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BJP को गुजरात की जिस बेल्ट ने कई चुनावों में दिया झटका, वहां पार्टी ने लगाया जोर

गुजरात में पिछले कई चुनावों में आदिवासी बेल्ट में भाजपा को झटका लगा है। इस बार भारतीय जनता पार्टी सजग होकर इस बेल्ट के लिए खास रणनीति बनाकर कार्य कर रही है। पार्टी 2022 के गुजरात विधानसभा चुनाव में आदिवासी बेल्ट की सीटों पर परचम फहराने की कोशिश में है।

नई दिल्लीMay 12, 2022 / 07:25 am

Navneet Mishra

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भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा।

नई दिल्ली। गुजरात में पिछले कई चुनावों में आदिवासी अंचल में मिले झटकों को देखते हुए भारतीय जनता पार्टी इस बार जनजातीय समाज को साधने के लिए कई रणनीति पर कार्य कर रही है। आदिवासी इलाके में विकासीय परियोजनाओं के जरिए दिल जीतने की तैयारी है तो कांग्रेस के आदिवासी विधायक अश्विन कोतवाल को पाले में लाकर भाजपा ने मजबूत चेहरे की भी कमी दूर करने की कोशिश की है। इससे पूर्व गुजरात की भूपेंद्र पटेल सरकार में पांच आदिवासी विधायकों को मंत्री बनाने का दांव चल चुकी है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद आदिवासियों को साधने की दिशा में शुरू से ही सक्रिय हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने बीते 20 अप्रैल को आदिवासी इलाके दाहोद में कई विकास परियोजनाओं का उद्घाटन करते हुए आदिजाति महा सम्मेलन में भाग लिया था। प्रधानमंत्री मोदी ने 9 हजार एचपी इलेक्ट्रिक इंजन उत्पादन यूनिट के प्लांट का शिलान्यास किया। जिससे आने वाले समय में 10 हजार आदिवासी युवाओं को रोजगार मिलेंगे। आदिवासी इलाकों में पेयजल आदि सुविधाओं के विस्तार के सहारे भी भाजपा दिल जीतने की तैयारी कर रही है।
निर्णायक हैं आदिवासी मतदाता
गुजरात में आदिवासियों की आबादी करीब 14.8 प्रतिशत है। समाज के लिए यूं तो 27 विधानसभा सीटें आरक्षित हैं, लेकिन 40 सीटों पर आदिवासी वोटबैंक निर्णायक माना जाता है। 2007, 2012 और 2017 के विधानसभा चुनावों में आदिवासियों के लिए आरक्षित सांबरकांठा जिले की खेड़ब्रह्मा सीट से कांग्रेस विधायक अश्विन कोतवाल समाज के मजबूत नेता माने जाते हैं। बीते दिनों कोटवाल भाजपा में शामिल हो चुके हैं। ऐसे में भाजपा को लगता है कि आदिवासियों में पकड़ बनाने में कोटवाल सहायक सिद्ध होंगे।

कांग्रेस के परंपरागत वोटर हैं आदिवासी
गुजरात में भले ही भाजपा पिछले 27 साल से सत्ता में है, लेकिन आदिवासी बेल्ट में कांग्रेस को सफलता मिलती रही है। राज्य की कुल 182 विधानसभा सीटों में से 27 सीटें आदिवासियों के लिए आरक्षित हैं। 2007 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 27 में 14, 2012 में 16 सीटें जीतीं। इसी तरह 2017 के चुनाव में कांग्रेस ने आदिवासियों के लिए आरक्षित 14 सीटें जीतीं, जबकि भाजपा को सिर्फ 9 सीटों से संतोष करना पड़ा। इस प्रकार देखा जाए तो आदिवासियों के लिए आरक्षित सीटों पर भाजपा की तुलना में कांग्रेस मजबूत है। वजह कि आदिवासी कांग्रेस के परंपरागत वोटर रहे हैं। इस बार भाजपा आदिवासियों में सेंधमारी कर इस बेल्ट की ज्यादा सीटें जीतने की रणनीति पर कार्य कर रही है।
इन जिलों में आदिवासियों का प्रभाव
गुजरात के बनासकांठा, साबरकांठा, अरवल्ली, महिसागर, पंचमकाल दाहोद, छोटाउदेपुर, नर्मदा, भरूच , तापी, वलसाड, नवसारी, डांग, सूरत जैसे जिलों में आदिवासियों का वोटबैंक निर्णायक साबित होता है।

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