दरअसल, हुआ यह कि मंगलवार शाम को करुणानिधि का निधन होते ही राज्य सरकार ने उन्हें मरीन बीच पर अंतिम संस्कार की सुविधा देने से मना कर दिया। जबकि उनके समर्थकों व परिजनों ने राजनीतिक जीवन में उनके कद को देखते हुए मरीन बीच पर अंतिम संस्कार की मांग की थी। लेकिन सरकार ने साफ कर दिया कि मरीन बीच पर उन्हें पूर्व सीएम होने के नाते नहीं दफनाया जा सकता है। इसके पीछे सरकार ने प्रदेश के पूर्व सीएम जयंती रामचंद्रन का उदाहरण भी दिया। सरकार के इस फैसले के विरोध में डीएमके हाईकोर्ट में अपील कर दी। हाईकोर्ट की रात में सुनवाई भी हुई, लेकिन राज्य सरकार ने जवाब देने के लिए सुबह तक का समय मांग लिया। सुबह सरकार की ओर से पेश तर्कों को दो जजों की पीठ ने नहीं माना। इस पीठ ने साफ कर दिया कि करुणानिधि को मरीन बीच पर ही दफनाया जाए। इस तरह तमिल राजनीति के पुरोधा माने जाने वाले कलैगनार ने ये आखिरी जंग भी अदालत के जरिए जीत ली। साथ ही अपने धुर विरोधियों को इस बात का अहसास करा दिया कि उनका अस्तित्व इह लोक में हो या परलोक में, उन्हें कोई धूल नहीं चटा सकता।
आपको बता दूं कि प्यार और जंग में सबकुछ जायज होता है। ये बात हमेशा से कहा जाता रहा है लेकिन यह मानव जीवन का एक कटु सच भी है। ऐसा इसलिए कि भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बाद जब मुगल वंश के अंतिम शासक बहादुर शाह जफर द्वितीय को अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर सजा का ऐलान किया तो उन्होंने कहा था,’ कितना है बदनसीब ‘ज़फर’ दफ्न के लिए, दो गज जमीन भी न मिली कू-ए-यार में’ मुझे। उसी तरह तमिलनाडु में इस समय एआईएडीएमके सत्ता में है। डीएमके के साथ एआईएडीएमके के छत्तीस के आंकड़े हैं। ये बात जगजाहिर है। उन्हीं आंकड़ों का बदला लेने के लिए सरकार ने उन्हें निधन के बाद मरीन बीच से वंचित करना चाहा। लेकिन करुणानिधि जफर से बेहतर नसीब वाले निकले और उन्हें वो दो गज जमीन नसीब हुआ जिन्हें उनको मौत के बाद मिलने की उम्मीद थी।