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पत्रिका प्लस

‘धर्म चार पैरों पर आया, अब कलयुग वाले एक पैर पर’

 
वैन्यू- दरबार हॉल
सेशन- इंटरप्रिटेटिंग धर्मा
स्पीकर्स- बिबेक देबरॉय इन कंवर्सेशन विद् कीर्थिक शशिधरन
प्रजेंटेड बाय राजस्थान पत्रिका

जयपुरFeb 21, 2021 / 08:18 pm

Anurag Trivedi

'धर्म चार पैरों पर आया, अब कलयुग वाले एक पैर पर'

‘धर्म चार पैरों पर आया, अब कलयुग वाले एक पैर पर’

जयपुर. आर्थशास्त्री, अनुवाद और नीति आयोग के सदस्य बिबेक देवरॉय के साथ कीर्थिक शशिधरन ने सतयुग से लेकर कलयुग तक, रामायाण से लेकर महाभारत काल तक धर्म की अवधारणा को बेहतर तरीके से प्रस्तुत किया। बिबेक ने कहा कि एक तरह से विचार ही धर्म है, समाज भी एक धर्म हैं। डॉ. देबरॉय ने धर्म के सटीक अनुवाद के बारे में बात करते हुए कहा कि विभिन्न भाषाओं में अलग-अलग संरचनाएं हैं। एक भाषा के लिए कुछ सटीक, तो अन्य भाषा के लिए सटीक बैठना असंभव हो सकता है। संस्कृत का आधार धातु (मौखिक जड़) है। समाज की संरचना, समाज में शासन, व्यक्तिगत नैतिकता और आचार-विचार को धारण करने वाली चीज धर्म है। महाभारत के साथ वाल्मीकि रामायण एक स्मृति ग्रंथ है। यह सिर्फ सुनने वाले पाठ के समान नहीं है, बल्कि मानव समाज में संस्कारों और संस्कृति व धर्म को जोडऩे वाले साधन है।
उन्होंने कहा कि ‘कर्म’ ‘धर्म’ का दूसरा पहलू है। धर्म की प्रकृति बहुत रहस्यमय और सूक्ष्म है। कोई भी नहीं जानता कि धर्म का निर्वाह करने का सही तरीका क्या है। विभिन्न सामाजिक-आर्थिक संदर्भों, दुविधाओं, व्यापार-गत और परिणामस्वरूप तनाव का जो हम सामना करते हैं, वह उस समय से अलग नहीं है। यही कारण है कि इन प्राचीन ग्रंथों को लोग पढऩा पसंद करते हैं। वाल्मीकि रामायण की संरचना बहुत सरल है, क्योंकि इसमें मूल रूप से राम का दृष्टिकोण है। वहीं दूसरी ओर, महाभारत में कई दृष्टिकोण हैं, जिसके कारण वह अधिक जटिल लगती है। राम ने सरल वातावरण में सरल परिस्थितियों का सामना किया। हालांकि, महाभारत में, कृष्ण ने कई अधिक जटिल परिस्थितियों का सामना किया। इसलिए, उनकी प्रतिक्रियाएं अधिक जटिल होती हैं। राम की प्रतिक्रियाओं ने हमेशा उनकी प्रतिज्ञा का पालन करने पर केंद्रित रही है।
उन्होंने कहा कि अगर वाल्मिकी रामायण की बात करें, तो बाली को मारने और सीता की अग्नि परीक्षा करने पर राम की आलोचना हुई। लेकिन राम के वनवास में लक्ष्मण ने जिस तरह राम का साथ दिया उससे अलग तरह का ही संदेश गया। कीर्थिक शशिधरन ने धर्म के विस्तृत और बदलते आयामों पर संवाद में उन्होंने कहा कि धर्म चार पैरों पर चल कर आया है। रामायण काल में त्रेत्रायुग था और धर्म के तीन पैर थे। लेकिन कलयुग में धर्म का एक ही पैर होगा। रामायण के समय परिस्थतियां अलग थी, तो महाभारत में परिस्थतियां अलग थी।
युधिष्ठिर के बदलते व्यक्तित्व के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा कि वाल्मीकि रामायण इसके वर्णन के संदर्भ में संकुचित है। महाभारत में युधिष्ठिर का चरित्र और उनके हठ बदल जाते हैं। ‘आदि पर्व’ और ‘सभा पर्व’ के युधिष्ठिर, ‘वना पर्व या अरण्यक पर्व’ के युधिष्ठिर के समान नहीं हैं। उनके किरदार में परिवर्तन आता है। द्रौपदी के संबंध में और उसे संबोधित करने के तरीके में भी बदलाव आया। जैसा कि महाभारत के ‘पर्वों’ में एक कालानुक्रमिक रूप से नीचे की ओर जाते हैं, तो वह उससे बहुत अधिक आदर और सम्मान के साथ व्यवहार करती है।

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