राजनीति

इसलिए हो रहा है इलेक्‍टोरल बॉन्‍ड का विरोध, ये है सबसे बड़ी वजह

सुप्रीम कोर्ट के फैसले से सरकार पर बढ़ा बॉन्‍ड पर पुनर्विचार करने का दबाव
एडीआर का दावा है कि इससे कॉरपोरेट लॉबी के हितों को मिलेगा बढ़ावा
चुनाव आयोग ने भी इस प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने पर अदालत में जोर दिया है

Apr 12, 2019 / 03:41 pm

Dhirendra

इसलिए हो रहा है इलेक्‍टोरल बॉन्‍ड का विरोध, ये है सबसे बड़ी वजह

नई दिल्‍ली। केंद्र सरकार की ओर से जारी इलेक्‍टोरल बॉन्‍ड का मामला तूल पकड़ता जा रहा है। शुक्रवार को इस मामले में एडीआर की याचिका पर सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने नया आदेश जारी कर सभी राजनीतिक दलों से चुनाव आयोग को इलेक्‍टोरल बॉन्‍ड से हासिल चंदा के बारे में विस्‍तार से 30 मई तक जानकारी देने को कहा है। इस आदेश के बाद से इस बात पर चर्चा शुरू हो गई है कि जिस आधार पर एडीआर व अन्‍य एजेंसियों द्वारा इसका विरोध किया जा रहा है उसके पीछे मुख्‍य वजह क्‍या है? आइए, आपको हम बताते हैं इसके पीछे की मुख्‍य वजह।
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लेन-देन को पारदर्शी बनाना जरूरी

दरअसल, इलेक्‍टोरल बॉन्‍ड लाने के पीछे मोदी सरकार का मुख्‍य मकसद भारतीय चुनाव व्‍यवस्‍था में कालेधन के असीमित प्रवाह पर रोक लगाना और पारदर्शिता लाना है। बता दें कि संसद में बिल पास होने के बाद वित्त मंत्री अरुण जेटली ने दावा किया था कि इससे राजनीति में कालेधन पर लगाम लगाने में मदद मिलेगी। लेकिन अब इसी पर सवाल उठ खड़े हुए हैं। भारतीय चुनाव आयोग ने भी लेन-देन की प्रक्रिया में पारदर्शित न होने की बात अदालत में स्‍वीकार की है। पारदर्शी लेन-देल पर जोर दिया है।
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इस बात को लेकर जारी है विरोध

एडीआर का कहना है कि इलेक्टोरल बॉन्ड्स एक हजार रुपए, 10 हजार रुपए, एक लाख रुपए, 10 लाख रुपए और एक करोड़ रुपए का लिया जा सकता है। इसे कोई भी नागरिक या कंपनी स्टेट बैंक की चुनिंदा शाखाओं से खरीद सकता है। लेकिन खरीदने वाले का नाम पता कहीं दर्ज नहीं होगा। वह किस पार्टी को यह बॉन्ड दे रहा है, इसका कहीं कोई उल्लेख नहीं होगा। बॉन्‍ड के इस प्रावधानों का विरोध एडीआर ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर की है। एडीआर ने अपने याचिका में बताया है कि यह तरीका कालेधन को एक तरह से वैध करने का मामला है वो भी गुप्‍त तरीके से।
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कालेधन को मिलेगा बढ़ावा

दरअसल, इलेक्‍टोरल बॉन्‍ड के जरिए किसी भी व्‍यक्ति या संस्‍था किसी दल को चंदा दे सकता है। यह प्रॉमिसरी नोट की तरह होता है और बियरर चेक की तरह इसका इस्तेमाल किया जा सकता है। यानी जिस पार्टी के नाम से इस बॉन्‍ड को एसबीआई में जमा करा दिया जाएगा उसके खाते में पैसा जमा हो जाएगा। यानी कानूनी तरीके से कालेधन को वैध करना होगा संभव। एडीआर ने शीर्ष अदालत में याचिका के जरिए दावा है कि इस तरीके पैसा देने वाला व्‍यक्ति या कॉरपोरेट लॉबी भारतीय व्‍यवस्‍था को प्रभावित कर सकता है। कारपोरेट लॉबी से जुड़े लोग अपने हित में सरकार से काम करा सकते हैं। ये सब गुपचुप तरीके से होगा और इस पर सवाल भी उठाना संभव नहीं होगा।
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भाजपा को मिले 210 करोड़ रुपए

आपको बता दें कि एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्‍स (एडीआर) की ओर से दायर एक आरटीआई के जवाब में भारतीय स्टेट बैंक ने बताया कि पिछले एक साल में इसकी बिक्री में लगभग 62 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई है। 2018 में 1,056 करोड़ रुपए से बढ़कर मार्च, 2019 तक बढ़कर 1,716 करोड़ रुपए हो गया है। इस बॉन्ड से राष्‍ट्रीय पार्टियों को सबसे ज्‍यादा लाभ मिला है। 2017-18 में इस बॉन्‍ड से राजनीतिक दलों को बैंकिंग प्रणाली के तहत 215 करोड़ रुपए मिले। इनमें सत्तारूढ़ दल भाजपा को अकेले 210 करोड़ रुपए और मुख्‍य विपक्षी कांग्रेस ने 5 करोड़ रुपए मिले। यानि बॉन्‍ड से मिले कुल रकम में से 95 प्रतिशत केवल भारतीय जनता पार्टी की झोली में गया। बाकी 5 करोड़ रुपए कांग्रेस को मिले।

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