नई दिल्ली। सुब्रमण्यम स्वामी का नाम आते ही हमारे दिमाग में एक ऐसी छवि उभरती है जो केवल कांग्रेस और गांधी परिवार पर हमला करता हो। आरोप लगाता हो। इसके अलावा जो दूसरी बात दिमाग में आती है वो ये है कि किसी बात पर केस करने के लिए, आदालत में ले जाने के लिए तैयार बैठा एक नेता। स्वामी एक बार फिर उसी अंदाज में राज्यसभा पहुंच चुके हैं और कांग्रेस पर उनका हमला फिर शुरू हो गया है।
विवादों के स्वामी
बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी को विवादों का स्वामी कहा जाता है। वह वन मैन आर्मी के नाम से भी मशहूर हैं। स्वामी अमरीका से अर्थशास्त्र में पीएचडी हैं लेकिन वकालत की पढ़ाई किए बिना ही वो देश के बड़े-बड़े केस की वकालत कर चुके हैं।
24 साल की उम्र में हार्वर्ड विश्वविद्यालय से हासिल की पीएचडी की डिग्री
महज 24 साल की उम्र में उन्होंने हार्वर्ड विश्वविद्यालय से पीएचडी की डिग्री हासिल कर ली। स्वामी जब 27 साल के थे तब उन्होंने हार्वड में गणित पढ़ाना शुरू कर दिया था। जिसके बाद डॉक्टर स्वामी को 1968 में अमृत्य सेन ने दिल्ली स्कूल ऑफ इकॉनामिक्स में पढ़ाने का आमंत्रण दिया था। इसके बाद स्वामी दिल्ली आए और 1969 में आईआईटी दिल्ली से जुड़ गए। लेकिन 1972 में उन्हें आईआईटी दिल्ली की नौकरी गंवानी पड़ी। इसके खिलाफ वो अदालत गए और 1991 में अदालत का फैसला स्वामी के पक्ष में आया। इसके बाद वो एक दिन के लिए आईआईटी गए और फिर इस्तीफा दे दिया।
जब स्वामी ने बोला आपने डेमोक्रेसी की भी हत्या कर दी है
इमरजेंसी के दौरान स्वामी पर देश विरोधी साजिशों में शामिल होने, संसद और देश के महत्वपूर्ण इंस्टिट्यूट्स को बदनाम करने का आरोप लगा था। 1974 में जनसंघ की ओर से राज्यसभा में भेजे गए स्वामी 1975 से 77 के बीच इमरजेंसी के 19 महीनों में सरकार को छकाते रहे और गिरफ्त में नहीं आए। जबकि उस दौरान अधिकांश बड़े नेताओं को अरेस्ट कर लिया गया था। स्वामी के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट था और वो अमेरिका चले गए, लेकिन 10 अगस्त 1976 को एक सिख के वेश में सरकार और सभी तरह की सिक्युरिटी को चुनौती और चकमा देते हुए स्वामी पार्लियामेंट पहुंच गए। जब वो सदन में दाखिल हुए तो श्रद्धांजलि के लिए मृतकों के नाम पढ़े जा रहे थे। जैसे ही नाम पूरे हुए, स्वामी ने जोर से कहा कि आप ने डेमोक्रेसी का नाम नहीं लिया, उसकी भी मौत हो चुकी है। सदन स्तब्ध रह गया। इसके पहले की सुरक्षाकर्मी कुछ समझ पाते स्वामी संसद से निकल गए। वेश बदलकर वे नेपाल के रास्ते फिर अमेरिका पहुंचे। कोई उन्हें पकड़ नहीं पाया।
धर्मनिरपेक्ष परिवार
हर समय हिन्दू और हिन्दू हितों की बात करने वाले नेता स्वामी के रिवार में हर धर्म के लोग है। जहां स्वामी की पत्नी पारसी है वहीं उनकी भाभी इसाई, दामाद मुसलमान और बहनोई यहूदी है।
अटल बिहारी बाजपेयी पर लगाया था आरोप
