गृह मंत्री राजनाथ सिंह कश्मीर गए। वहां पर स्थानीय लोगों से बातें की। बाशिंदों के बीच नए सिरे से रिश्ते शुरू करने का संकेत देने की कोशिश की। अपने दौरे में राजनाथ ने कश्मीरियत को काफी अहमियत दी। लेकिन ये सब क्यों हो रहा है इस बात के लेकर वहां की राजनीति में रुचि रखने वाले लोग सवाल करने लगे हैं।
भटकाव की राह पर युवा
दरअसल केंद्र सरकार की सभी सख्तियों के बावजूद घाटी में सरकार को आतंकियों पर नियंत्रण रखने में आंशिक सफलता जरूर मिली लेकिन युवाओं के बीच नाराजगी बढ़ने की रिपोर्ट भी सामने आई। गुमराह युवकों को भारत विरोधी अभियान में शामिल करने के लिए तमाम तरह के लालच दिए गए, नफरत की दीवार खड़ी करने की कोशिश की गई। इस तरह की रिपोर्टा सामने आने के बाद से ही केंद्र सरकार चिंतित दिखाई देने लगी है।
बातचीत का रास्ता खोलने के मूड में सरकार
इस बार के दौरे के दौरान तमाम पक्षों से बात कर राजनाथ ने संकेत दिया कि अगर सकारात्मक रुख दिखता है तो वह खुले मन से बातचीत का रास्ता खोलने को तैयार हैं। सरकार ने रमजान के बाद भी संघर्ष विराम बढ़ाने के संकेत दिए। वह भी तब जब सरकार की पहल के बाद भी वहां हिंसा रुकी नहीं है। स्थानीय लोगों का कहना है कि केंद्र के इस कदम का कितना असर होगा अभी यह कहना मुश्किल है लेकिन बातचीत के लिए बुनियाद खड़ी करना अभी सबसे पहले और प्राथमिक जरूरत है जिसे पूरा करते हुए राजनाथ नजर आए।
चुनौतियां कम नहीं
केंद्र सरकार के इस पहल के बावजूद कई चुनौतियां हैं। हुर्रियत और अलगाववादी नेताओं के खिलाफ कानूनी केस दर्ज किए जा चुके हैं। एनएआई और ईडी जैसे केंद्रीय एजेंसी इन मामलों की जांच भी कर रही है। सीमा पार से आतंकवाद जारी है। इनके बीच सरकार किस तरह बीच का रास्ता अपनाएगी। साथ ही सेना को विश्वास में लेना भी सरकार की प्राथमिकता में है। गृह मंत्री के लिए इन सभी मुद्दों के बीच संतुलन बनाना आसान नहीं होगा।