scriptनोटबंदी का उद्देश्य करेंसी जब्त करना नहीं था- जेटली | arun jaitley exclusive interview before lok sabha election 2019 | Patrika News
राजनीति

नोटबंदी का उद्देश्य करेंसी जब्त करना नहीं था- जेटली

वित्त मंत्री अरुण जेटली का एक्सक्लूसिव इंटरव्यू
पांच साल के कार्यकाल पर जेटली ने की खुलकर बात
नोटबंदी से लेकर रफाल तक, सभी मुद्दों पर दिया बेबाकी से जवाब

नई दिल्लीApr 06, 2019 / 07:59 am

Kaushlendra Pathak

arun jaitley

नोटबंदी का उद्देश्य करेंसी जब्त करना नहीं था- जेटली

भुवनेश जैन

नई दिल्ली। केंद्रीय वित्त एवं कॉरपोरेट मामलात मंत्री अरुण जेटली उन चंद राजनेताओं में शुमार किए जाते हैं, जिनकी नीतियों और कार्यपद्धति ने समूचे देश पर दीर्घकालीन प्रभाव छोड़े। स्वास्थ्य ठीक नहीं होने के कारण मोदी सरकार का पिछला बजट भले ही वे लोकसभा में पेश नहीं कर पाए, पर बजट की हर पंक्ति में ‘जेटली प्रभाव’ झलक रहा था। 500 व 1000 रुपए के पुराने नोटो को चलन से हटाने (नोटबंदी) और जीएसटी लागू करने जैसे ‘कठोर’ कदम को वे तमाम आलोचनाओं के बावजूद कड़वी पर आवश्यक दवा मानते हैं, जिनका असर धीरे-धीरे सामने आ रहा है। देश की अर्थव्यवस्था से लेकर राजनीति तक से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर जेटली से नई दिल्ली स्थित उनके आवास पर बातचीत हुई। प्रमुख अंश-


प्रश्न- उन अर्थशास्त्रियों से आप कितने सहमत हैं जो कहते हैं कि नोटबंदी का कोई लाभ नहीं मिला?

जेटली- हमारे सभी उद्देश्य पूरे हुए हैं। नोटबंदी का उद्देश्य करेंसी जब्त करना नहीं था। नोटबंदी का उद्देश्य था कि जो नकदी गुमनाम थी, वह सामने आए। लाखों करोड़ रुपये जो बाजार में घूम रहे थे, उसकी मल्कियत किसकी है और उस पर टैक्स दिया जा रहा है या नहीं यह सामने आए। लोगों को यह आदत पड़े कि वे टैैक्स देेना शुरू करेें और डिजिटलाइजेशन की तरफ जाएं। यह दो बड़े उद्देश्य थे। सभी को बैंक में जमा करवाए गए धन का हिसाब देना पड़ा और जो नहीं दे पाए, उन्हें टैक्स देना पड़ा। टैक्स बेस पिछले पांच साल में जितना बढ़ा है, इतिहास में कभी नहीं बढ़ा। डिजिटलाइजेशन भी हम हर दिन के साथ बढ़ता जा रहा है। हमने जो ‘रुपे’ कार्ड शुरू किया आम लोगों के इस्तेमाल के लिए, उसका आज जन-धन खाते वाले उपयोग करते हैं। आज वैल्यू और वोल्यूम दोनों में ही 65 प्रतिशत लेन-देन इसी ‘रुपे’ कार्ड में हो रहे हैं।


प्रश्न- वित्त मंत्री के रूप में आप अपने कौन से पांंच काम बताना चाहेेंगे जिनके लिए देश आपको याद रखेगा?

