जनवरी, 2018 में मासूम बच्ची के साथ बलात्कार के बाद भाजपा नेताओं ने आरोपी के समर्थन में रैली की जिसने मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती और उनकी पार्टी के नेताओं को असहज कर दिया था। दूसरी ओर सहयोगी दल का ही आरोपियों के पक्ष में रैली करना गठबंधन के लिए ताबूत में कील ठोकने के बराबर था। इसके अलावा इस घटना के बाद महबूबा मुफ्ती को स्थानीय लोगों का रोष भी झेलना पड़ा क्योंकि सीएम होने के नाते महिलाओं की सुरक्षा उनकी सबसे बड़ी जिम्मेदारी थी। यह मामला इतना तूल पकड़ लिया कि कठुआ कांड के आरोपियों को बचाने के लिए आयोजित रैली में शामिल भाजपा के दो मंत्रियों की पीडीपी ने इस्तीफा तक मांग लिया। इस्तीफा न देने की स्थिति में गठबंधन खत्म्ा करने की भी धमकी दे डाली थी। उस समय तो भाजपा नेतृत्व ने अपने मंत्रियों से इस्तीफा दिला और मंत्रिमंडल का पुनर्गठन कराकर इस मामले को रफा दफा कर दिया था। लेकिन पार्टी हाईकमान को ये बात हजम नहीं हुई। उसी का नतीजा है कि पार्टी ने महबूबा सरकार को गिराकर अपना अलग रुख अख्तियार कर लिया है।
इसके अलावा सवा तीन साल के कार्यकाल में कुछ अन्य मामले भी थे जो गठबंधन के बीच मतभेद के कारण बने। इनमें अलगाववादी संगठन हुर्रियत से बातचीत को लेकर भाजपा का रुख हमेशा कड़ा रहना भी पीडीपी को हजम नहीं था। स्थानीय पार्टी होने के नाते महबूबा मुफ्ती हमेशा चाहती थीं कि घाटी में शांति और अमन के लिए बातचीत का रास्ता निकाला जाए। इसी तरह सेना के मेजर गोगोई ने एक स्थानीय नागरिक फारूक अहमद डार को आर्मी की जीप के बोनट पर बांधकर बडगाम के दर्जनों गांवों में घुमाया था। इसके बाद से सेना की ओर से उन्हें इनाम दिया गया और जम्मू कश्मीर सरकार ने मेजर पर FIR दर्ज करा दी जो बाद में विवाद का कारण बना। साथ ही पाकिस्तान से बातचीत, 370 का मसला और युद्धविराम का मसला भी गठबंधन के लिए नासूर साबित हुआ।