गुजरात में आदिवासियों की आबादी करीब 14.8 प्रतिशत है। समाज के लिए यूं तो 27 विधानसभा सीटें आरक्षित हैं, लेकिन 40 सीटों पर आदिवासी वोटबैंक निर्णायक माना जाता है। 2007, 2012 और 2017 के विधानसभा चुनावों में आदिवासियों के लिए आरक्षित सांबरकांठा जिले की खेड़ब्रह्मा सीट से कांग्रेस विधायक अश्विन कोतवाल समाज के मजबूत नेता माने जाते हैं। बीते दिनों कोटवाल भाजपा में शामिल हो चुके हैं। ऐसे में भाजपा को लगता है कि आदिवासियों में पकड़ बनाने में कोटवाल सहायक सिद्ध होंगे।
कांग्रेस के परंपरागत वोटर हैं आदिवासी
गुजरात में भले ही भाजपा पिछले 27 साल से सत्ता में है, लेकिन आदिवासी बेल्ट में कांग्रेस को सफलता मिलती रही है। राज्य की कुल 182 विधानसभा सीटों में से 27 सीटें आदिवासियों के लिए आरक्षित हैं। 2007 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 27 में 14, 2012 में 16 सीटें जीतीं। इसी तरह 2017 के चुनाव में कांग्रेस ने आदिवासियों के लिए आरक्षित 14 सीटें जीतीं, जबकि भाजपा को सिर्फ 9 सीटों से संतोष करना पड़ा। इस प्रकार देखा जाए तो आदिवासियों के लिए आरक्षित सीटों पर भाजपा की तुलना में कांग्रेस मजबूत है। वजह कि आदिवासी कांग्रेस के परंपरागत वोटर रहे हैं। इस बार भाजपा आदिवासियों में सेंधमारी कर इस बेल्ट की ज्यादा सीटें जीतने की रणनीति पर कार्य कर रही है।
गुजरात के बनासकांठा, साबरकांठा, अरवल्ली, महिसागर, पंचमकाल दाहोद, छोटाउदेपुर, नर्मदा, भरूच , तापी, वलसाड, नवसारी, डांग, सूरत जैसे जिलों में आदिवासियों का वोटबैंक निर्णायक साबित होता है।