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पटना

भाजपा ने किया बड़ा त्याग, 5 सीट हारकर किया समझौता

पत्रिका ने पहले ही बता दिया था कि सीटों का बंटवारा – 17-17-6 रहेगा, लोजपा की नई जिद रामविलास पासवान की सीट राज्यसभा में सुनिश्चित करने के लिए थी।

पटनाDec 24, 2018 / 01:57 pm

Gyanesh Upadhyay

भाजपा का त्याग, नीतीश कुमार की परी

भाजपा का त्याग, नीतीश कुमार की परी

पटना। बिहार में भाजपा-जद-यू और लोजपा के बीच सीटों का जो समझौता हुआ है, उसके बारे में पत्रिका ने पहले ही प्रकाशित कर दिया था कि मोटे तौर पर भाजपा और जद-यू 17-17 सीटों पर चुनाव लड़ेगी और बाकी 6 सीटें लोजपा को दी जाएंगी। लोजपा ने हंगामा इसलिए किया, क्योंकि वह 7 सीटों पर चुनाव लडऩा चाहती थी, लेकिन अंतत: 72 वर्षीय नेता रामविलास पासवान को राज्यसभा भेजने के फैसले के साथ ही छह सीटों पर लोजपा मान गई। इस पूरे समझौते में भाजपा ने बहुत ज्यादा त्याग का परिचय दिया है।

भाजपा का त्याग, नीतीश कुमार की परीक्षा
पिछले लोकसभा चुनाव में 22 सीटें जीतने वाली पार्टी मात्र 17 पर चुनाव लड़ेगी, जबकि मात्र 2 सीटें जीतने वाली जनता दल यूनाइटेड 17 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। यह नीतीश कुमार की बड़ी जीत है, जबकि भाजपा की हार। वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में जब यूपीए की लहर थी, तब भी भाजपा बिहार में 20 सीटें जीतने में कामयाब रही थी, जबकि तब जनता दल-यू को 12 सीटों पर जीत मिली थी। बिहार की राजनीति में भाजपा का ग्राफ जदयू से ऊपर ही कहा जाएगा, लेकिन तब भी जदयू ने भाजपा से बड़ा त्याग करवा लिया है। अब यदि हार होती है, तो इस हार के लिए जदयू ही ज्यादा जिम्मेदार होगी। भाजपा ने गठबंधन की कीमत चुका दी है, जबकि देखना है कि नीतीश कुमार कैसे चुकाते हैं। नीतीश कुमार के लिए परीक्षा शुरू हो चुकी है। यदि अब वह भाजपा से गठबंधन तोड़ते हैं, तो उन्हें घोर अवसरवादी ही कहा जाएगा।

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विरोधियों को मिला जवाब
अभी दो दिन पहले रालोसपा के नेता उपेन्द्र कुशवाहा ने रामविलास पासवान को कहा था कि वे राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन से बाहर आ जाएं, क्योंकि भाजपा छोटी पार्टियों की दुश्मन है। वही उपेन्द्र कुशवाहा अब नरेन्द्र मोदी से पूछ रहे हैं कि 56 इंच का सीना कहां गया, नीतीश कुमार के आगे भाजपा ने घुटने टेक दिए और पासवान को भी फायदा हो गया।

भाजपा की नैतिक हार
भाजपा ने बिहार में गठबंधन बचाने के लिए जो त्याग किया है, उससे भाजपा राज्य में कमजोर ही होगी। अब उसे अपने पांच सांसदों का टिकट काटना है, जिसमें से एक कीर्ति आजाद निलंबित चल रहे हैं और दूसरे हैं शत्रुघ्न सिन्हा, जिनको फिर टिकट मिलना मुश्किल है। इन दो को छोड़ भी दें, तो पार्टी के भक्त अन्य 3 सांसदों के टिकट भाजपा को काटने पड़ेंगे। इसमें भी अगर नीतीश कुमार ने बाकी 17 सीटों में से किसी सीट पर अपने किसी प्रत्याशी को लड़ाने की जिद्द की, तो भी भाजपा को अपने ही किसी सांसद का टिकट काटना पड़ेगा। इस बार बिहार में भाजपा को गठबंधन बहुत भारी पडऩे वाला है। दूसरी ओर, एक खतरा यह भी है कि राजग की बिहार में हार हुई, तो नीतीश कुमार भाजपा पर ठीकरा फोडऩे में कसर नहीं छोड़ेंगे।

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आगे की चुनौती
भाजपा, जनता दल और लोजपा को सीटें भी तय कर लेनी चाहिए। कौन कहां से लड़ेगा, यह जितना जल्दी तय हो जाए, उतना अच्छा रहेगा। बिहार में चुनाव का इतिहास यह बताता है कि जो गठबंधन एकजुट होकर लड़ता है, उसे जीत हासिल होती है। जिस गठबंधन में ज्यादा नखरेबाजी होती है, वह हार जाता है।

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