जिले में शिक्षा के क्षेत्र में भी तकनीक की कमी का असर यहां के युवाओं की क्षमताओं पर पड़ रहा है। यहां अभी तक बीएए, बीएससी और बीकॉम जैसी परंपरागत विषयों की शिक्षा दी जा रही है। यहां एक भी इंजीनियरिंग कॉलेज नहीं है। पशु चिकित्सा महाविद्यलय की मांग भी लंबे समय से की जा रही है। पैरामेडिकल से संबंधित विषयों पर भी पढ़ाई नहीं हो पा रही है। यहां तक कि जिले के सबसे बड़े छत्रसाल कॉलेज में कम्प्यूटर लैब नहीं है। चिकित्सा क्षेत्र में भी तकनीक का व्यापक अभाव देखने को मिल रहा है। सोनोग्राफी जैसी मूलभूत सुविधा करीब 10 माह से बंद पड़ी है। अल्ट्रासाउंड की व्यवस्था नहीं है। ज्यादातर मामलों में डॉक्टर आधुनिक मशीनों की तकनीक का सहारा नहीं मिल पाने के कारण समुचित इलाज नहीं कर पाते हैं। हम उनकी योग्यता पर ही अंगुली उठाने लगते हैं।
पन्ना डायमंड एसोसिएशन के सचिव सतेंद्र जडिय़ा ने बताया, हर हीरे में 57 फलक होते हैं। सभी फलकों के अलग कोण होते हैं। हर कोण का मेजरमेंट मैन्युअल ही करना पड़ता है। इसके अलावा हीरे की कटिंग के दौरान कारीगर की व्यक्तिगत क्षमता के कारण भी अंतर आने की आशंका बनी रहती है। पन्ना में अभी भी पुरानी तकनीक के आधार पर ही हीरे की कटिंग और पॉलिशिंग की जाती है। हीरे की कलर ग्रेडिंग, क्लीयरिटी, कैरेट वेट और कट सभी वर्क मैनुअल ही होते हैं। इससे हीरे की 4 सी क्वॉलिटी अंतरराष्ट्रीय मानकों के आधार पर संभव नहीं हो पाती है। इसी कारण पन्ना का हीरा कारोबार धीरे-धीरे पिछड़ता गया। अब हालात यह हैं कि हीरा कटिंग पॉलिशिंग के ज्यादातर कारखानों में ताला लग गया है। लोग अपने ही घरों में काम कर किसी तरह कारोबार चला रहे हैं।
आइ मेजरमेंट में तराशे गए हीरे और कम्प्यूटर मेजरमेंट में तराशे गए हीरे में अंतर होता है। कम्प्यूटरीकृत यूनिट मेंं गैलेक्सी मशीन के सॉफ्टवेयर के आधार पर हीरे का ३डी इमेज लेकर हीरे की कटिंग प्लानिंग तैयार करती है। इसमें पहले से ही बताया जाता है कि हीरे में किस एंगल से कट लगाने और कितना कट लगाने पर हीरे में अधिकतम शुद्धता, अधिकतम वजन और गुणवत्ता मिलेगी। इससे हीरे की कटिंग कई गुना आसान हो जाती है। साथ ही हीरों की सर्वोच्च गुणवत्ता प्राप्त की जा सकती है। कम्प्यूटर से तैयार हीरे में प्रत्येक फलक का प्रत्येक कोण स्टैंडर्ड साइज होता है।
यूसुफ बेग, अध्यक्ष पत्थर खदान मजदूर संघ
सतेंद्र जड़िया, सचिव पन्ना डायमंड मर्चेंट एसोसिएशन