जेटली- कई ऐसे विषय हैं। कुछ के बारे में बहुत चर्चा होती है, कुछ के बारे में कम होती है। यह पहला पांच वर्ष का कार्यकाल था जिसमें हमने ना इनकम टैक्स और ना अप्रत्यक्ष कर किसी भी वर्ग के लिए एक प्रतिशत भी नहीं बढ़ाया। इस देेश का इतिहास रहा है टैक्स बढ़ाने का। हम आदर्श आर्थिक सिद्धांत पर चले- करों की दर रिजनेबल करो, बेस बढ़ाओ, टैक्स कलेक्शन मल्टीप्लाई करो और मध्यम वर्ग की जेब में ज्यादा पैसा रहने दो। टैक्सेशन को असेसिंग अफसर और असेसी की दुनिया से निकाल कर नेट पर डिजिटल में ले जाओ, जिससे भ्रष्टाचार ना हो। यह इस देश में सबसे बड़ी क्रांति हुई। इसेे मैं ‘साइलेंटÓ क्रांति कहूंगा। किसी करदाता को मालूम ही नहीं कि उसका असेसिंग अफसर कौन है। ना जीएसटी वाले को मालूम है, ना इनकम टैक्स वाले को मालूम है। हमने हर मीटिंंग में जीएसटी भी कम किया और हर बजट में इनकम टैक्स भी कम करते-करते छूट पांच लाख तक ले गए। हमने सिस्टम को बिल्कुल आसान कर दिया ताकि हैरेसमेंट (प्रताड़ना) समाप्त हो।

मैं मानता हूंं कि जीएसटी देेश का अकेला सबसे बड़ा कर सुधार है। 17 तरह के करों को जोड़ कर एक व्यवस्था लागू कर देना और सभी फैसले राज्यों और केेंद्र की सर्व सम्मति से करा लेना, यह एक बड़ा कदम है।
तीसरा बहुत बड़ा रिफार्म है- ‘आधार’। आज इसकी मदद से जितना धन राज्य और केंद्र सरकारें सीधे लाभार्थियों और गरीबों के खातेे में डाल रही हैं, उनको जोड़ लीजिए तो अधिकतर राज्यों में कांग्रेस की ‘न्याय’ योजना में किए गए वादे सेे ज्यादा है। अपने आप में उनका जोड़ ही यूनिवर्सल बेसिक इनकम है। अभी इसमें उर्वरक और खाद्य सब्सिडी शामिल नहीं है। इन्हें शामिल कर लिया जाए तो यह और बड़ा हो जाएगा।
चौथा, बैंकों को लूटने की ‘व्यवस्था’ हमने खत्म कर दी। सारे डिफाल्टिंग मैनेजमेंट को बाहर कर दिया गया और नए लोग आए। इनसोल्वंसी एंड बैंकरप्सी (दिवालिया) कानून लाया गया जो कर्जदाता और कर्जदार के बीच के रिश्तों में नया आयाम ले कर आया है।

मोनेटरी पॉलिसी (मौद्रिक नीति) में भी हमने बहुत शानदार काम किए। हम आए थे तो रैपो रेेट 8 प्रतिशत थी और आज 6 प्रतिशत हो गई। 10 प्रतिशत सेे ज्यादा महंगाई दर थी जो आज दो से सवा दो प्रतिशत है। आज अर्थव्यवस्था के जो व्यापक पैमाने हैं- राजस्व घाटा, चालू खाता घाटा, मुद्रास्फीति और विदेशी मुद्रा की स्थिति- इन सभी पैमानों पर 1947 से आज तक ऐसी अच्छी स्थिति नहीं हुई। यह पहले पांच वर्ष हैं जिसमें भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था है। साथ ही हमने व्यवस्था को साफ-सुथरा कर दिया। आपको किसी काम के लिए दिल्ली नहीं आना पड़ता। कोई मंत्री आपका फायदा नहीं करवा सकता। सब मार्केट मैकेनिज्म और सोफ्टवेयर से तय होता है।

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प्रश्न- ऐसे कोई काम जिनको वित्त मंत्री केे तौर पर नहीं कर पाने का आपको अफसोस रहेगा?

जेटली- देश के जीवन में कोई अंंतिम दिन नहीं होता। आपके लक्ष्य होते हैं। जैसे हमने बड़े स्तर पर वित्तीय समावेश किया। 100 प्रतिशत लोगों के खाते खोल दिए। मुद्रा लोन के जरिए लोगों को एंटरप्रेनुअर बनाया। आयुष्मान, ग्रामीण शौचालय या उज्वला जैसी गरीबों की सेवा संबंधी जितनी भी योजनाएं थीं, किसी के लिए साधन नहीं रोके। देश के ढांचागत विकास पर काफी ध्यान दिया और यह बेहतर हो गया।

