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लोकसभा चुनावः नेहरू ने बनाया फूलपुर को वीआईपी सीट, भाजपा के लिए नहीं है लकी

फूलपुर सीट किसी को निराश नहीं करता
दिग्गजों को धूल चटाने के लिए मशहूर
लोहिया, कांशीराम और सोनेलाल पटेल को किया निराश

नई दिल्लीMay 13, 2019 / 09:13 am

Dhirendra

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लोकसभा चुनावः नेहरू ने बनाया फूलपुर को वीआईपी सीट, भाजपा के लिए नहीं है लकी सीट

नई दिल्ली। फूलपुर देश का वो संसदीय सीट है जिसने देश को पहला प्रधानमंत्री दिया और इसी के साथ यह सीट वीआइपी कहलाने लगा। ज्यादातर वीआइपी सीटों पर एक-दो खास चेहरे ही लंबे समय तक चुनाव लड़ते रहे लेकिन यहां के चुनावी मैदान में चर्चा में रहने वाले कई बड़े नेता उतरे।
दिग्गजों को धूल चटाने के लिए मशहूर

फूलपुर सीट न सिर्फ़ बड़े नेताओं को जिताने के लिए बल्कि कई दिग्गजों को धूल चटाने के लिए भी मशहूर है। चाहे वो लोहिया हों, छोटे लोहिया (जनेश्वर मिश्र), कांशीराम या पटेलों के लोकप्रिय नेता सोनेलाल पटेलं या फिर कई और नेता। यहां के लोग स्थानीय और बाहरी उम्मीदवार में फर्क नहीं करते। जहां तक 2019 की बात है तो छठे चरण में इस सीट से चुनाव लड़ रहे प्रत्याशियों का तकदीर भी रविवार को ईवीएम में बंद हो गया।
सोनेलाल के दामाद ने बढ़ाया रोमांच

इस बार फूलपुर संसदीय सीट से भाजपा प्रत्याशी के रूप में केसरी देवी पटेल, गठबंधन की ओर से पंधारी यादव तो कांग्रेस ने पंकज निरंजन उम्मीदवार बनाया है। बता दें कि स्व. सोनेलाल पटेल के दामाद पंकज की मौजूदगी ने यहां पर चुनावी संघर्ष का बढ़ा दिया है लेकिन ये भी सच है कि सोनेलाल पटेल यहां से चुनाव हार गए थे। बता दें कि सोनेलाल पटेल की बेटी अनुप्रिया पटेल की पार्टी अपना दल एनडीए गठबंधन में शामिल है।
भाजपा के लिए प्रतिष्ठा का सवाल

2018 के उपचुनाव में नागेंद्र सिंह पटेल ने जीत हासिल कर समाजवादी पार्टी का परचम लहराया तो यह सीट एक बार देश भर में सुर्खियों में आ गया। महागठबंधन को सपा की जीत से नई ताकत मिली। इस हार से भाजपा को बड़ा झटका दिया। आजादी के से लेकर अब तक इस सीट पर 19 बार चुनाव हुए हैं। इसमें तीन बार उपचुनाव भी शामिल है। इस सीट पर भाजपा को केवल 2014 में चुनावी जीत मिली। वर्तमान में उत्तर प्रदेश सरकार में उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने यहां पर तीन लाख से अधिक मतों से जीत हासिल कर इतिहास बनाया था। लेकिन उपचुनाव में यह सीट भाजपा के हाथ से निकल गई। यही कारण है कि फूलपुर को भाजपा के लिए लकी सीट नहीं माना जाता है। अब चर्चा इस बात की है कि क्या भाजपा इस सीट को एक बार फिर अपने नाम कर पाएगी?
नेहरू के बाद पटेल ने बनाया हैट्रिक का रिकॉर्ड

देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने 1952 में पहली लोकसभा में पहुंचने के लिए इसी सीट को चुना। वो यहां से लगातार तीन बार 1952, 1957 और 1962 में जीत दर्ज कर लोकसभा में पहुंचे। उनके बाद इस सीट पर जीत का हैट्रिक लगाने का श्रेय रामपूजन पटेल को हासिल है। रामपूजन पटेल पहली बार कांग्रेस के टिकट पर 1984 में यहां से जीते। उसके बाद पटेल जनता दल में शामिल हो गए और 1989 और 1991 का चुनाव यहीं से जीता।
लोहिया के लिए नेहरू ने दिखाई दरियादिली

