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बिज्जी कहानियों को गणित की तरह गूंथते थे

बिज्जी: टाइमलेस टेल्स फ्रॉम मारवारस्पीकर्स— विशेष कोठारी, चन्द्रप्रकाश देवल इन कन्वर्सेशन विद अनुकृति उपाध्याय

जयपुरJan 24, 2020 / 12:15 pm

Anurag Trivedi

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चन्द्रप्रकाश देवल ने कहा कि विजय दान देथा ‘बिज्जी’ की कहानियां हजारों कंठों से निकली हुई है। वे ऐसी कहानियां सुनने में विश्वास रखते थे, जो बरसो से चली आ रही है और उन कहानियों को आधुनिकता के साथ जोडते हुए पाठकों के पास पहुंचाते थे। इनकी कहानियां हजारों कंठो से निकली हुई है और उन्होंने कथानक को ना बदलते हुए कहानी को असरदार बनाते हुए वेल्यू एडिशन करते थे। वे कहानियों को गणित की तरह गूंथते थे, यानी कथाओं को पहेलियों की तरह पेश करते थे और उन्हें असरदार तरह से सॉल्व भी करते थे। उनकी कहानी ‘दुविधा’ जिस पर फिल्म भी बनी है, उसकी विशेषता देखिए। उसमें जो नायक है, वह पूरी कहानी में अनायक लगता है और जो भूत है या विलेन है, वह नायक की तरह प्रजेंट होता है। वे कहानी को इस तरह समाप्त करते है कि विलेन के प्रति सिम्पेथी बढने लग जाती है। एक कथा कि जरिए उन्होंने यह प्रूव किया कि जो दिख रहा है, वह फैंटेसी है और जो नहीं दिख रहा है वह सच्चाई है।
उन्होंने कहा कि देथा पर सिर्फ राजस्थान ही गर्व करे वह मान्य नहीं है, उनके जैसा कथाकार और कहानीकार पूरे एशिया में नहीं हुआ। उन्होंने राजस्थानी भाषा, भाषा के कहन अऔर लोक सम्पदा को बचाने के लिए अपना विशेष योगदान दिया है। वे कहानियों को समकालिन सत्य के साथ जोडते थे, जिसकी वजह से आज भी उनकी कहानी को एक 10 साल का बच्चा भी पसंद करता है और एक 80 साल का प्रौढ भी उसी तल्लीनता के साथ पढना चाहता है।
विशेष ने कहा कि मैंने बिज्जी की कहानियों को अंग्रेजी भाषा में ट्रांसलेट किया है और इसमें सबसे महत्वपूर्ण मैंने उनकी सोच को साथ रखा है। जिस तरह के उन्होंने लोकल लैंग्वेज के शब्दों का प्रयोग किया है, मैंने अंग्रेजी में भी उन शब्दों को रखा है।
मैं आनंद को बाटना पसंद करता हूं
देवल ने कहा कि बिज्जी से एक बार बात हुई थी, तब वे किसी यंग राइटर की बुक को पढ रहे थे। मैंने कहा कि आपको तो अच्छी और बुरी दोनों तरह की बुक्स लोग भेजते है और आप सभी को अच्छे पढते है। तब उन्होंने कहा कि अच्छी किताबों से यह सीखने को मिलता है कि हमें भी अच्छा लिखना है और बुरी किताबों से यह सीखने को मिलता है कि हमें इस तरह का नहीं लिखना है। इसलिए मैं हर तरह की किताबे पढता हूं। जिस किताब को पढते हुए आनंद आता है, मैं उसे बांटना भी पसंद करता हूं, क्योंकि आनंद बांटने से ज्यादा बढता है।

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