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राजनीति

अगर आप निर्दलीय तो लोकसभा में चुनाव जीतने की संभावना सिर्फ 1.7 फीसदी

धीरे-धीरे उठता गया निर्दलीयों से भरोसा, दूसरे लोकसभा चुनाव में सर्वाधिक 42 निर्दलीय उम्मीदवार जीते
5 बार (1952 से 1977 तक) बीकानेर से निर्दलीय सांसद रहे करणी सिंह
4 बार (1957, 1962, 1967, 1971) कानपुर सीट से निर्दलीय जीते एस.एम. बनर्जी

Mar 19, 2019 / 08:47 pm

Prashant Jha

sansad

अगर आप निर्दलीय तो लोकसभा में चुनाव जीतने की संभावना सिर्फ 1.7 फीसदी

आर्यन शर्मा

नई दिल्ली: दक्षिण भारतीय और हिन्दी फिल्मों के अभिनेता प्रकाश राज ऐलान कर चुके हैं कि वे निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर लोकसभा चुनाव में उतरेंगे। सियासी मुद्दों पर मुखर प्रकाश का सियासत में यह कदम कितना कारगर होगा यह तो वक्त ही बताएगा। लेकिन लोकसभा चुनावों के 1951-52 से 2014 तक का इतिहास देखें तो धीरे-धीरे निर्दलीयों से भरोसा उठता जा रहा है। 16वीं लोकसभा में सिर्फ तीन निर्दलीय ही सांसद बन पाए, जबकि कुल 3234 प्रत्याशी चुनावी मैदान में उतरे थे। इनमें से दो केरल व एक असम से है। इसके अलावा जब भी जोड़-तोड़ की सरकार बनी है, तब भी निर्दलीयों की भूमिका ज्यादा प्रभावी नहीं रही है। इतना ही नहीं, हर आम चुनाव में बड़ी तादाद में निर्दलीय उम्मीदवारों की जमानत राशि भी जब्त हो जाती है। वर्ष 1951 से 2014 तक के कुल निर्दलीयों में से 97.92 प्रतिशत की जमानत राशि जब्त हो गई। निर्दलीय उम्मीदवारों की सफलता दर कम निर्दलीयों के जीतने की क्षमता पर हमेशा सवालिया निशान रहा है, क्योंकि उनमें से जीतने वालों की संख्या कम ही रहती है। अब वोटर भी निर्दलीयों पर कम ही भरोसा जता रहे हैं। 1952, 1957 और 1967 के लोकसभा चुनावों में हर बार 30 से अधिक निर्दलीय जीते। तब से उनकी संख्या कम होती जा रही है। 1989 के चुनावों के बाद यह संख्या कभी दोहरे अंक में नहीं पहुंची। अब तक सर्वाधिक 42 निर्दलीय 1957 में लोकसभा पहुंचे, जो कि अब तक की उच्चतम (8.7 प्रतिशत) सफलता दर है।

19.32 प्रतिशत वोट शेयर रहा 1957 में
निर्दलीयों ने पहले चार आम चुनावों में से प्रत्येक में कुल वैध वोट का 10 फीसदी से अधिक हासिल किया। उसके बाद उनके वोट प्रतिशत में लगातार गिरावट देखी गई। अब तक का अधिकतम वोट शेयर 1957 में 19.32 फीसदी रहा, जबकि न्यूनतम 1998 में 2.37 प्रतिशत था। 2014 में निर्दलीयों ने कुल वोट में से सिर्फ तीन प्रतिशत मत प्राप्त किए। सबसे ज्यादा 10636 निर्दलीय उम्मीदवार वर्ष 1996 के चुनावी मैदान में उतरे, लेकिन उनमें से महज नौ ही लोकसभा पहुंच पाए।

शुरुआती वर्षों में था जीतने का अच्छा मौका
अब तक लोकसभा चुनाव में कुल 44,642 निर्दलीयों ने चुनाव लड़ा, जिनमें से महज 222 ही जीत पाए। उनकी औसत सफलता दर सिर्फ आधा प्रतिशत (0.49%) है। सबसे ज्यादा (80) लोस सीटों वाले राज्य से अब तक सर्वाधिक 37 निर्दलीय प्रत्याशी सांसद बने हैं। बहरहाल, स्थानीय मुद्दों के लिए लडऩे वाले निर्दलीय उम्मीदवारों के पास स्वतंत्रता के बाद शुरुआती वर्षों में जीतने का अच्छा मौका था। लेकिन समय के साथ धन और राजनीतिक पार्टी का असर अधिक प्रभावी हो गया है। इस कारण बाद में वही प्रत्याशी जीतने में सफल रहे, जो या तो किसी दल के बागी थे या उनका राजनीतिक कद बहुत बड़ा था।

पहली लोकसभा से अबतक चुने गए निर्दलीय सांसद

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सिंधिया और मेनका भी निर्दलीय जीते
1989, 1999 में दादर-नागर हवेली संसदीय क्षेत्र से मोहनभाई संजीभाई देलकर स्वतंत्र प्रत्याशी के तौर पर जीतकर संसद पहुंचे। 1996 में शिलांग से जॉर्ज गिल्बर्ट स्वैल निर्दलीय विजयी हुए। 1998 व 1999 में पीलीभीत सीट से मेनका गांधी भी निर्दलीय जीतीं।2009 लोकसभा चुनाव में झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा सिंहभूम से स्वतंत्र प्रत्याशी के तौर पर जीते, वहीं किरोड़ीलाल मीणा दौसा सीट से लोस पहुंचे। 1967 में चतरा सीट से विजयाराजे सिंधिया और 1977 में गुना से माधवराव सिंधिया निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में जीते थे।
2014 में तीन ही बन पाए सांसद

जॉइस जॉर्ज, इडुक्की (केरल)
इनोसेंट, चलाकुडी (केरल)
नबा कुमार सरानिया कोकराझर (असम)

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