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पटना

कितनी सीटें दोगे अभी बताओ, तेज हुई राजनीति, बिहार के नेताओं को ज्यादा जल्दी

बिहार में तकरार तेज हो गई है, यहां यही लग रहा है कि एनडीए को बचाने के लिए भाजपा को ही त्याग करना पड़ेगा, उसकी सीटों की संख्या घटना तय है।

पटनाDec 19, 2018 / 06:06 pm

Gyanesh Upadhyay

भाजपा को ही त्याग करना पड़ेगा

भाजपा को ही त्याग करना पड़ेगा

पटना। लोकसभा चुनाव 2018 को अभी तीन महीने से भी ज्यादा का समय है, लेकिन बिहार एक ऐसा राज्य है, जहां नेताओं को राजनीति में अपना हिस्सा सुनिश्चित करने की कुछ ज्यादा ही जल्दी है। वहां गठबंधन टूटने और गठबंधन बनने की ज्यादा जल्दी है।

रालोसपा नेता उपेन्द्र कुशवाहा को तीन सीटें नहीं मिलीं, तो वो एनडीए से बाहर चले गए और बाहर जाकर लोजपा को भडक़ा दिया है कि मनमाफिक सीटें मांगो और नहीं मिलें, तो एनडीए से बाहर आ जाओ। राजद, कांग्रेस और लोजपा के बीच महागठबंधन का जो सपना पल रहा है, उसमें लोजपा की भूमिका महत्वपूर्ण होगी। लोजपा भी राजनीति से प्रेरित हुई है। चिराग पासवान ने 31 दिसंबर तक का अल्टीमेटम दे दिया है। सात सीटें मांग रहे हैं, इतनी ही सीटें पिछले चुनाव में भी लोजपा को मिली थीं।

वर्ष 2014 के चुनाव में क्या हुआ था?
पिछले चुनाव में भाजपा 30 सीटों पर चुनाव लड़ी थी, 22 जीतने में कामयाब रही थी। लोजपा 7 सीटों पर लड़ी थी, 6 सीटों पर जीत मिली थी और लोजपा 3 सीटों पर लड़ी थी और तीनों में ही उसे जीत नसीब हुई थी।

अब क्या स्थिति बन रही है?
दो तरह की संभावना बताई जा रही है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के बीच जुलाई और अगस्त में ही मोटे पर तौर पर सीट शेयरिंग पर बात हो चुकी है। इस मीटिंग में जद-यू से गठबंधन की कीमत चुकाने के लिए अमित शाह तैयार हो गए थे।

बिहार में भाजपा को घाटा तय
वर्ष 2018 लोकसभा चुनाव में एनडीए भले जीत जाए, लेकिन बिहार में भाजपा को सीटों का नुकसान होना तय है। पिछले चुनाव में वह 30 पर लडक़र 22 जीती थी और इस बार 22 सीटों पर चुनाव लडऩा भी मुश्किल लग रहा है। किसी भी स्थिति में भाजपा 20 से ज्यादा सीटों पर चुनाव नहीं लड़ पाएगी। और अगर वह जद-यू से बराबरी के फॉर्मूले पर चुनाव लड़े, तब तो वह केवल 17 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। ऐसे में वर्ष 2014 के मुकाबले पांच सीटों का नुकसान तो भाजपा को अभी ही होता दिख रहा है।

जद-यू की राजनीति
जद-यू की कोशिश है कि वह उन्हीं सीटों पर लड़े, जहां एनडीए जीत सकता है। उसकी नजर उन सीटों पर भी है, जहां अभी भाजपा के सांसद हैं। गौर करने की बात है, उपेन्द्र कुशवाहा को पता था कि नीतीश कुमार अपने हिस्से की सीटें नहीं छोड़ेंगे, इसलिए वह भाजपा से ही सीटें छोडऩे की उम्मीद कर रहे थे और अब चिराग पासवान भी यही चाहते हैं।

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