देवीदास, श्याम दमामी, संदीप सोनी, मोहन प्रजापत, दीपक शर्मा, अंकित बोगडिया, नरेश बोहरा, दिनेश राजपुरोहित सहित कई लोग है जिन्होंने मरीजों को समय पर रक्तदान कर उनका जीवन बचाया।
भ्रांतियों से बचें

– रक्तदान को लेकर समाज में कई भ्रांतियां है, लेकिन आमजन को इससे बचना चाहिए। शरीर में रक्त बनने की प्रक्रिया नियमित है और रक्तदान से कोई भी नुकसान नहीं होता। रक्तदान के सम्बंध में चिकित्सा विज्ञान कहता है, स्वस्थ व्यक्ति जो 45 किलोग्राम से अधिक वजन का हो और जिसे एचआईवी, हेपेटाइटिस बी या हेपेटाइटिस सी जैसी बीमारी न हुई हो, वह रक्तदान कर सकता है। एक बार में जो 350 मिलीग्राम रक्त दिया जाता है। उसकी पूर्ति शरीर में चौबीस घंटे के अंदर हो जाती है और गुणवत्ता की पूर्ति 21 दिनों के भीतर हो जाती है।
– डॉ. रविंद्रपालसिंह, बांगड़ मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल

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