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भीड़ की हिंसा से लेकर राहुल के गोत्र और मंदिर निर्माण की तारीख तक के सवालों पर बेबाक बातचीत

गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि चुनाव जीतने कांग्रेस कर रही है धर्म व जाति की राजनीति। साथ ही कहा कि सीमावर्ती इलाकों में अल्पसंख्यकों की जनसंख्या का अनुपात बढ़ने का कोई खतरा नहीं है।

नई दिल्लीDec 05, 2018 / 05:03 pm

Manoj Sharma

Home minister Rajnath Singh

भीड़ की हिंसा से लेकर राहुल के गोत्र और मंदिर निर्माण की तारीख तक के सवालों पर बेबाक बातचीत

मुकेश केजरीवाल (राजस्थान से लौट कर)

गृह मंत्री के विशेष विमान में अपने बैठने की जगह का मुआयना कर ही रहा था कि पीछे से अपनत्व भरी रोबीली आवाज में नाम सुन पलटा। बेहद गंभीर लहजे और स्वभाव के माने जाने वाले राजनाथ सिंह पूरी सहजता और आत्मीयता के साथ सामने मौजूद थे। झक सफेद धोती-कुर्ता, आधे बाजू की खाकी बंडी (जैकेट) और विशाल ललाट पर बड़ा सा केसरिया तिलक। सच कहूं तो मेरी एक मंशा सत्ता की मौजूदा व्यवस्था में उनके अंदर के द्वंद्व को टटोलने की भी थी। सत्ता की सारी शक्ति जब एक जगह सिमट रही है तो सरकार में नंंबर दो होने का क्या मतलब होता है? हालांकि, दशकों से राजनीति में पगे एक व्यक्ति के मन को टटोलना आसान नहीं था।
खैर, औपचारिक बातचीत शुरू करने से पहले कुछ दिनचर्या और चुनावी व्यस्तता की बातें छेड़ीं। उन्होंने बताया कि पांचों राज्यों में कुल 60 रैलियां की हैं। रोजाना पांच से छह घंटे हवाई सफर में ही बीत रहे हैं, जिसमें ज्यादातर हेलीकॉप्टर की थकाऊ यात्रा। जब मैंने मोबाइल से इंटरव्यू का वीडियो बनाने का अपना उपक्रम शुरू किया तो निगाहों में छात्र सी उत्सुकता थी और अंदाज में सहयोग की प्रचूरता। स्वभाविक ही था कि उन्होंने राजस्थान में किसी भी तरह के एंटी-इंकंबेंसी से पूरी तरह इंकार कर “पुणः पूर्ण और स्पष्ट बहुमत” की सरकार का दावा किया। मैंने सवाल उठाया इतने आश्वस्त होते तो सबसे ज्यादा जोर राजस्थान में क्यों लगाना पड़ता। वे बोले, “चुनाव में लोग स्वभाविक तौर पर ज्यादा से ज्यादा कार्यक्रम मांगते हैं। सभाएं होती हैं।”
सीमा पर अल्पसंख्यकों के बदलते जनसंख्या अनुपात की बात गलत

