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सीटों की सियासत: उत्तर पर भारी पड़ रहा दक्षिण, वोटर बढ़े पर सांसद जस के तस

यूरोप और अफ्रीका में केवल 1 लाख से आबादी पर चुना जाता है सांसद
कम जनसंख्या पर सांसद होने पर विकास कार्य में तेजी संभव है
40 वर्षों से स्थिर हैं लोकसभा की सीटों की संख्या, कुछ राज्यों को नुकसान

नई दिल्लीJul 01, 2019 / 03:33 pm

Manoj Sharma

Population-wise seats

सीटों की सियासत: उत्तर पर भारी पड़ रहा दक्षिण, वोटर बढ़े पर सांसद जस के तस

देश में चार दशक से लोकसभा सीटों की संख्या स्थिर होने का नुकसान कुछ राज्यों को उठाना पड़ रहा है। सासंदों की संख्या जब स्थिर हुई तब से जनसंख्या में काफी इजाफा हो चुका है। संख्या स्थिर होने से राजनीतिक संतुलन भी गड़बड़ाया है। देश के सभी राज्यों के मतों का मूल्य असमान हो गया है।
भारतीय सांसद विश्व में सबसे अधिक जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करते हैं जो कि वैश्विक औसत से काफी अधिक है। संसदीय क्षेत्र में अधिक जनसंख्या होने के कारण जनप्रतिनिधि ठीक से अपने क्षेत्र का विकास भी नहीं करा पा रहे हैं और लोगों तक उनकी पहुंच भी सीमित हो गई है। यदि कम जनसंख्या पर प्रतिनिधि चुना जाएगा तो वो अपने क्षेत्र का ठीक से विकास करवा पाएगा।
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1971 तक बढ़ती रही सीटों की संख्या

1951, 1961 और 1971 की जनगणना के आधार पर परिसीमन किया गया। दक्षिण भारत के राज्यों में जनसंख्या कम बढऩे से हिंदी पट्टी राज्यों की लोकसभा सीटें अधिक बढ़ी। इससे दक्षिण के राज्यों की राजनीतिक ताकत कम होने लगी। इसको उन्होंने जनसंख्या नियंत्रण से जोडकऱ सीटों की संख्या स्थिर करवा दी।
..तो हिन्दी पट्टी में बढ़ जाएं 27 सीट

यदि संविधान के मूल प्रावधान को जस की तस आज के हालात में लागू कर दें तो लोकसभा का स्वरूप पूरी तरह बदल जाएगा। राजस्थान, बिहार, उत्तरप्रदेश और बिहार जैसे हिन्दीभाषी राज्यों में ही 27 सीटों की बढ़ोतरी हो जाएगी। दक्षिण राज्य तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में 22 सीटें कम हो जाएंगी।
1971 की जनगणना के आधार पर हुए परिसीमन में बड़े राज्यों में 10 से 10.6 लाख की आबादी पर एक लोकसभा सीटे बनी थी लेकिन अब काफी फर्क आ गया है। यदि 2016 के मिड ईयर सर्वे के आधार पर देखें तो राजस्थान का एक सांसद 30 लाख जबकि केरल का एक सांसद 18 लाख से भी कम जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करता है।
प्रति सांसद 4 गुना अधिक हुए वोटर

वर्तमान में प्रत्येक सांसद 1951-52 के पहले चुनाव मुकाबले 4 गुना अधिक वोटर्स का प्रतिनिधित्व कर रहा है। 1951 में जहां 5 लाख वोटर एक सांसद चुनते थे वहीं अब लगभग 20 लाख वोटर एक सांसद चुनते हैं। छोटे राज्यों में कम से कम एक सांसद छोटे राज्य और केंद्रशासित प्रदेशों के सांसद कम जनसंया का प्रतिनिधित्व करते हैं, लेकिन यह शुरू से यह आवश्यक माना गया कि छोटे से छोटे राज्य से भी एक लोकसभा का सांसद तो चुना जाना चाहिए।
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लक्षद्वीप का वोट सबसे ताकतवर

देश के सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों की तुलना करें तो लक्षद्वीप के वोट की वैल्यू सबसे अधिक है। देश की प्रत्येक लोकसभा सीट पर लक्षद्वीप सीट से 30 गुना अधिक वोटर हैं। इस तरह से लक्षद्वीप का 1 वोट औसत शेष भारत के 30 वोटों के बराबर है।
वैश्विक स्थिति

विश्व में भी भारत में प्रति सांसद जनसंख्या का अनुपात सबसे अधिक है। यहां प्रत्येक लोकसभा सांसद लगभग 15 लाख लोगों का प्रतिनिधित्व करता है जबकि वैश्विक औसत 1,45,880 प्रति सांसद है। यूरोप, अफ्रीका में तो 1 लाख से आबादी पर ही सांसद चुना जाता है। भारत में बढ़ती जनसंख्या के नुकसान सामने आ रहे हैं, जिन राज्यों में जनसंख्या पर नियंत्रण पा लिया गया, वहां सांसदों की सीटें कम होने की आशंका पैदा हो रही है।

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