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राजनीति

उत्तर भारत में हुए कमजोर तो दक्षिण में बढ़ाएंगे पैठ

राजनीतिक दलों ने 2019 के लोकसभा चुनावों के मद्देनजर जीत की संभावनाएं तलाश करनी शुरू कर दी हैं।

नई दिल्लीAug 29, 2018 / 07:05 pm

Manoj Sharma

Narendra Modi

उत्तर भारत में हुए कमजोर तो दक्षिण में बढ़ाएंगे पैठ

नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव की तैयारियों में जुटी भाजपा को अगर उत्तर भारत में कमजोर स्थिति का सामना करना पड़ा, तो पार्टी दक्षिण के राज्यों में पैठ बढ़ाएगी। इसके तहत पार्टी ने तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, केरल और कर्नाटक जैसे राज्यों में क्षेत्रीय दलों के साथ गठजोड़ करने का प्रयास शुरू कर दिया है।
नजर तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना पर

बिहार में भाजपा के सहयोगी दल राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) के प्रमुख और केंद्रीय राज्य मंत्री उपेंद्र कुशवाहा ने राजग से अलग होने का संकेत दिया है। वहीं उत्तर प्रदेश में सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी भी भाजपा के खिलाफ ताल ठोकने में जुटी है। महाराष्ट्र में शिवसेना ने भाजपा से दूरी बना रखी है। ऐसे में भाजपा को लगता है कि अगर इन राज्यों में पार्टी की स्थिति कमजोर हुई तो दक्षिण के राज्यों से इसकी भरपाई की जा सकती है।
दक्षिण में भाजपा की ये है योजना

दक्षिण के राज्यों में तमिलनाडु में लोकसभा की 39 सीटें हैं, जहां भाजपा के पास मात्र एक सीट है। डीएमके और एआईएडीएमके प्रमुखों के निधन के बाद दोनों ही दलों की स्थिति कमजोर हुई है। साथ ही दोनों ही पार्टियों में अंदर खाने अलग-अलग गुट सक्रिय हैं। ऐसे में पार्टी किसी न किसी के साथ गठबंधन करने के प्रयास में जुटी हुई है। इसके अलावा पार्टी केरल, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में भी क्षेत्रीय दलों को साध रही है।
रालोसपा का ये है प्लान

2014 के लोकसभा चुनाव में तीन सीटें जीतने वाली रालोसपा इस बार अपना दायरा बढ़ाना चाह रही है। भाजपा नेतृत्व वाले राजग में उसे खास महत्व मिलता दिख नहीं रहा। 2014 के पिछले चुनाव में जदयू और भाजपा अलग थे लेकिन अब एक साथ हैं। ऐसे में रालोसपा को लगता है कि राजद के नेतृत्व वाले दूसरे खेमे में जाने से पार्टी की स्थिति और मजबूत होगी।
उत्तर प्रदेश में शिवपाल हो सकते हैं मददगार

सपा के वरिष्ठ नेता शिवपाल यादव भाजपा के लिए मददगार साबित हो सकते हैं। शिवपाल से जुड़े एक करीबी सूत्र के मुताबिक अगर सपा ने उन्हें पार्टी में महत्व नहीं दिया तो वह अलग राजनीतिक दल का गठन कर सकते हैं। अगर ऐसा हुआ तो इससे सपा का नुकसान होगा, जिसका फायदा भाजपा को मिल सकता है। वैसे भी शिवपाल और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ हुई कई मुलाकातों के बाद इस तरह की प्रबल संभावनाएं नजर आने लगी हैं।

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