भले ही कमलनाथ ने दोनों विधायकों के साथ होने का दावा किया था, लेकिन जब 16 मार्च को राज्यपाल ने सदन के भीतर बहुमत परीक्षण के लिए कहा था, उस दिन दोनों ही विधायक विधानसभा नहीं पहुंचे। जबकि दोनों ही पार्टियों ने कांग्रेस के पक्ष में मतदान करने के लिए पार्टी व्हिप जारी किया था। हालांकि उस दिन बहुमत परीक्षण नहीं हुआ। उसके बाद लगातार यह दोनों कांग्रेस से दूरी बनाए हुए थे। यह बात और है कि कांग्रेस आखिर तक इन्हें अपने पाले में होने की बात कह रही थी।
संजू कुशवाह मूलत: भाजपा से ही हैं और राजेश शुक्ला की नजदीकियां भी भाजपा नेताओं से हैं। दोनों ही भाजपा के टिकट पर विधानसभा पहुंचना चाह रहे थे। लेकिन राजनीतिक हालातों के चलते दूसरी पार्टियों से मैदान में उतरे और जीतकर विधानसभा पहुंचे। उसके बाद से ही इनके भाजपा के करीब होने की बात कही जाती रही है। यह बात और है कि यह दोनों विधायक हमेशा पार्टी की नीति पर चलने की बात करते रहे हैं। लेकिन अब दोनों ही भाजपा में आने की तैयारी में हैं। उन्हें मालूम है कि उन पर दलबदल लागू नहीं होगा और ऐसे में उनकी विधायकी को कोई खतरा नहीं है। अब सिर्फ संकट इस बात का है कि भाजपा इनको बदले में क्या देगी। सिर्फ टिकट का भरोसा या फिर सत्ता में हिस्सेदारी भी। यह सवाल अभी उलझा हुआ है और यही कारण है कि दोनों नेता अपने बारे में स्पष्ट निर्णय की उम्मीद कर रहे हैं।