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अमरीका से न्‍यूक्लियर डील के मुद्दे पर सीपीआई-एम ने कॉमरेड सोमनाथ को दिखाया था बाहर का रास्‍ता

सैद्धांतिक उसूलों के पक्‍के कॉमरेड ने लोकसभा अध्‍यक्ष पद से इस्‍तीफा न देकर भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में आदर्श उदाहरण प्रस्‍तुत किया।

नई दिल्लीAug 13, 2018 / 10:52 am

Dhirendra

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अमरीका से न्‍यूक्लियर डील के मुद्दे पर सीपीआई-एम ने कॉमरेड सोमनाथ को दिखाया था बाहर का रास्‍ता

ई दिल्‍ली। कॉमरेड सोमनाथ चटर्जी का आज निधन हो गया। 1996 में उन्‍हें उत्‍कृष्‍ट सांसद पुरस्‍कार से नवाजा गया था। पूरी निष्‍पक्षता के साथ लोकसभा का संचालन करने के लिए उन्‍होंने दुनिया भर में अपनी अलग पहचान बनाई, लेकिन पार्टी का आदेश न मानने पर सीपीआई-एम ने उन्‍हें बाहर का रास्‍ता दिखा दिया। पार्टी के इस रुख को सोमनाथ ने गैर वाजिब माना। वो कहा करते थे पार्टी ने जिस मुद्दे पर उनके खिलाफ सख्‍त रुख अपनाया वो सही नहीं था। राष्‍ट्रपति जॉर्ज बुश के समय अमरीका और भारत के बीच न्‍यूक्लियर डील के पक्ष में उनकी इसी सोच को वामपंथी नेता हजम नहीं कर पाए और लोकसभा अध्‍यक्ष पद से इस्‍तीफा न देने के कारण उन्‍हें बाहर का रास्‍ता दिखा दिया।
उसूल पर अडिग रह सबको चौकाया
कॉमरेड सोमनाथ ने संसदीय प्रणाली की सर्वोच्च संवैधानिक पदों में से एक लोकसभा अध्यक्ष के पद को सुशोभित किया था। लेकिन वर्ष 2008 में भारत-अमरीका परमाणु समझौता विधेयक के विरोध में सीपीएम ने तत्कालीन मनमोहन सरकार से समर्थन वापस ले लिया था। तब सोमनाथ चटर्जी लोकसभा अध्यक्ष थे। पार्टी ने उन्हें स्पीकर पद छोड़ देने के लिए कहा लेकिन वह नहीं माने। उनका तर्क था कि न्‍यूक्लियर डील के मुद्दे पर एक तो वामपंथियों का अविश्‍वास प्रस्‍ताव वाजिब नहीं है। दूसरी बात ये कि अमरीका के साथ यूपीए वन सरकार की ये डील देश हित में था। लेकिन उनके इस तर्क से वामपंथी सहमत नहीं थे। यही कारण है कि सीपीएम ने उन्हें पार्टी से निकाल दिया। पार्टी के इस रुख से सोमनाथ की छवि दुनिया भर में बेस्‍ट पार्लियामेंटेरियन के रूप में उभरकर सामने आई। उस समय दुनिया भर में इस बात की भी चर्चा हुई कि एक कॉमरेड ने ऐसा कर भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में आदर्श उदाहरण प्रस्‍तुत किया। जबकि सीपीआई-एम के तत्‍कालीन महासचिव प्रकाश करात, वृंदा करात और वर्तमान में महासचिव सीताराम येचुरी की काफी किरकिरी हुई थी। फजीहत इसलिए भी ज्‍यादा हुई, क्‍योंकि वामपंथी तत्‍कालीन पीएम डॉ. मनमोहन सिंह की सरकार को अविश्‍वास प्रस्‍ताव के जरिए गिराने में सफल नहीं हुए थे।
बंगाली ब्राह्मण परिवार में हुआ था जन्‍म
आपको बता दें कि सोमनाथ चटर्जी का जन्म 25 जुलाई, 1929 को बंगाली ब्राह्मण निर्मल चंद्र चटर्जी और वीणापाणि देवी के घर में असम के तेजपुर में हुआ था। उनके पिता एक प्रतिष्ठित वकील, और राष्ट्रवादी हिंदू जागृति के समर्थक थे। उनके पिता अखिल भारतीय हिंदू महासभा के संस्थापकों में से एक थे। सोमनाथ चटर्जी की शिक्षा-दीक्षा कलकत्ता और ब्रिटेन में हुई। उन्होंने कोलकाता के प्रेसिडेंसी कॉलेज में भी पढ़ाई की। उन्होंने ब्रिटेन में मिडिल टैंपल से लॉ की पढ़ाई करने के बाद कलकत्ता हाईकोर्ट में प्रैक्टिस की। इसके बाद उन्होंने राजनीति में आने का फैसला किया। सामनाथ चटर्जी एक प्रखर वक्ता के रूप में भी जाने जाते हैं।
चार दशक तक राजनीति में सक्रिय रहे
अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत सोमनाथ चटर्जी ने सीपीएम के साथ 1968 में की और वह 2008 तक इस पार्टी से जुड़े रहे। 1971 में वह पहली बार सांसद चुने गए। इसके बाद उन्होंने राजनीति में कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। वह 10 बार लोकसभा सदस्य के रूप में चुने गए थे। करीब चार दशक तक एक सांसद के रूप में देश की सेवा की। इसके लिए उन्हें साल 1996 में उत्कृष्ट सांसद पुरस्कार से नवाजा गया।
वंचितों के बुलंद आवाज थे सोम दा
कॉमरेड सोमनाथ ने कामगार वर्ग तथा वंचित लोगों के मुद्दों को संसद में प्रभावी ढंग से उठाकर उनके हितों के लिए आवाज बुलंद करने का कोई भी अवसर नहीं गंवाया। सोमनाथ चटर्जी का वाद-विवाद कौशल, राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय मुद्दों की स्पष्ट समझ, भाषा के ऊपर पकड़ और जिस नम्रता के साथ वो सदन में अपना दृष्टिकोण रखते थे उसे सुनने के लिए पूरा सदन एकाग्रचित होकर सुनता था।

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