विपक्ष कहना है कि जब सुप्रीम कोर्ट इस मामले में स्पष्ट कर चुका है कि यह सिविल मामला है तो सरकार इसमें सजा का प्रावधान कर इसे आपराधिक मामला क्यों बनाना चाहता है। शरीयत से वाकिफ माकपा के सांसद मोहम्मद सलीम का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को कानून बनाने के निर्देश नही दिए थे बल्कि उसे अपनी राय देने को कहा था।
वैसे भी जब किसी मामले में सुप्रीम कोर्ट की कोई रूलिंग आ जाती है तो वह अपने आप कानून बन जाता है, फिर सरकार बिल क्यों ला रही है। देश को यह समझ लेना चाहिए कि यह वोटों की फसल उगाने के मामला है। सरकार पूरे देश की आंखों में धूल झोंकने की कोशिश कर रही है। कांग्रेस के दो सांसदों ने पार्टी लाइन की मजबूरी जताते हुए बताया कि मोदी सरकार इस मामले में विपक्ष को फंसाने के लिए इस कर रही है।
उन्होंने कहा सुप्रीम कोर्ट ने कानून बनाने को नही कहा, वैसे भी तलाक सिविल मामला है, अगर तीन तलाक पर सजा का प्रावधान होगा तो हिन्दू कोड बिल में तलाक के मामलों को सजा से कैसे अलग रखा जा सकता है। फिर उसमें भी सजा की मांग उठ सकती है। सरकार समाज के दैनंदिन जीवन मे नाक घुसेड़ने की कोशिश कर रही है।
इधर कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी दलों ने तय किया है कि इस मामले में एकजुट होकर बिल को प्रवर समिति को भेजने पर जोर दिया जाए, ताकि उसके एक एक प्रावधान पर ठीक से चर्चा हो और गैरजरूरी प्रावधानों को हटा दिया जाए। विपक्ष ने तय किया है कि वोटों से जुड़े इस मामले में सरकार को श्रेय नहीं लेने दिया जाए।