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राजनीति

आज भी लालू के बिना अधूरी है देश की राजनीति

मंडल-कमंडल के दौर में आडवाणी का रथ रोकने की दिखाई थी हिम्‍मत
जातीय समीकरणों के बल पर इस बार भी खिलाना चाहते हैं गुल
लालू का सियासी पावर आज भी है बरकरार

Mar 15, 2019 / 07:42 pm

Dhirendra

Lalu yadav

आज भी लालू के बिना अधूरी है देश की राजनीति

नई दिल्‍ली। चुनावी राजनीति की बात शुरू होते ही लालू प्रसाद यादव का नाम चर्चा में आ जाता है। चर्चा करने वाला व्‍यक्ति का बिहार से कोई लेना-देना हो या न हो, वो लालू प्रयाद यादव के बारे में हर बात आधिकारिक रूप से करता नजर आता है। ये बात बहुत हद तक सच है और राजनीति से नजदीक का रिश्‍ता नहीं रखने वाला भी स्‍वीकार करता है।
जब आडवाणी का रथ रोकर छा गए लालू
भारतीय राजनीति में उनका ये रुतबा करीब तीन दशक से जारी है। याद कीजिए मंडल-कमंडल के दौर में जब लालू 1989-90 में भारतीय राजनीतिक पटल पर उभरकर सामने आए ही थे कि भाजपा के कद्दावर नेता लालकृष्‍ण आडवाणी ने राम मंदिर निर्माण को लेकर देश भर में रथ यात्रा पर निकल गए थे। देश के किसी भी राज्‍य सरकार की हिम्‍मत नहीं हुई कि वो उनकी रथ को रोक दे लेकिन बिहार पहुंचते ही लालू ने उनकी रथ को रोककर दुनिया भर के सियासी पंडितों को चौंका दिया था। यहीं से वो भारतीय राजनीति में छा गए।
किंगमेकर की भूमिका
उसके बाद देश में शुरू हुआ गठबंधन की राजनीति का दौर। उस दौर में भी लालू ने अपने स्‍टाइल में देश की राजनीति को प्रभावित किया। जेडीएस प्रमुख एचडी देवेगौड़ा और इंद्र कुमार गुजराल को देश का प्रधानमंत्री बनाने में उन्‍होंने किंगमेकर की भूमिका निभाई। यूपीए सरकार में भी उनका दखल जारी रहा। बिहार से सत्‍ता गंवाने के बाद केंद्रीय रेल मंत्री के रूप में उन्‍होंने दुनिया भर में नाम कमाया।
मोदी-शाह नहीं पा सके पार
बिहार क्‍या, देश की राजनीति की ही बात बिना लालू के अधूरी है। विधानसभा चुनाव हों या लोकसभा चुनाव। लालू के सियासी समीकरण का जोड़ बेजोड़ होता है। बड़े-बड़े महारथी भी लालू यादव की चालों में उलझ जाते हैं। बिहार विधानसभा चुनाव 2015 के दौरान मोदी मैजिक में पूरा उत्तर भारत मचल रहा था। उस समय भी लालू अपने स्‍टाइल की राजनीति कर मोदी-शाह को हार का स्‍वाद चखाया और मोदी का विजयी रथ बिहार पहुंचकर रुक गया। बिहारी डीएनए के मुद्दे पर लालू ने जेडीयू प्रमुख नीतीश कुमार के साथ ऐसी सियासी पारी खेली कि भाजपा के चाणक्‍य भी भौचक्‍के रह गए और वहां इस खेल को समझ नहीं सके।
जेल से थामे हैं महागठबंधन का हाथ
उनके सियासी जीवन की एक सच्‍चाई ये भी है कि वो चारा घोटालों में दोषी करार दिए जाने के बाद से जेल की सजा काट रहे हैं। इसके बावजूद जेल से ही सही वो अपने बेटे तेजस्‍वी यादव और तेज प्रताप यादव को जमीनी राजनीति का ए,बी,सी… सिखा रहे हैं। महागठबंधन भले ही कहीं प्रभावी हो या न हो पर उन्‍होंने जेल से ही बिहार की राजनीति का संचालित कर वहां पर महागठबंधन को टूटने नहीं दिया। इसका ताजा उदाहरण यही है कि बिहार महागठबंधन में बिना उनके पूछे कोई काम नहीं होता। झारखंड में जेल में जाकर राजनेता उनसे सलाह मशविरा करते हैं। उन्‍हीं े निर्देशन में उनके बेटे मोदी-शाह, नीतीश कुमार, रामविलास पासवान जैसे दिग्गजों को चुनौती देने में जुटे हैं। इसके लिए उन्‍होंने आरजेडी के साथ कांग्रेस, आरएलएसपी, हम, वामपंथी पार्टियां व अन्‍य क्षेत्रीय पार्टियों को अपने साथ जोड़े रखा है।

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