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कॉमरेड सोमनाथ का पार्थिव शरीर नहीं जलाया जाएगा, जिंदा रहते ही कर दिया था देहदान

जब तक हम दलितों, गरीतों, पिछड़ों, वंचितों के कल्‍याण के बारे में नहीं सोचते तब तक देश का समरस और समावेशी विकास संभव नहीं है।

नई दिल्लीAug 13, 2018 / 02:09 pm

Dhirendra

somnath

कॉमरेड सोमनाथ के पार्थिव शरीर नहीं जलाया जाएगा, जिंदा रहते ही कर दिया था देहदान

नई दिल्‍ली। सीपीआई मार्क्‍सवादी के नेताओं ने कॉमरेड सोमनाथ दा को 2008 में पार्टी लाइन का उल्‍लंघन करने के आरोप में भले ही पार्टी से निकाल दिया, लेकिन सोम दा ऐसे शख्सियतों में शुमार थे जिनका मन और तन दोनों समाज के दबे और कुचलों के साथ देश के लिए समर्पित था। इस बात का खुलासा अब जाकर हुआ है। अब उनके पार्थिव शरीर का अंतिम संस्‍कार नहीं होगा। उनका शव कोलकाता के एसएसकेएम मेडिकल कॉलेज को शोध और अनुसंधान के लिए सौंप दिया जाएगा। इस बात की घोषणा कॉमरेड ने खुद जिंदा रहते हुए कर दी थी। अब उनका संस्‍कार प्रतीकात्‍मक रूप से ही होगा।
जिंदगी करते रहे वंचितों की सेवा
एक बंगाली ब्राह्मण परिवार में जन्‍मे कॉमरेड सोमनाथ के पिता निर्मल चंद्र चटर्जी अखिल भारतीय हिंदू महासभा के संस्‍थापक थे। इसके बावजूद उन्‍होंने वैचारिक रूप से वामपंथ को अपनाया और मरते दम तक वामपंथ से जुड़े रहे। ये बात अलग है कि 2008 में सीपीआईएम ने उन्‍हें पार्टी ने निकाल दिया लेकिन वो मन और तन से वामपंथ के बने रहे। हमेशा कामगार वर्ग तथा वंचित लोगों के मुद्दों को संसद में प्रभावी ढंग से उठाकर उनके हितों के लिए आवाज बुलंद करने का कोई भी अवसर नहीं गंवाया। कामगार मजूदरों के लिए उनकी लड़ाई को आज भी सभी याद करते हैं। उनका कहना था कि जब तक हम दलितों, गरीतों, पिछड़ों, वंचितों के कल्‍याण के बारे में नहीं सोचते तब तक देश का समरस और समावेशी विकास संभव नहीं है।
मुखर वक्‍ता भी थे सोम दा
सीपीआई-एम के नेता सोमनाथ चटर्जी का वाद-विवाद में निपुण थे। राष्‍ट्रीय और अंतरराष्‍ट्रीय मुद्दों पर उनकी समझ और वाकपटु कुशलता के विरोधी दल के नेता भी कायल रहे। राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय मुद्दों की स्पष्ट समझ, भाषा के ऊपर पकड़ और जिस नम्रता के साथ वो सदन में अपना दृष्टिकोण रखते थे उसे सुनने के लिए पूरा सदन एकाग्रचित होकर सुनता था।
1968 से राजनीति में सक्रिय थे
सोमनाथ चटर्जी ने राजनीतिक करियर की शुरुआत सीपीएम के साथ 1968 में की और वह 2008 तक इस पार्टी से जुड़े रहे। 1971 में वह पहली बार सांसद चुने गए। इसके बाद उन्होंने राजनीति में कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। वह 10 बार लोकसभा सदस्य के रूप में चुने गए थे। करीब चार दशक तक एक सांसद के रूप में देश की सेवा की। इसके लिए उन्हें साल 1996 में उत्कृष्ट सांसद पुरस्कार से नवाजा गया।
ममता की आलोचना की
हाल ही में पश्चिम बंगाल में हुए शहरी और ग्रामीण निकायों के चुनाव में हिंसा, पक्षपात, हत्‍या, बूथ कैप्‍चरिंग और विरोधी दलों का दमन करने को लेकर सीएम ममता बनर्जी सरकार की सख्‍त आलोचना की थी। उन्‍होंने मीडिया को बताया था कि सीएम ममता बनर्जी की ये सोच लोकतांत्रिक परंपराओं के अनुकूल नहीं है। इसका आने वाले समय में उन्‍हें नुकसान उठाना पड़ सकता है।

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