इस बीच शेल्टर होम की दोनों महिलाओं की मौत के मामले में रहस्य गहरा गया है। दोनों महिलाओं को अस्पताल के रजिस्टर में भर्ती कराने का समय रात 9.26 बजे का दर्ज किया गया है जबकि पीएमसीएच के अधीक्षक डॉ राजीव रंजन प्रसाद का दावा है कि दोनों महिलाओं को जब एनजीओ की कर्मचारी बेबी कुमार सिंह अस्पताल लेकर पहुंची तब उनकी मौत हो चुकी थी। मेडिकल इमर्जेंसी में ड्यूटी डॉक्टर संजय कुमार ने रिपोर्ट में दोनों को मृत लाया गया बताया था। दोनों की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मौत के कारण का खुलासा नहीं हुआ है। शरीर पर बाहरी चोट भी नहीं बताई गई है। जिस समय पोस्टमॉर्टम हुआ उस वक्त पीएमसीएच में दो दारोगा और एक मजिस्ट्रेट तैनात थे। सवाल यह उठ रहा है कि दोनों दरोगा ने थानाध्यक्ष को सूचना क्यों नहीं दी। संचालिका मनीषा दयाल ने भी पुलिस को बयान देकर उलझा दिया है। उसने बताया कि शुक्रवार को हम साढ़े चार बजे होम पहुंचे और बीमार संवासिनियों को पांच बजे पीएमसीएच लेकर पहुंचे। सवाल है कि जब अस्पताल में लाने का दर्ज समय रात 7.26 बजे का है तो पांच घंटे तक ये संवासिनें कहां थीं। उधर, शेल्टर होम में कुल 74 संवासिनें हैं। इनमें बारह को छोड़ बाकी मानसिक रूप से विक्षिप्त हैं। पुलिस ने शुक्रवार सुबह से ही पूछताछ शुरु की लेकिन शाम तक दो की मौत हो गई। दोनों की मौत में नौ मिनट का अंतर बताया गया है।
सवालों के घेरे में मौत
चर्चा यह है कि दोनों महिलाओं को मुजफ्फरपुर बालिका गृह से यहां लाया गया था। वहां से लड़कियों को पटना, मधुबनी और बेगूसराय भेजा गया था। इनकी संख्या 34 थी जिन्हें मुजफ्फरपुर से अन्यत्र ले जाया गया। हालांकि पटना के डीएम ने इससे इंकार किया कि दोनों मुजफ्फरपुर से पटना लाई गई थीं। इनमें से एक मूक बधिर पूनम भारती 2016 में बेगूसराय से लाई गई थी। वह मानसिक बीमार थी। उसे डायरिया और बुखार की शिकायत थी। दूसरी बबली को गत वर्ष पटना के गायघाट यहां लाया गया था। उसे डायरिया की शिकायत थी। दोनों की मौत की खबर फैलने के बाद आनन फानन में मेडिकल बोर्ड गठित कर दिया गया।
दो दिनों पूर्व युवतियों के भागने से चर्चा में आया शेल्टर होम
नौ अगस्त को ही राजीव नगर आसरा शेल्टर होम चर्चा में आया। इसके निकट रहने वाले बनारसी सिंह ने एक लड़की को लोहा काटने की आरी देकर शेल्टर होम से भागने के लिए उकसाया। उसके प्रयासों से चार महिलाएं भाग निकलीं और उसके घर पहुंच गई। बनारसी ने ही पुलिस को खबर दी। लेकिन पुलिस ने उसे भी गिरफ्तार कर लिया। शेल्टर होम में भी समाज कल्याण विभाग की लापरवाही सामने आई है। दस अगस्त को चार संवासिनों के भागने की कोशिश की तो जिला बाल संरक्षण इकाई के सहायक निदेशक दिलीप कामथ जांच के लिए पहुंचे। जबकि महिलाओं के गंभीर बीमार होने पर भी विभाग के अधिकारी को कोई सूचना नहीं दी गई।
बड़े बड़ों का था आना जाना
शेल्टर होम में समाज कल्याण विभाग और पुलिस प्रशासन के बड़े अफसरों का आना जाना लगा रहता था। इसे एक मई को ही इसे खोला गया और विभाग के एमओयू में 59 संवासिनों के रखने का करार हुअ थी। लेकिन इसमें 74 संवासिनें थीं। यह एक डाक्टर का मकान है और विभाग किराए के तौर पर एक लाख बीस हजार रुपए अदा करता है।