अपनी इसी सियासी उधेड़बुन का जिक्र उन्होंने हाल ही में लॉन्च अपनी किताब, इंडिया टुडे : कन्वर्सेशन इन द नेक्स्ट जनरेशन ऑफ पॉलिटिकल लीडर्स ’ में की है। नई किताब में उमर अब्दुल्ला ने कहा कि वह न तो अत्यधिक दक्षिणपंथी राष्ट्रवादी राजनेताओं के लिए खुद को उपयुक्त साबित कर सकते हैं और न ही उन लोगों के लिए कश्मीरी बनना चाहूंगा जो भविष्य में कश्मीर को भारत के हिस्से के रूप में नहीं देखना चाहते हैं।
संसदीय समिति ने FB इंडिया से 200 मिनट में पूछे 100 सवाल, जवाब देने के लिए मिले 7 दिन नजरबंदी मेरी सोच को नहीं बदल सका उन्होंने कहा कि 232 दिन के बंदी काल ने उन्हें कड़वा, नाराज और बहुत ज्यादा असंतुष्ट कर दिया है। लेकिन यह घटना मेरी उस सोच को नहीं बदल पाएगा कि जम्मू और कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है।
स्वयं के लिए सच होना सबसे अच्छा हालांकि, नजरबंदी और 5 अगस्त की परिस्थितियों ने मुझे अपनी सोच को बदलने के लिए प्रेरित किया लेकिन इस मुद्दे पर मेरा जो स्टैंड है उसे बदल नहीं पाया। ऐसा इसलिए कि मुझे आज भी इस बात पर विश्वास नहीं है कि जम्मू-कश्मीर का भारत से अलग कोई भविष्य हो सकता है। ये बात अब्दुला ने प्रदीप छिब्बर और हर्ष शाह को दिए एक साक्षात्कार में कही। इसलिए अब मैंने यह निर्णय लिया है कि किसी के लिए अच्छा बनने के बदले स्वयं के लिए सच होना सबसे अच्छा है।
नई दिल्ली ने कहीं का नहीं छोड़ा उमर अब्दुल्ला का मानना है कि जम्मू-कश्मीर के साथ बहुत बुरा बर्ताव हुआ है। इतना बुरा कि हमारा जम्मू-कश्मीर से किया हर वादा टूट गया। मेरे जैसे लोगों के लिए अब यह कहना मुश्किल हो गया है कि मैं खुद को भारत के जम्मू-कश्मीर होना चाहूं। नई दिल्ली ने हमें इस बारे में बात करने के लिए कहीं का नहीं छोड़ा। अपने 8 महीने की नजरबंदी पर चर्चा करते हुए कहा कि पहले उन्होंने सोचा था कि एक या दो सप्ताह तक चलेगा। पर वैसा नहीं हुआ।
लोबसंग सांग्ये ने साधा चीन पर निशाना, कहा – तिब्बत समस्या का समाधान के लिए दलाईलामा से बात करें ‘शी’ अब लोगों को मतदान करने के लिए कैसे कहूं? उन्होंने कहा कि जम्मू और कश्मीर में चुनाव लड़ने के लिए हमने अपनी जान की बाजी लगा दी। इसके उलट विडंबना यह है कि हम पर आरोप लगाया गया कि हम इसे अपने कब्जे में रखना चाहते है। जबकि आतंकियों के बहिष्कार कॉल और उग्रवादी खतरे के बावजूद लोगों को मतदान के लिए बाहर आने और बड़ी संख्या में मतदान करने के लिए अपील की।
मुझे कभी इस बात का एहसास नहीं हुआ कि यह एक ऐसी चीज है जिसका इस्तेमाल मेरे खिलाफ किया जा सकता है। अब मैं फिर से लोगों को बाहर आने और मतदान करने के लिए कैसे कह सकता हूं?
खुद को बदलने की कोशिश कर रहा हूं बता दें कि 5 अगस्त, 2019 को जम्मू-कश्मीर से धारा 370 और 35ए की समाप्ति के बाद उमर अब्दुल्ला को हिरासत में ले लिया गया था। फरवरी में उन्हें सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम ( PSA ) के तहत नजरबंद कर दिया गया। 24 मार्च, 2020 को रिहा कर दिया गया। उनके पिता व पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला ( Farooq Abdullah ) को भी 221 दिनों की हिरासत के बाद 13 मार्च को रिहा किया गया था। पीडीपी नेता और पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ( Mehbooba Mufti ) आज भी अपने घर में नजरबंद हैं।
चीन के खिलाफ भारत को मिला अमरीका का खुला समर्थन, दूसरे देशों से की इस बात की अपील उमर अब्दुल्ला के मुताबिक नजरबंदी के दौरान कई तरह के भावनाओं उतार-चढ़ाव से गुजरा।जिस भारी भावना के साथ मैं नजरबंदी से बाहर आया हूं वह पूरी तरह से कड़वाहट और गुस्सा से भरा है, जिसे मैं शब्दों में बदलने की कोशिश कर रहा हूं। मुझे लगता है कि जब तक मैं ऐसा नहीं कर लूंगा तब तक उससे बाहर नहीं निकलना मुश्किल है।