भाजपा और संघ परिवार के लोग जहां एक समुदाय की बढ़ती आबादी का खतरा दिखा कर अक्सर बहुसंख्यक समुदाय को आतंकित करते हैं, उन्होंने राजस्थान के सीमावर्ती इलाके में एक वर्ग विशेष की जनसंख्या में बढ़ोतरी की बात से पूरी तरह इंकार किया। इस संबंध में बीएसएफ की एक खुफिया रिपोर्ट में चिंता जताए जाने की खबरों के संबंध में पूछे जाने पर वे कहते हैं, “कुछ लोग ऐसी चर्चा करते हैं। स्वभाविक रूप से हर स्थान पर थोड़ा-बहुत डेमोग्राफिक बदलाव होता रहता है। लेकिन मैं नहीं मानता कि बहुत तेजी के साथ कोई डेमोग्राफिक बदलाव हो रहा हो सीमा पर। ऐसा कुछ नहीं है।”
जब हमने ‘पत्रिका’ की हाल की रिपोर्ट का हवाला दे कर पूछा कि पोकरण में परमाणु विस्फोट कर हम दुनिया के सामने सीना चौड़ा तो करते हैं, लेकिन वहां के गांव वाले आज भी विकास से दूर हैं तो उन्होंने सीमावर्ती इलाकों में विकास की जरूरतों के लिए चलाए जाने वाले ‘बोर्डर एरिया डेवलपमेंट प्रोग्राम’ की चर्चा के साथ ही कहा, “केंद्र सरकार तो जितना हो सकता है आपनी तरफ से करती है। लेकिन सभी क्षेत्रों का विकास हो, इसकी चिंता राज्य सरकारों की जिम्मेवारी होती है।”
राज्य में राजपूत समुदाय की नाराजगी की बात को टालते हुए कहते हैं, “राष्ट्रीय स्वाभिमान के प्रश्न पर राजस्थान के लोग जाति-पांति, पंथ-मजहब के सारे बंधन तोड़ देते हैं। वैसे ही हालत अभी पैदा हुए हैं। महराणा प्रताप के साथ राजस्थान की आन-बान-शान की रक्षा के लिए एक वर्ग नहीं सभी कौम के लोग खड़े थे।”
बातचीत के दौरान वे खास तौर पर राजनीतिक विश्वसनीयता के संकट का उल्लेख करते हैं। कहते हैं कि नेताओं ने अपनी कथनी और करनी के फर्क की वजह से यह संकट पैदा किया है। इसे चुनौती के रूप में लेना चाहिए और देखना चाहिए कि राजनीति और नेताओं के प्रति भरोसा कैसे पैदा हो।
दो रैलियों के बाद वापसी में हेलीकॉप्टर में स्थानीय कार्यकर्ता की ओर से तैयार पराठा अचार के साथ खाते हुए कहते हैं कि राजनीति में आने के बाद आपको भोजन और विश्राम आदि को ले कर ज्यादा नाजुकमिजाज नहीं रहना चाहिए। सार्वजनिक सभाओं के इतने लंबे अनुभव के बावजूद अपनी हर अगली सभा की बारीक तैयारियां करते हैं। पहुंचने से पहले स्थानीय मुद्दे, समीकरण आदि के बारे में पूरी जानकारी लेते हैं।
इस दौरान अपनी दोनों ही सभाओं में वे खुद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का नाम लिए बिना कहते हैं कि उनकी समझ इतनी सीमित है कि वे लोगों से आलू की फैक्ट्री लगाने का वादा करते हैं। बाद में मैंने उनसे पूछा कि आप राजनीतिक शुचिता की बात करते हैं, फिर ऐसे उद्धरण क्यों? जवाब में अपना पक्ष रखते हुए वे कहते हैं, “उन्होंने कहा था ना। क्या आलू की फैक्ट्री लग सकती है? मैंने कभी अपशब्दों का प्रयोग नहीं किया है। नेतृत्व के पास सोच और समझ होनी चाहिए।” फिर वे मोदी के लिए विपक्ष की ओर से इस्तेमाल भाषा का हवाला देते हैं। इस पद की गरिमा का ध्यान दिलाते हैं। मैंने जब कहा कि प्रधानमंत्री भी तो खुद अपनी पृष्ठभूमि का राजनीतिक इस्तेमाल करते हैं और राजनीतिक मौकों पर मीडिया को बुला कर पारिवारिक संबंधों का ‘फोटो ऑप’ करवाते हैं। इस पर थोड़ा उग्र अंदाज में बोले, “तो क्या वे अपनी मां के पास जाना बंद कर दें। मां के पास तो जाएंगे ही। उन्होंने मां की चर्चा कभी कोई ऐसा प्रसंग आया है तभी की है।”
राहुल पर लौटते हुए कहते हैं कि उन्होंने खुद अपना गौत्र बताया है। हमें जाति, पंथ और मजहब की राजनीति नहीं करनी चाहिए। मैंने पूछ लिया कि क्या उन्हें भी राहुल के गौत्र पर विश्वास नहीं तो बोले, “हम तो जानना ही नहीं चाहते कि क्या जाति है और क्या गौत्र है। जाति-पांति गोत्र, पंथ और महजब को क्यों लाएं।”
‘मंदिर वहीं बनाएंगे, तारीख नहीं बताएंगे’, विपक्ष के इस ताने पर बोले, शांति और सौहार्द से बनेगा मंदिर