अभी भी आगे काफी कुछ करने की गुंजाइश है। इनमें सबसे अहम है- आर्थिक क्षेत्र में भी महिलाओं को मुख्यधारा में लाना। उनकी औपचारिक आय में बढ़ोतरी पर ध्यान देना। दूसरा, देेश के पूर्वी हिस्से में अन्य हिस्सों की तरह आर्थिक विकास को संभव बनाना। तीसरा, गांव में ढांचागत सुविधाओं के लिहाज से काम शुरू तो हुआ है, इसे अभी बहुत आगे ले जाना है।

प्रश्न- आने वाले वित्त मंत्रियों को आप क्या सलाह देना चाहेंगे, क्या प्राथमिकता होनी चाहिए?

जेटली- मुझे लगता है कि वित्तीय अनुशासन सबसे ऊपर होना चाहिए। अगर आपने सस्ती लोकप्रियता के लिए उसे खो दिया तो देश के सामने बड़ी समस्या पैदा हो जाएगी। राजस्थान का उदाहरण लीजिए, वहां बिजली बोर्ड के साथ जो हुआ। सस्ती लोकप्रियता के लिए उसे दिवालिया कर दिया गया। मैं दो आंकड़े देता हूं- छठा प्लान आया 1980 के दशक में तो वित्तीय घाटे को इंदिराजी 6.4 फीसदी पर ले गईं। लेकिन राजीव गांधी ने लोन मेले लगा कर कर्ज आधारित विकास किया और उससे वित्तीय घाटा फिर 8.4 प्रतिशत पर चला गया। इतना उधार ले कर देश चलाने की कोशिश हुई तो देश आर्थिक गतिरोध में चला गया। दिवालिया होने के कगार पर पहुंचा और हमें कटोरा ले कर आइएमएफ में जाना पड़ा। इसका आम लोगों पर भी असर पड़ता है। प्रणब बाबू के जमाने में राजस्व घाटा 6 प्रतिशत पार हो गया तो यूपीए-2 में मुद्रास्फीति दस प्रतिशत से ऊपर हो गई। हम धीरे-धीरे राजस्व घाटा, मुद्रास्फीति, चालू खाता घाटा आदि को नीचे ला रहेे हैं।

मेरा मानना है कि वित्तीय अनुशासन का पालन हो, प्रक्रिया आसान की जाए, अर्थव्यवस्था की रफ्तार बढ़ाई जाए और जो धन इकट्ठा हो उसे इंफ्रास्ट्रक्चर और गरीबों की सेवा में लगाया जाए। मेरी नजर में सबसे बड़ी प्राथमिकताएं हैं- गरीब की सेेवा और उसे गरीबी से बाहर निकालना। दूसरा, मध्य वर्ग और नया मध्य वर्ग (नियो मिडल क्लास) इस देश का बहुत बड़ा हिस्सा है। उसकी क्रय क्षमता को बढ़ाना जरूरी है, क्योंकि देश का आर्थिक भविष्य उसी के हाथ में है। तीसरा, इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करना। चौथा, राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए हथियारों और रक्षा उपकरणों की कमी को दूर करना।

प्रश्न- सरकार ने राजस्व घाटे को तीन प्रतिशत तक लाने का जो लक्ष्य रखा, उससे बहुत पीछे नहीं रह गए?

जेटली- इसे वर्ष 2021 तक तीन प्रतिशत तक लाना है। राजस्व घाटे के प्रबंधन पर एनके सिंह की समिति ने यह लक्ष्य तय किया था। मुझे लगता है कि 2021 तक यह हो जाएगा। इस लिहाज से जरूरी है कि आप ढलान पर हों और लक्ष्य की दिशा से ज्यादा डिगें नहीं। हमने पांच साल में इसे 4.6 से 3.4 पर ला दिया। अगर अगले पांच साल में यह 2.5 पर पहुंच जाए तो यह देश केे लिए बहुत बड़ी उपलब्धि होगी।

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प्रश्न- सरकार के पांच साल पूरे हो गए। इन पांच वर्षों में काले धन में कितनी कमी हुई है?

