अगर फारुक अब्दुल्ला 35ए मुद्दे पर पंचायत चुनावों का विरोध कर रहे हैं तो उन्हें कारगिल युद्ध भी नहीं लड़ना चाहिए था। हकीकत ये है कि अब्दुल्ला परिवार ने हमेशा से सियासत की राजनीति की है। प्रदेश में सत्ता में बने रहना उनकी फितरत है। वो लोगों के विद्रोह का भय दिखाकर केंद्र सरकार को ब्लैकमेल करना चाहते हैं। उनकी ये राजनीति अब नहीं चलेगी, क्योंकि मोदी सरकार प्रदेश में विकार को बढ़ावा देने में जुटी है। यही कारण है कि वो लोगों को केंद्र के खिलाफ उकसाने में लगे हैं।
आपको बता दें कि जम्मू और कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारुक अब्दुल्ला ने कहा था कि केंद्र सरकार और राज्य प्रशासन को धारा 35ए के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में डाली गई याचिका पर जोरदार तरीके से पैरवी करनी चाहिए। इससे पहले भी अब्दुल्ला ने पांच सितंबर को कहा था कि जब तक केंद्र सरकार इस पर अपने रुख को साफ नहीं करती है और राज्य में शांति की कोशिशों को आगे नहीं बढ़ाती तब तक हम इन चुनावों में हिस्सा नहीं लेंगे। शनिवार को तो उन्होंने यहां तक कह दिया वो अब विधानसभा और लोकसभा का चुनाव भी नहीं लड़ेंगे।
बताया जा रहा है कि जम्मू और कश्मीर में राज्यपाल शासन लागू होने के बाद से फारुक अब्दुल्ला पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की महबूबा मुफ्ती से हाथ मिला सकते हैं। महबूबा मुफ्ती भी अनुच्छेद 35ए का हवाला देते हुए पंचायत चुनावों का बहिष्कार करने का फैसला कर चुकी हैं। छह सितंबर को पीडीपी के कोर ग्रुप की बैठक के बाद पार्टी प्रवक्ता रफी मीर ने भी कहा था कि पीडीपी पंचायत चुनावों से दूर रहेगी। मौजूदा हालात चुनावों के लिए उपयुक्त नहीं है और जब तक केंद्र सरकार अनुच्छेद 35ए पर अपना रुख स्पष्ट नहीं करती, पीडीपी इस प्रक्रिया में हिस्सा नहीं लेगी।