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एनआरसी: भाजपा के सामने नई मुसीबत, 30 लाख हिंदुओं को छोड़ना पड़ सकता है असम

एनआरसी अंतिम ड्राफ्ट के मुताबिक असम में 40 लाख अवैध नागरिक रहते हैं। इनमें अधिकतर हिंदू हैं।

Oct 05, 2018 / 02:29 pm

Dhirendra

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एनआरसी: भाजपा के सामने नई मुसीबत, 30 लाख हिंदुओं को छोड़ना पड़ सकता है असम

नई दिल्‍ली। राष्‍ट्रीय नागरिकता रजिस्‍टर के अंतिम ड्राफ्ट के मुताबिक असम में 40 लाख लोग अवैध हैं। 30 जुलाई को ड्राफ्ट जारी होने के बाद इस बात को लेकर राजनीति गरम हो गया था। लेकिन दो महीने बाद ही वहां के लोग भाजपा अध्‍यक्ष अध्यक्ष अमित शाह के संसद में दिए गए 40 लाख घुसपैठिए वाले बयान पर ऐतराज जता रहे हैं। दो महीनों में यह साफ हो गया है कि एनआरसी से बाहर रखे गए 40 लाख लोगों में से ज्‍यादातर संख्‍या हिंदुओं की है। इस बारे में अभी कोई आधिकारिक आंकड़ा मौजूद नहीं है। अनाधिकारिक आंकड़ों पर विश्‍वास करें तो हिंदुओं की संख्‍या 20 से 22 लाख तक है। आरएसएस के एक नेता ओशीम दत्ता की मानें तो असम नागरिकता रजिस्टर से बाहर रह गए हिंदुओं की संख्या 30 लाख हो सकती है। अगर ये बात सही है तो भाजपा के लिए यह सबसे बड़ी मुसीबत साबित हो सकती है।
गोरखा केवल मरने के लिए हैं
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक भारत-म्यांमार को जोड़नेवाली स्टिलवेल रोड पर रहने वाले डमरू उपाध्याय की मोमो की दुकान है। वो भाजपा विधायक भास्कर शर्मा और अपनी तस्वीर के पास बैठे गोरखाली डमरू कहते हैं कि गोरखा लोगों को सिर्फ मरने के लिए तैयार किया जाता है। आओ देश के लिए मर जाओ। डमरू के परिवार के सदस्‍यों नाम भी एनआरसी ड्राफ्ट में नहीं है। उनका कहना है कि 22 सालों से संघ और भाजपा से जुड़े हैं। अब हमें यही सिला मिलेगा कि असम छोड़कर जाना पड़ेगा। इसी तरह बिहार के मूल निवासी चंद्र प्रकाश जायसवाल के मुताबिक़ लोगों में डर है कि अगर अंतिम एनआरसी में भी नाम नहीं आया तो क्या होगा? जायसवाल के पिता और चाचा की जायदाद साझी थी। इसलिए श्याम सुंदर जायसवाल के पास कोई दस्तावेजे नहीं है। जो थे वो 1950 के असम भूकंप की भेंट चढ़ गए जब सादिया और पास के इलाके की आबादी का बड़ा हिस्सा नदी में समा गया था। जायसवाल का परिवार तीन पीढ़ी पहले असम आया था, लेकिन अब उनका सवाल एक ही है असम से निकाले गए तो जाएंगे कहां?
आदिवासियों की दिक्कतें
असम कभी मुगल साम्राज्य का भी हिस्सा नहीं रहा। यह ब्रितानी शासनकाल में 1826 में आया, जिसके बाद यहां चाय की खेती शुरू हुई और झारखंड, छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों से बड़े पैमाने पर आदिवासी यहां लाए गए। इनमें से अधिकांश का नाम एनआरसी में नहीं है। इन आदिवासियों में से अधिकांश के पास वो दस्तावेज नहीं है जो आवेदन के लिए जरूरी हैं। न इनके पास उन्हें जुटाने की समझ या आर्थिक सामर्थ्य है और न ही किसी तरह का संगठनात्मक सहयोग।बहुतों ने तो एनआरसी के लिए दरख्वास्त ही नहीं दिया। साफ है कि ऐसे आदिवासियों के नाम एनआरसी में नहीं हैं। इसी तरह से बिहार, उत्तर प्रदेश और बंगाल जैसे सूबों से ग्रो मोर फूड के नाम पर खेतिहर मजदूर भी ब्रितानियों के दौर में ही लाए गए थे। बहुत सारे लोग वहां से भी असम आये जो पहले पूर्वी पाकिस्तान और अब बांग्लादेश के नाम से जाना जाता है।

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