आपातकाल के बाद 1977 में बनी जनता पार्टी के वो संस्थापक सदस्यों में थे। 2013 में अपनी पार्टी का बीजेपी में विलय कर चुके स्वामी मोरारजी देसाई की सरकार में फाइनेंस मिनिस्टर नहीं बनाए जाने से इतना नाराज हो गए थे कि उन्होंने इसके पीछे अटल बिहारी वाजपेयी को कारण बताया था। शायद यही कारण था कि 1980 में जब बीजेपी की नींव पड़ी तो उन्हें पार्टी में शामिल होने नहीं बुलाया गया।
1999 में बाजपेयी की 13 महीने की सरकार गिराई थी स्वामी
साल 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी को सत्ता में आए महज 13 महीने ही हुए थे। स्वामी वाजपेयी सरकार में वित्त मंत्री बनना चाहते थे पर कहते हैं लेकिन वाजपेयी इसके लिए तैयार नहीं थे। फिर क्या था, स्वामी ने वाजपेयी सरकार को जयललिता और सोनिया गांधी के साथ मिलकर ध्वस्त कर दिया।
आर्थिक सुधारों की शुरुआत की थी स्वामी ने
जबकि इसके तीन साल पहले 1996 में स्वामी जयललिता के खिलाफ आय के अधिक संपत्ति रखने का आरोप लगाते हुए अदालत में निजी शिकायत दर्ज करा चुके थे। चंद्रशेखर के प्रधानमंत्रित्व काल में वाणिज्य एवं कानून मंत्री रहते हुए स्वामी ने ही आर्थिक सुधारों की नींव रखी थी। नरसिम्हा राव सरकार के समय विपक्ष में होने के बावजूद स्वामी को कैबिनेट रैंक का दर्जा हासिल था और उन्हीं के शुरू किए गए आर्थिक सुधारों को कांग्रेस सरकार ने आगे बढ़ाया।
मानसरोवर यात्रा को दोबार शुरू कराया था स्वामी ने
चीन के राष्ट्राध्यक्ष से पहली ही मुलाकात में उन्होंने तीर्थ यात्रा बहाल करने को कहा। डा. स्वामी से प्रभावित होकर डेंग श्याओपिंग ने फौरन सहमति दे दी। 1981 में कैलाश-मानसरोवर की यात्रा फिर से शुरू हुई और स्वामी ने तीर्थयात्रियों के पहले जत्थे का नेतृत्व भी किया।
इसलिए सोनिया के खिलाफ हुए थे स्वामी
स्वामी का कहना था कि वाजपेयी सरकार गिराने के समय सोनिया के साथ ये तय हुआ था कि स्वामी के नेतृत्व में एक गैर बीजेपी और गैर कांग्रेसी सरकार बनेगी लेकिन वाजपेयी सरकार गिरने के बाद सोनिया गांधी खुद अपनी सरकार बनाने की कोशिशों में लग गईं। स्वामी उसके बाद से सोनिया के खिलाफ हो गए।
राज्यसभा में बीजेपी के पक्ष में बना दिया है माहौल
स्वामी हाल ही में राज्यसभा गए हैं। राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत सदस्यों के कोटे से उन्हें राज्यसभा में एंट्री मिली है। 17 साल बाद स्वामी की संसद में वापसी हुई है। लोकसभा में बीजेपी के पास पूर्ण बहुमत है लेकिन राज्यसभा में कांग्रेस की अगुवाई वाला विपक्ष बीजेपी पर भारी पड़ता रहा है। हेलिकॉप्टर घोटाले में स्वामी के बिछाए चक्रव्यूह ने बीजेपी को राज्यसभा में नई सांसें दे दीं हैं। सुब्रमण्यम स्वामी का निशाना सिर्फ एक ही शख्स पर है और वो हैं कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी।
2जी घोटाला, कोयला घोटाला और नेशनल हेरल्ड घोटाले में कांग्रेस को घसीटने वाले स्वामी ने आगूस्ता हेलिकॉप्टर घूसकांड को लेकर सीधे सोनिया गांधी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है।
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