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राजनीति

इंदिरा गांधी के पत्र नटवर सिंह के नाम : यहां बहुत मुश्किल दौर है…

पत्र लिखकर किताबों के बारे में करती थीं बात
पारिवारिक कुशल-क्षेम भी पूछती थीं पत्र में

Apr 28, 2019 / 04:26 am

Navyavesh Navrahi

natwar singh
पूर्व प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू की पुस्तक पिता के पत्र पुत्री के नाम चर्चित है। खत लिखने की यह विरासत इंदिरा गांधी ने भी जारी रखी। प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए भी वह परिचितों को खत लिखा करती थीं। तब उनके करीबी रहे के नटवर सिंह को भी उन्होंने कई मौकों पर खत लिखे। इन खतों में उनकी संवेदनशीलता तो झलकती ही है, किताबों के प्रति उनके मोह का भी पता चलता है। प्रस्तुत है के नटवर को लिखे उनके ऐसे ही दो खत जिनमें वह नटवर जी की ओर से भेजी गई किताबों का जिक्र कर रही हैं-

माओ-निक्सन की कहानी मेरे लिए नई थी…

डियर नटवर,

जन्मदिन पर बधाई देने के लिए धन्यवाद।

हिएनरिच बॉल को इनाम मिलने से पहले मैंने इनकी कोई किताब नहीं देखी थी। शारदा प्रसाद लाइब्रेरी से इनके तीन नॉवेल लाए थे। ये नॉवेल कई टूर के दौरान मेरे साथ रहे, किंतु मैं इन्हें पढ़ नहीं पाई। मन उचाट होने पर दूसरी जो किताब मुझे सबल देती है, वो हान सुइन्स की ‘अ मोर्टल फ्लावर’ है, जो मैंने भगवान शाहे से ली थी। इनकी नवीनतम पुस्तक की समीक्षा में मेरी दिलचस्पी थी, जो आपने भेजी है। इन्होंने माओ पर और किस तरह की किताबें लिखी हैं?
माओ-निक्सन की कहानी मेरे लिए नई थी, पर मेरे परिवार ने बताया कि उन्होंने इसे कहीं देखा है। शायद वीकली में।

आशा है हेम अब स्वस्थ होगी।

आप दोनों एवं जगत और ऋतु के लिए भी शुभकामनाएं।
-इंदिरा गांधी
***

यहां पर बहुत मुश्किल दौर है…

डियर नटवर,

आपके बहुत सारे खत मिले। मैंने हमेशा चाहा कि इनका लंबा जवाब दूं, किंतु ऐसा हो नहीं पाया। अपनी किताब का पेपरबैक इश्यू भेजने और पाज़ की पुस्तक भेजने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद। यह बहुत आकर्षक है। इस किताब पर मेरी नजर तब पड़ी जब बरूह, जो एक अच्छे पाठक और कवि हैं, ने मुझसे पूछा कि क्या मेरे पास पढऩे के लिए कोई नई किताब है? मैंने यह किताब उसे पढ़ने को दी है।
जोशी जी के दिल्ली में रहने वाले एक मित्र ने मुझे उनके द्वारा लिखे पत्रों का निचोड़ भेजा है, जिसमें सुभद्रा की दशा के बारे में विस्तार से बताया है। यह व्यथित करने वाला समाचार है और मैं बहुत चिंतित हूं। यहां पर बहुत मुश्किल दौर है। विदेश जाने का भी सही समय नहीं है किंतु ये दौरे बहुत पहले से तय थे। ऐसे दौरे को अंतिम क्षणों में रद्द करने के परिणामों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
-इंदिरा गांधी

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