जेटली- इस लिहाज से कोई गलतफहमी नहीं रहे। जितनी नकदी है वह स्वाभाविक रूप से ब्लैक नहीं होती। जब अर्थव्यवस्था बढ़ती है 7 से 7.5 प्रतिशत पर तो करेंसी का वोल्यूम 14 प्रतिशत बढ़ता है। इस हिसाब से हमारी करेंसी जितनी होनी चाहिए थी, उसमें लगभग 16-17 प्रतिशत की कमी है। काला धन मैं मानता हूं कि कम हुआ है क्योंकि जो काले धन के बड़े क्षेत्र थे वे औपचारिक व्यवस्था में आ रहे हैं। सिनेमा उद्योग और रीयल एस्टेट फोरमलाइज हो गया। विदेशी खातों में पैसा डालना बहुत खतरनाक हो गया। रीयल एस्टेट में ऑर्गनाइज्ड डेवलपर आ रहे हैं। रातों रात भाग खड़े होने वाले बाहर जा रहे हैं। हालांकि अभी भी कुछ क्षेत्र हैं जैसे खनन और जमीन की बिक्री, जहां काले धन का उपयोग हो रहा है। लेकिन जितना जोर हमने लगाया है, उसके बाद धीरे-धीरे यहां भी घट रहा है। टैक्स कलेक्शन तो आकलन नहीं होता, वास्तविक संख्या होती है।

प्रश्न- अर्थव्यवस्था के जो व्यापक पैमाने हैं जैसे प्रति व्यक्ति आय, गरीबों की संख्या, देश पर बढ़ता कर्ज, बेरोजगारी, विकास दर, विदेशी निवेश आदि इन पर पांच साल में क्या प्रगति हुई?

जेटली- दुनिया में हमारी सबसे तेज विकास दर है, सबसे ज्यादा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश है। पांच साल में जीडीपी के अनुपात में बाहरी कर्ज का औसत कम हुआ है। राजस्व संबंधी आंकड़े मैं बता ही चुका हूं। इसके अतिरिक्त गरीबी रेखा के नीचे के लोगों (बीपीएल) का प्रतिशत वर्ष 2011 में 21.9 था, जो आज 17 के करीब है। 2021 का आंकड़ा आएगा तो यह 15 के आसपास होगा। हमारा लक्ष्य अगले पांच साल में इसे इकाई आंकड़े में ले आने का है। इस गति से हम ग्रामीण क्षेत्रों में निवेेश करते रहे तो गरीबी उन्मूलन और तेजी से हो सकता है।

प्रश्न- यह आरोप लगता है कि इस सरकार के कार्यकाल में न्यायपालिका की स्वतंत्रता को नियंत्रित करने की कोशिश हुई है। एक प्रसिद्ध वकील के तौर पर आप इसे किस तरह देखते हैं?

जेटली- यह बिल्कुल झूूठ है। हमारा न्यायपालिका से कभी झगड़ा नहीं हुआ। यह तो सरकार का अधिकार है कि नियुक्ति के लिए जो सिफारिश आती है, उसे आप कारणों के साथ एक बार वापस भेज सकते हैं। हमने एक नियुक्ति की फाइल वापस भेजी, वह भी कारणों के साथ तो उससे न्यायपालिका पर नियंत्रण हो गया? और जो न्यायपालिका पर महाभियोग ले कर आए, दबाव डालते रहे…। कांग्रेस ने तो घोषणापत्र तक में लिखा है कि जजों के खिलाफ जांच करने के लिए संंसदीय समिति बनाएंगे।

प्रश्न- किसानों की कर्ज माफी और बेरोजगारी भत्ता देने जैसे लोकप्रिय कदमों की प्रवृत्ति सभी पार्टियों में बढ़ रही है।