यूं तो फूलपुर से जवाहर लाल नेहरू का कोई ख़ास विरोध नहीं होता था और वो आसानी से चुनाव जीत जाते थे लेकिन उनके विजय रथ को रोकने के लिए 1962 में समाजवादी नेता राममनोहर लोहिया ख़ुद फूलपुर सीट से चुनाव मैदान में उतरे और हार गए। लोहिया नेहरू के खिलाफ ये जानते हुए भी यहां से चुनाव लड़े कि हार जाएंगे। और हुआ भी यही। लेकिन नेहरू ने उन्हें राज्यसभा पहुंचाने में मदद की क्योंकि नेहरू का मानना था कि लोहिया जैसे आलोचक का संसद में होना बेहद ज़रूरी है।
सबको मौका देने वाला सीट

फूलपुर लोकसभा सीट पर 1984 तक कांग्रेस का दबदबा रहा। लेकिन 1989 के बाद से अब तक के चुनावों में कांग्रेस ने इस सीट पर जीत का स्वाद नहीं चखा है। उसके बाद से जनता दल, सपा, बसपा और 2014 में पहली बार भाजपा ने इस सीट पर जीत का स्वाद चखा। अंतिम बार यहां से कांग्रेस के टिकट पर 1984 में राम पूजन पटेल जीते थे। उसके बाद वो जनता दल के शामिल हो गए और ये सीट कांग्रेस के हाथ से फिसल गई। 1984 से पहले केवल 1969 में सोशलिस्ट पार्टी के जनेश्वर मिश्र को उपचुनाव और आपातकाल के 1977 में जनता पार्टी की टिकट पर कमला बहुगुणा जीतने में कामयाब हुईं थीं। बाद में कमला बहुगुणा कांग्रेस में शामिल हो गईं। कमला बहुगुणा पूर्व मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहुगुणा की पत्नी, उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा और वर्तमान में उत्तर प्रदेश की पर्यटन मंत्री रीता बहुगुणा जोशी की मां थीं।
1996 से 2004 तक सपा का दबदबा

1996 से 2004 तक इस सीट पर सपा प्रत्याशी जीत दर्ज करते रहे। 2009 में बसपा के टिकट पर कपिल मुनि करवरिया यहां से जीतने में कामयाब हुए। 2009 तक तमाम कोशिशों और समीकरणों के बावजूद भारतीय जनता पार्टी इस सीट पर मंडल पर कमंडल का असर नहीं छोड़ पाई।
2012 से विधानसभा सीट

विधानसभा के तौर पर फूलपुर का गठन पहली बार 2012 में ही हुआ। इसे झूंसी विधानसभा को ख़त्म करके और प्रतापपुर के कुछ हिस्सों को मिलाकर फूलपुर के नाम से नई विधानसभा बनाई गई है।
फूलपुर संसदीय सीट का इतिहास

– 1952 जवाहरलाल नेहरू कांग्रेस
– 1957 जवाहरलाल नेहरू कांग्रेस
– 1962 जवाहरलाल नेहरू कांग्रेस
– 1964 विजयलक्ष्मी पंडित कांग्रेस उपचुनाव
– 1967 विजयलक्ष्मी पंडित कांग्रेस
– 1969 जनेश्वर मिश्रा संयुक्त सोसीयलिस्ट पार्टी उपचुनाव
– 1971 विश्वनाथ प्रताप सिंह कांग्रेस
– 1977 कमला बहुगुणा भारतीय लोक दल
– 1980 बीडी सिंह जनता पार्टी सेक्युलर
– 1984 राम पुजन पटेल कांग्रेस
– 1989 राम पुजन पटेल जनता दल
– 1991 राम पुजन पटेल जनता दल
– 1996 जंग बहादूर पटेल समाजपार्टी पार्टी
– 1998 जंग बहादूर पटेल समाजवादी पार्टी
– 1999 धर्मराज पटेल समाजवादी पार्टी
– 2004 अतीक अहमद समाजवादी पार्टी
– 2009 कपिल मुनी करवरिया बहुजन समाज पार्टी
– 2014 केशव प्रसाद मौर्य भारतीय जनता पार्टी
– 2018 नागेन्द्र प्रताप सिंह पटेल समाजवादी पार्टी उपचुनाव

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