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राजनीति

भाजपा बनाम सपा-बसपा: यूपी से तय होगा कौन बनेगा अगला पीएम

उत्तर प्रदेश में सपा, बसपा, रालोद और कांग्रेस राजनीतिक शक्तियां
लोकसभा चुनावों में भाजपा को हराने के लिए सपा- बसपा ने मिलाए हाथ
यूपी की 80 लोकसभा सीटों का अगली सरकार के गठन में अहम रोल

नई दिल्लीApr 21, 2019 / 08:30 am

Manoj Sharma

Rahul, Mulayam, Mayawati, Narendra Modi

मोदी बनाम माया-मुलायम: यूपी से तय होगा कौन बनेगा अगला पीएम

नई दिल्ली। राजनीति में कोई न तो सदा के लिए दोस्त होता है और न ही दुश्मन। यह बात उस वक्त फिर साबित हो गई, जब कैराना लोकसभा सीट के लिए हुए उपचुनाव में भाजपा को हराने के लिए सपा-रालोद गठबंधन की उम्मीदवार तबस्सुम को बसपा और कांग्रेस का सहयोग मिल गया था। कुछ साल पहले तक सपा, बसपा और रालोद जमकर कांग्रेस की खिलाफत करते थे, तो गेस्ट हाउस कांड के बाद सपा और बसपा की हालत भी नदी के दो किनारों जैसी हो गई थी, जो पास-पास रहते हुए भी कभी नहीं मिलते।
मिशन 2019 के लिए सपा-बसपा ने मिलाया हाथ

2014 के लोकसभा चुनावों और 2017 के उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में भाजपा की एकतरफा जीत की सबसे बड़ीं वजह थी विरोधी दलों का बंटा होना। यह अमित शाह और नरेंद्र मोदी की पॉलिटिकल इंजीनियरिंग का ही कमाल था कि 2014 के लोकसभा चुनावों में 19 फीसदी वोट हासिल करने के बावजूद बसपा एक भी सीट नहीं जीत सकी थी। सपा और कांग्रेस की हालत भी दयनीय ही थी।
कैराना लोकसभा उपचुनाव बना था भाजपा बनाम सपा-बसपा-कांग्रेस

कैराना लोकसभा उपचुनाव के बाद जब सपा-रालोद गठबंधन की उम्मीदवार तबस्सुम ने अपनी जीत के लिए रालोद व सपा के साथ-साथ बसपा और कांग्रेस को भी धन्यवाद दिया, तो भाजपा के खिलाफ यूपी में विपक्ष के एक होने की सुगबुगाहट शुरू हो गई। कैराना से पहले गोरखपुर और फूलपुर के उपचुनावों में सपा को कांग्रेस, बसपा और रालोद का समर्थन मिला था।
यूपी में 2017 में सपा-बसपा को मिले थे कुल 44 फीसदी वोट

अगर 2017 विधानसभा चुनावों की बात करें तो सपा और बसपा को करीब 22-22 फीसदी वोट मिले थे। स्पष्ट है कि दोनों के गठबंधन को करीब 44 फीसदी वोट मिले, जो भाजपा की नींद उड़ाने के लिए पर्याप्त है। हालांकि कांग्रेस इस गठबंधन में शामिल नहीं है, लेकिन बिना कांग्रेस के भी अगर 44 फीसदी वोट सपा-बसपा गठबंधन को मिलते हैं, तो उत्तर प्रदेश से योगी और मोदी की भाजपा को 2014 जैसी सफलता अब मिलती नजर नहीं आ रही। रालोद के शामिल होने की वजह से जाट वोटबैंक भी अब सपा-बसपा गठबंधन के साथ है।
भाजपा की मुश्किलों की वजह

23 साल पहले जब कांशीराम और मुलायम सिंह यादव ने हाथ मिलाया था, तब अयोध्या के विवादित ढांचे को लेकर भाजपा की राजनीति चरम पर थी। भाजपा हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण करने में कुछ सफल होती नजर आ रही थी। लेकिन सपा-बसपा गठबंधन ने तब भी उत्तर प्रदेश में भगवा झंडा लहराने नहीं दिया। मुलायम को पिछड़ों का, तो कांशीराम को दलितों का नेता माना जाता था और इन दो वोटबैंक के साथ आने की वजह से ही तब भाजपा की पराजय हुई थी। 2019 के लोकसभा चुनावों में वही कहानी एक बार फिर दोहराने की तैयारी चल रही है। पटकथा लिखी जा चुकी है, कलाकार अपने-अपने काम में जुटे हुए हैं। 23 मई को स्पष्ट हो जाएगा कि भाजपा की हिंदू वोटों के ध्रुवीकरण की कोशिश सफल रही या पिछड़े व दलितों को एक साथ लाकर यूपी में अपना झंडा फहराने में सपा-बसपा-रालोद गठबंधन सफल रहता है।
अगली सरकार के गठन में यूपी की महत्वपूर्ण भूमिका

केंद्र में 2014 में भाजपानीत एनडीए सरकार बनने में यूपी की उन 71 लोकसभा सीटों का बहुत बड़ा योगदान था, जिन पर भाजपा ने जीत हासिल की थी। राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, पंजाब, बिहार और गुजरात में भाजपा के पहले से कमजोर होने की वजह से यूपी का महत्व पीएम मोदी के लिए काफी बढ़ गया है। ऐसे में अगर यूपी में भाजपा को पहले जैसी सफलता नहीं मिलती, तो एनडीए और नरेंद्र मोदी के सामने ऐसे सवाल उठ खड़े होंगे, जिनके जवाब उनके पास नहीं होंगे। दरअसल यूपी के चुनाव परिणाम से काफी हद तक स्पष्ट हो जाएगा कि किस राजनीतिक दल या गठबंधन की सरकार बनने जा रही है और कौन होगा भारत का अगला प्रधानमंत्री?
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