भाजपा के साथ जाने का निर्णय पड़ा भारी भाजपा के साथ गठबंधन तोड़ने के निर्णय में चंद्रबाबू नायडू ने काफी देर कर दी थी। जनता को उनसे उम्मीद थी कि राज्य में विभाजन के बाद नायडू राज्य में जो परेशानियां है उसे सुलझाएंगे। इसके लिए नायडू ने केंद्र सरकार से आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्ज देने का अनुरोध किया। यही वादा वर्ष 2014 में पीएम मोदी ने भी किया था, परंतु भाजपा ने इसे गंभीरता से नहीं लिया। इसे जानते हुए भी नायडू वर्ष 2018 तक राज्य में भाजपा के साथ गठबंधन में रहे जिससे आम जनता का मोह दोनों ही पार्टियां से भंग होने लगा।
प्रदेश की चिंता कम भाजपा को हराने की चिंता अधिक एनडीए से गठबंधन तोड़ने के बाद नायडू ने आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा का मुद्दा छोड़ अन्य मुद्दों पर धरना प्रदर्शन शुरू कर दिया। केंद्र के साथ की लड़ाई को भाजपा बनाम आंध्र प्रदेश बदलने में नायडू को देर नहीं लगी। सीबीआई से राज्य में आम सहमति वापस लेना, कभी चुनावों में EVM मशीन को लेकर विपक्ष के साथ छेड़छाड़ का मुद्दा उठाना, नायडू को फोकस बदलता रहा। इससे आम जनता को यकीन हो गया कि ये लड़ाई उनके प्रदेश की नहीं, बल्कि टीडीपी और भाजपा की है। लोकसभा चुनावों में भी नायडू की रणनीति आंध्र प्रदेश की बजाय भाजपा को हराने की थी। ये टीडीपी ही थी जिसने 2018 में केंद्र सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव की पहल की थी। नायडू की पहल पर ही दिसम्बर 2018 में विपक्ष की बैठक बुलाई गई थी। इस बैठक का उद्देश्य वर्ष 2019 में भाजपा को हराने की रणनीति पर चर्चा करना था।
कांग्रेस से नजदीकी चंद्रबाबू नायडू ने जिस तरह 2019 के लिए
महागठबंधन बनाने के लिए प्रयास किये वो भी पूरा देश देख रहा था। चंद्रबाबू नायडू भाजपा से तो अलग हो गए, परंतु कांग्रेस से हाथ मिलाने के लिए प्रयास करते हुए दिखे। ये भी एक तथ्य है कि कांग्रेस से अलग होकर ही नायडू बाद में एनटी रामाराव द्वारा गठित तेदेपा में शामिल हुए थे। नायडू की कांग्रेस से नजदीकी के कारण पांडुला रवींद्र बाबू समेत कई नेता टीडीपी का साथ छोड़ने लगे थे, फिर भी नायडू पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा।
इसके अलावा जगन मोहन रेड्डी की चुनावी तैयारियों को गंभीरता से न लेने की गलती भी चंद्रबाबू नायडू पर भारी पड़ी। जगन मोहन रेड्डी लगातार सड़क से लेकर आम जनता के घरों तक अपनी पहुँच बना रहे थे। इससे आम जनता ने भी रेड्डी पर भरोसा जताया और उनकी पार्टी को बड़ी जीत मिली। वर्ष 2019 में आंध्र प्रदेश में 175 विधानसभा सीटों में से तेलुगु देशम पार्टी को केवल 23 सीटें ही मिली जबकि 151 सीटों के साथ जगन मोहन रेड्डी ने आंध्र प्रदेश की कमान संभाली ली। उसी वर्ष लोकसभा चुनावों में भी चंद्रबाबू नायडू की पार्टी को 25 सीटों में से केवल तीन सीट ही मिली थीं।
इस हार के लिए तब राज्य में सत्ता विरोधी लहर तो कारण थी ही, परंतु नायडू की गलतियाँ भी इसका कारण रहीं। अब चंद्रबाबू नायडू प्रदेश में फिर से सत्ता पाने के लिए प्रयास कर रहे हैं। इसके लिए कभी जनता से संवाद कर रहे हैं, तो कभी रेड्डी सरकार की नाकामियों को जनता तक पहुंचा रहे।
इसी क्रम में टीडीपी प्रमुख का कहना है कि जगन मोहन रेड्डी और उनकी पार्टी लगातार राज्य में उनका अपमान कर रही है। इस बीच विधानसभा में सत्तापक्ष द्वारा नायडू की पत्नी नारा भुवनेश्वरी अभद्र टिप्पणी से नायडू इतने आहत हुए कि कार्यकर्ताओं से बातचीत में रो पड़े और विधानसभा तभी जाने की बात की जब सत्ता में वापस आएंगे। इससे जुड़ा वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल भी होने लगा। टीडीपी के कार्यकर्ताओं ने प्रदेशभर में प्रदर्शन शुरू कर दिया है। इससे प्रदेश की जनता में नायडू को लेकर सहानुभूति अवश्य जागरूक हुई होगी। इसका प्रभाव प्रदेश की महिला मतदाताओं पर देखने को मिल सकता है। सोशल मीडिया पर भी नायडू को लेकर सहानुभूति देखने को मिल रही है।
चंद्रबाबू नायडू अगर अपनी पुरानी गलतियों में सुधार कर आम जनता से फिर से जुड़ाव बनाने मे सफल हो पाते हैं तो हो सकता है कि आंध्र प्रदेश में वो फिर से सत्ता पर काबिज हो अपनी प्रतिज्ञा पूरी कर पाएँ।