डीएसपी बनने के पांच साल बाद वर्दी में जब वह खेत पहुंचे तो मां मवेशियों के लिए चारा काट रही थीं। उनके कंधे पर लगे सितारे देखकर मां आंसू नहीं रोक पाईं। कहा- ऐ गरीबी… देख तेरा मुंह काला हो गया, तू मेरी दहलीज पर बैठी रही मेरा बेटा पुलिसवाला हो गया। उनका यह डायलॉग काफी वायरल भी हुआ था।
बेटे संतोष बताते हैं कि मां 55 साल की हो गई हैं। बीते 25 साल से अस्थमा से पीड़ित हैं। इसके बाद भी वे अभी भी मवेशियों के लिए खुद ही चारा काटती हैं और सीजन में तेंदूपत्ता तोड़ती हैं। वर्ष 2000 में उनके फेफड़ों में पानी भर जाने और समय पर इलाज नहीं मिलने से पस बन गई थी, जिससे सतना के निजी अस्पताल में ऑपरेशन का खर्च करीब 50 हजार का खर्च आया था। जिस परिवार के सदस्यों के लिए दो जून के रोटी की व्यवस्था मुश्किल से हो रही थी, वहां इतनी बड़ी राशि की व्यवस्था करने में घर का सबकुछ बिक गया। पापा को कर्ज लेना पड़ा। 10 हजार के कर्ज का भी 25 हजार रुपए ब्याज देना पड़ रहा था। संतोष बताते हैं कि परिवार में इतनी गरीबी थी कि कभी मां को महिलाओं वाले शौक करते नहीं देखा। पापा राजमिस्त्री का काम करते और मां खेतों में काम करतीं। गरीबी के कारण ही इकलौती बहन का बाल विवाह करना पड़ा था। मां की तरह ही पापा ने भी पढ़ाई नहीं की है।
डीएसपी संतोष बताते हैं कि मां कभी स्कूल नहीं गईं, इसके बाद भी बच्चों की पढ़ाई को लेकर बेहद सख्त थीं। वे बताते हैं कि एकबार सुबह 4 बजे उन्हें पढ़ाने के लिए जगाकर कार्तिक स्नान करने चली गईं थीं। वे अटारी में चिमनी जलाकर रजाई ओढ़कर पढ़ाई कर रहे थे, इसी दौरान उनकी नींद लग गई और चिमनी में उनके बाल भी जल गए। वे डर रहे थे कि मां को कैसे बताएं कि पढ़ाई करते हुए सो गए थे। मां को पता चलने पर उन्होंने ऊपर से पिटाई लगा दी। इसी तरह एक बार पढ़ाई छोड़कर क्रिकेट खेलने चला गया था तो मां ने नींबू के पेड़ से बांध दिया था। बाद में उनके किसी काम में लग जाने के बाद दादी ने छुड़ाया था। वे नियमों की इतनी सख्त हैं कि अगर उनके बेटों के हितों की बात हो तो वे भगवान से भी लड़ जाएं। मंत्री बृजेंद्र प्रताप सिंह और कलेक्टर के गांव में दौरे के दौरान भी मां ने उनसे बगैर झिझके अपनी बात रखी।