जेटली- कर्ज माफी जैसे अधिकतर वादे ऐसे हैं जिन्हें लागू नहीं किया जा सकता। पहले आप चुनाव में वादा करते हैं और फिर सरकार बनने पर दावा करते हैं कि हमने उसे निभा दिया। लेकिन जमीन पर आकलन करें तो पता चलता है कि कुछ नहीं हुआ। आवश्यकता इस बात की है कि किसानोंं की आमदनी बढ़ाइ जाए। आमदनी बढ़ाने के कई तरीके हैं। एक है ग्रामीण क्षेत्रों में जो इंफ्रास्ट्रक्चर है उसे मजबूत कीजिए। दूसरा, किसानों को उनकी फसलों का ज्यादा न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) मिले। हमने बढ़ा दिया। लेकिन एक वर्ग है जिसके कुछ उत्पादों में उसे एमएसपी नहींं मिलता। मध्य प्रदेश और पंजाब को छोड़ कर बाकी राज्यों की खरीदारी की क्षमता भी सीमित है। इसलिए सरकार का दखल विशेष रूप से इस पर है कि राज्यों की खरीद क्षमता बढ़े। तीसरा, उसे इनकम सपोर्ट दीजिए। यह कदम हमने शुरू किया है। चौथा और सबसे बड़ा काम है अंडर एंप्लायममेंट को ठीक करना। जिस खेत पर दो लोगों को काम करना चाहिए, वहां अगर छह लोग लगे हैं तो बाकी अर्थव्यवस्था को इतना मजबूत करना होगा कि अन्य लोग शहरोंं में जा कर अन्य रोजगार कर सकें। वह केवल बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था में ही हो सकता है।

प्रश्न- सरकार ने अपने अंतिम बजट में 12 करोड़ किसानों को छह-छह हजार की सालाना सहायता देने की घोषणा की। पांच लाख तक की आय को टैक्स फ्री कर दिया। और भी दर्जनों ऐसे संशोधन किए हैं। लेकिन क्या यह पहले नहींं हो सकते थे?

जेटली- अर्थव्यवस्था के सामने बहुत बड़ा एजेंडा होता है। खर्च का भी एजेंडा होता है। साथ ही हर साल के साथ आपकी क्षमता बढ़ती जाती है। इसी अनुरूप आप हर साल कुछ ना कुछ देते हैं। हमने पहले कर छूट को दो लाख से ढाई लाख किया फिर ढाई से तीन किया, फिर और रियायतें दीं। ऐसे काम चरणबद्ध तरीके से होते हैं। अचानक एक दिन में करेंगेे तो उतना बोझ आप पहले वर्ष में ले नहीं पाएंगे। इसे पांच साल में फैलाना पड़ता है। जीएसटी की दरों को भी हम धीर-धीरे कम कर रहे हैं। क्योंकि देश चलाने के लिए राजस्व भी तो होना चाहिए। जैसे-जैसे कर संग्रहण बढ़ रहा है हम दर कम कर रहे हैं।

प्रश्न- सरकार पर एक आरोप यह भी लगता है कि यह बेरोजगारी दूर करने में नाकाम रही।

जेटली- यह बिल्कुल बेबुनियादी है। मैं इसका बहुत सरल उदाहरण देता हूं। आप और मैं दोनों चलते हैं एक गांव में। वहां चार भाइयों का परिवार मिलता है। उनकी दस हैक्टेयर की खेती है। आप उससे सवाल पूछते हैं कि आपके पास रोजगार है, वे कहेंगेे नहीं है। मैं पूछता हूं आपके पास आजीविका है, वे कहेंगे है। तो आप अपने आंकड़े ले कर गीत गाते जाइए और मैं अपना डाटा ले कर गाना गाता रहूंगा। सही स्थिति जानना है तो जमीन पर देखिए। मैं मानता हूं कि कोई बहुत आदर्श स्थित नहीं है। लेकिन सबसे तेज बढ़ती अर्थव्यवस्था है, 17 करोड़ लोगों को कर्ज दे कर एंटरप्रेनुअर बनाया गया है, हर वर्ष 10 हजार किलोमीटर राजमार्ग बन रहा है, ग्रामीण इंफ्रास्ट्रक्चर में इतना काम हो रहा है और फिर भी कोई कहे कि रोजगार सृजित नहीं हो रहा है? हमारे यहां इलेक्ट्रॉनिक उद्योग लगभग शून्य था। दो फैक्ट्रियां थीं जो मोबाइल फोन के हिस्से बनाती थीं। आज 140-150 फैक्ट्रियां हैं। सवा करोड़ जॉब तो इन फैक्ट्रियों और इंसिडेंटल इंडस्ट्री में तैयार हुए हैं।

प्रश्न- क्या आंकड़े रिकार्ड में नहीं आ पाते..

