19.32 प्रतिशत वोट शेयर रहा 1957 में
निर्दलीयों ने पहले चार आम चुनावों में से प्रत्येक में कुल वैध वोट का 10 फीसदी से अधिक हासिल किया। उसके बाद उनके वोट प्रतिशत में लगातार गिरावट देखी गई। अब तक का अधिकतम वोट शेयर 1957 में 19.32 फीसदी रहा, जबकि न्यूनतम 1998 में 2.37 प्रतिशत था। 2014 में निर्दलीयों ने कुल वोट में से सिर्फ तीन प्रतिशत मत प्राप्त किए। सबसे ज्यादा 10636 निर्दलीय उम्मीदवार वर्ष 1996 के चुनावी मैदान में उतरे, लेकिन उनमें से महज नौ ही लोकसभा पहुंच पाए।
शुरुआती वर्षों में था जीतने का अच्छा मौका
अब तक लोकसभा चुनाव में कुल 44,642 निर्दलीयों ने चुनाव लड़ा, जिनमें से महज 222 ही जीत पाए। उनकी औसत सफलता दर सिर्फ आधा प्रतिशत (0.49%) है। सबसे ज्यादा (80) लोस सीटों वाले राज्य से अब तक सर्वाधिक 37 निर्दलीय प्रत्याशी सांसद बने हैं। बहरहाल, स्थानीय मुद्दों के लिए लडऩे वाले निर्दलीय उम्मीदवारों के पास स्वतंत्रता के बाद शुरुआती वर्षों में जीतने का अच्छा मौका था। लेकिन समय के साथ धन और राजनीतिक पार्टी का असर अधिक प्रभावी हो गया है। इस कारण बाद में वही प्रत्याशी जीतने में सफल रहे, जो या तो किसी दल के बागी थे या उनका राजनीतिक कद बहुत बड़ा था।
पहली लोकसभा से अबतक चुने गए निर्दलीय सांसद
सिंधिया और मेनका भी निर्दलीय जीते1989, 1999 में दादर-नागर हवेली संसदीय क्षेत्र से मोहनभाई संजीभाई देलकर स्वतंत्र प्रत्याशी के तौर पर जीतकर संसद पहुंचे। 1996 में शिलांग से जॉर्ज गिल्बर्ट स्वैल निर्दलीय विजयी हुए। 1998 व 1999 में पीलीभीत सीट से मेनका गांधी भी निर्दलीय जीतीं।2009 लोकसभा चुनाव में झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा सिंहभूम से स्वतंत्र प्रत्याशी के तौर पर जीते, वहीं किरोड़ीलाल मीणा दौसा सीट से लोस पहुंचे। 1967 में चतरा सीट से विजयाराजे सिंधिया और 1977 में गुना से माधवराव सिंधिया निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में जीते थे।
इनोसेंट, चलाकुडी (केरल)
नबा कुमार सरानिया कोकराझर (असम)