आंध्र प्रदेश के लिए स्पेशल पैकेज की मांग को लेकर वाइएसआर कांग्रेस और टीडीपी ने संसद में अविश्वास प्रस्ताव नोटिस दिया था। इसके लिए विपक्ष को अविश्वास प्रस्ताव के लिए 50 सांसदों का समर्थन चाहिए था, लेकिन सदन के सत्र के दौरान लगातार विपक्षी एकजुटता में विद्रोह जैसे हालात दिखाई दिए। कभी किसी दल ने कभी किसी दल ने विपक्ष का दामन छोड़ दिया। नतीजा विपक्ष संसद में 50 सांसदों की संख्याबल को पूरा नहीं कर पाया और अविश्वास प्रस्ताव पेश ही नहीं हुआ। यहां विपक्ष को सत्ता पक्ष से जबरदस्त मुंह की खानी पड़ी। राजनीतिक जानकारों की मानें तो इससे देश में भाजपा की छवि सुधरी।
एक बार फिर उसी राह पर
भाजपा के विजयी रथ को रोकने के लिए एक बार फिर विपक्ष ने कमर कसी है। मानसून सत्र में पहले दिन से ही अविश्वास प्रस्ताव को लेकर हंगामा हो रहा है। आखिरकार 20 जुलाई यानी आज ये प्रस्ताव पेश भी होना है जिसके लिए पक्ष और विपक्ष वोट देंगे। लेकिन एक बार फिर वही सवाल क्या विपक्ष को उम्मीद है कि वो इस प्रस्ताव में सफल होगी। नहीं…दरअसल, विपक्ष के पास संख्या बल नहीं है, ऐसे में सवाल उठता है कि अविश्वास प्रस्ताव से विपक्ष का कौन-सा हित सधने वाला है?
जनता के बीच बनेगी पैठ
भले ही विपक्ष अविश्वास प्रस्ताव के जरिये 2019 के लोकसभा चुनाव पर निशाना साध रहा है, लेकिन इस अविश्वास प्रस्ताव के नजीतें जो फिलहाल पूरी तरह भाजपा के पक्ष में जाते दिख रहे हैं वो बताते हैं कि इससे निश्चित रूप से मोदी और भाजपा की छवि अपने वोटरों के साथ-साथ जनता के बीच और मजबूत होगी। जब आप किसी के खिलाफ बार आरोप लगाकर साबित नहीं कर पाते हैं तो निश्चित रूप से आपकी छवि पर नकारात्म और सामने वाले की छवि पर सकारात्मक असर दिखाई देता है और ऐसा ही मोदी सरकार के साथ होने वाला है।
ये है आंकड़ों का गणित
545 सदस्यों वाली लोकसभा में मौजूदा समय में 532 सांसद हैं। यानी भाजपा को बहुमत हासिल करने के लिए महज 267 सांसद चाहिए। लोकसभा अध्यक्ष को हटाकर बीजेपी के पास अभी 273 सदस्य हैं। नतीजा शीशे की तरह साफ है ये सौदा भाजपा के लिए हर हाल में फायदे का सौदा है। क्योंकि अभी इसमें एनडीए घटक दलों को तो शामिल ही नहीं किया है, इनके शामिल होने के बाद भाजपा प्रचंड बहुमत से जीतेगी। ऐसे में विपक्ष को एक बार मात को मिलेगी साथ ही हो सकता है जनता के बीच अपनी पैठ को भी कमजोर न कर बैठें।