जेटली- हमने एक समिति बनाई है ताकि औपचारिक रोजगार आंकड़े होने चाहिएं। अभी तो ईपीएफओ प्रोविडेंट फंड के आधार पर संख्या देता है। उनकी संख्या बढ़ रही है। बाकी जो सर्वे हैं, तो दो अलग-अलग सर्वे में अलग-अलग रिजल्ट आ जाते हैं।

प्रश्न- कांंग्रेस ने अफस्पा की समीक्षा की बात कही तो आप विरोध कर रहे हैं जबकि अरुणाचल प्रदेश में आपकी सरकार ने ही इसे वापस लिया है?

जेटली- कांग्रेस कितनी नासमझ है उसका यह एक उदाहरण है। अफस्पा (सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम) तो रहेगा लेकिन जहां स्थिति सामान्य होती जाएगी वहां से इसे हटाया जाएगा। अरुणाचल, त्रिपुरा और मेघालय में स्थिति सामान्य हो रही है, जो कांंग्रेस नहीं कर पाई। हमने पांच साल में कर दी। आप यह तो नहीं कह सकते कि राजस्थान में क्यों नहीं लगा रहे। जब मेघालय, अरुणाचल और त्रिपुरा में सामान्य स्थिति बहाल हुई तो हमने हटाया वहां से। सामान्य स्थिति में क्यो लगाएं? लेकिन क्या कश्मीर घाटी की स्थिति राजस्थान और दिल्ली की तरह है?

चिदंबरम का दूसरा तर्क तो और भी बेतुका है। कह रहे हैं कि जहां व्यक्ति गायब हो रहा हो, उसका टार्चर हो रहा हो या महिला से दुर्व्यवहार हो, वहां इसे नहीं लगाया जाना चाहिए। अब इस तर्क को परखिए। आज सेना के अधिकारियों के खिलाफ 1799 आवेदन लंबित हैं। जब सेना के लोग आतंकवादी को गिरफ्तार करते हैं या मारते हैं तो उसका परिवार यह थोड़ी कहता है कि यह जायज किया। वह कहता है कि उसे घर से उठा कर ले गए, सामान चोरी कर लिया, महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार किया फिर उसे टार्चर किया और फिर एनकाउंटर कर दिया। ऐसे आरोप लगा कर वह सीधा कोर्ट में चला जाएगा और जो यह 1799 की संंख्या है बहुत तेजी से बढ़ जाएगी। इस तरह आपके 20 हजार अधिकारी देश के दुश्मनों से निपटने की बजाय फर्जी मुकदमों से निपटते रहेंगे।

कांग्रेस के लोग किस दुनिया में रह रहे हैं। आप देश की एकता के लिए लड़ रहे हों और आपको कहा जाए कि आपके खिलाफ झूठी शिकायत भी आई तो हम बचाव नहीं कर सकते। मंजूरी लेने की शर्त रखने का मकसद यही है कि अगर झूठी शिकायत है तो सेना के अधिकारी को परेशान नहीं होना पड़े। जो शिकायतें आती हैं उसे राज्य और केंद्र दोनोंं स्तर पर परखा जाता है। कार्रवाई भी होती है। ऐसा नहीं है कि कार्रवाई नहीं होती।


प्रश्न- भाजपा के घोषणापत्र का अभी भी इंंतजार है।

जेटली- अंतिम मसौदा बन रहा है और छप रहा है। आप एक-दो दिन प्रतीक्षा कर लीजिए। हमें कोई नया घोषणापत्र थोड़ी देना है। हम तो मौजूदा सरकार हैं। ना ही हमने अपनी विचारधारा बदली है और ना ही वादे बदलने हैं। हमने जो किया है उसमें और काम जोड़ने हैं।

प्रश्न- सुब्रमण्यम स्वामी की आपसे क्या नाराजगी है कि आपके बारे में हमेशा बयान देते रहते हैं?

जेटली- मुझे मालूम नहीं। मैं उन पर कभी टिप्पणी नहीं करता।


प्रश्न- रफाल सौदे और अंबानी-अडानी को मदद के जो आरोप हैं, इससे सरकार की छवि को नुकसान नहीं हुआ?

जेटली- एक आदमी भी इन आरोपों पर विश्वास नहीं करता। यह बिल्कुल झूठ हैं। किसी के दस बार दुहराने से कोई झूठ सच थोड़ी हो जाता है।

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