वर्ष 2014 के चुनाव में क्या हुआ था?
पिछले चुनाव में भाजपा 30 सीटों पर चुनाव लड़ी थी, 22 जीतने में कामयाब रही थी। लोजपा 7 सीटों पर लड़ी थी, 6 सीटों पर जीत मिली थी और लोजपा 3 सीटों पर लड़ी थी और तीनों में ही उसे जीत नसीब हुई थी।
अब क्या स्थिति बन रही है?
दो तरह की संभावना बताई जा रही है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के बीच जुलाई और अगस्त में ही मोटे पर तौर पर सीट शेयरिंग पर बात हो चुकी है। इस मीटिंग में जद-यू से गठबंधन की कीमत चुकाने के लिए अमित शाह तैयार हो गए थे।
बिहार में भाजपा को घाटा तय
वर्ष 2018 लोकसभा चुनाव में एनडीए भले जीत जाए, लेकिन बिहार में भाजपा को सीटों का नुकसान होना तय है। पिछले चुनाव में वह 30 पर लडक़र 22 जीती थी और इस बार 22 सीटों पर चुनाव लडऩा भी मुश्किल लग रहा है। किसी भी स्थिति में भाजपा 20 से ज्यादा सीटों पर चुनाव नहीं लड़ पाएगी। और अगर वह जद-यू से बराबरी के फॉर्मूले पर चुनाव लड़े, तब तो वह केवल 17 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। ऐसे में वर्ष 2014 के मुकाबले पांच सीटों का नुकसान तो भाजपा को अभी ही होता दिख रहा है।
जद-यू की राजनीति
जद-यू की कोशिश है कि वह उन्हीं सीटों पर लड़े, जहां एनडीए जीत सकता है। उसकी नजर उन सीटों पर भी है, जहां अभी भाजपा के सांसद हैं। गौर करने की बात है, उपेन्द्र कुशवाहा को पता था कि नीतीश कुमार अपने हिस्से की सीटें नहीं छोड़ेंगे, इसलिए वह भाजपा से ही सीटें छोडऩे की उम्मीद कर रहे थे और अब चिराग पासवान भी यही चाहते हैं।