फिर संघ परिवार क्यों हर चुनाव में मंदिर मुद्दा गर्माने लगता है, मैंने पूछा। जवाब था, “राम मंदिर के मुद्दे को मजहब के साथ नहीं जो़ड़िए। मर्यादा पुरुषोत्तम राम पूरे भारत के लिए आदर्श हैं। गांधी ने भी आदर्श राज्य के तौर पर राम राज्य की ही कल्पना की थी।” पर क्या यह आदर्श एक मंदिर बना कर ही पूरा होगा? वे कहते हैं, “इस सच्चाई को तो आप स्वीकार करेंगे। सारे प्रमाण मिल गए हैं। वहां पर मंदिर था।”
मैंने कहा, मतलब आप वहां बनाएंगे मंदिर..? राजनाथ सिंह ने बिना देरी कहा, “अब तो इसको सभी स्वीकार करते हैं। हमारे अल्पसंख्यक समुदाय को भी कोई आपत्ति नहीं है, इस पर। शांति और सौहार्दपूर्ण तरीके से बने।” मैंने याद दिलाया कि विपक्ष चुटकी लेता है, ‘मंदिर वहीं बनाएंगे, तारिख नहीं बताएंगे।’ उन्होंने इसे नकारते हुए कहा, “बनेगा। किसी को आपत्ति नहीं होगी। शांति और सौहार्दपूर्ण तरीके से बनना चाहिए।” गौरक्षा के नाम पर भीड़ की हिंसा के ताजा मामले पर पहली बार बोले राजनाथ, इस मामले से सही तरह से निपटा जाना चाहिए था
अब बात पहुंची भीड़ की हिंसा पर। जिस उत्तर प्रदेश के वह मुख्यमंत्री रहे, वहां दो दिन पहले पुलिस अधिकारी को मार दिया गौरक्षा के नाम पर। गृह मंत्री का जवाब था, “इस तरह की घटनाएं पहले भी बहुत होती रही हैं। लेकिन इसे रोकने के लिए पूरी कोशिश करनी चाहिए। सिस्टम को इसे रोकने में गंभीर भूमिका अदा करनी चाहिए। कल जो हुआ बहुत गलत हुआ। लेकिन इसे सांप्रदायिक रंग नहीं देना चाहिए। प्रोपर हैंडलिंग होनी चाहिए थी, नहीं हुई। मुख्यमंत्रीजी ने रिपोर्ट मांगी है। पूरे मामले की जांच हो रही है। जानें गई हैं, वह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है।
उन्होंने बताया गृह मंत्री के तौर पर वे खुश हैं कि नक्सली हिंसा सिमट कर आठ नौ जिलों में रह गई। कश्मीर पर सरकार में किसी नीतिगत उहापोह या शुरुआती दौर की आक्रामकता से इंकार करते हुए कहते हैं, “कश्मीर अपना ही है, अपने ही लोग है। उन पर आक्रामक होने का कोई औचित्य नहीं।”
पाकिस्तान को बार-बार कड़ी चेतावनी के उनके बयानों के बारे में सोशल मीडिया पर ट्रोल किए जाने के बारे में वे कहते हैं, चेतावनी और कड़ी-वड़ी इन शब्दों का उपयोग मैं करता ही नहीं हूं। ऐसी बातें योजनाबद्ध तरीके से चलाई जाती हैं।
सरकार और पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र और सामूहिक जिम्मेवारी आदि सवालों पर कहते हैं, “इतने समय से सरकार में हूं, कभी मंत्रालय के काम में किसी की दखलंदाजी नहीं हुई। यह सब बातें कोरी बकवास हैं।” जाहिर है कि वे विपक्ष को कोई मौका नहीं देना चाहते।

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