पार्टी से सहानुभूति नहीं रखने वाले लोगों को भी आश्चर्य इस बात को लेकर है कि कांग्रेस राष्ट्रीय पार्टी है और वो बार-बार इस तरह की भूल को दोहराती क्यों है जो पार्टी के लिए उल्टा पड़ जाता है। अब कांग्रेस के समक्ष ही ये सवाल है कि जिस बीजेपी को वो दलित विरोधी साबित करना चाहती है क्या पार्टी के नेता इस मुहिम को अंजाम देने में सफल हो पाएंगे।
सबसे पहले कांग्रेस के नेताओं से गलती ये हुई कि उन्होंने गांधी के नाम पर उपवास कार्यक्रम रखने के बावजूद कार्यक्रम का समय बदल दिया। पहले कार्यक्रम का समय सुबह 11 बजे से रखा गया था जिसको बदलकर एक बजे से कर दिया गया। दूसरी भूल ये हुई कि दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष अजय माकन, पूर्व मंत्री हरुन यूसुफ, पूर्व मंत्री व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरविंदर सिंह लवली की लॉबी उपवास शुरू होने से कुछ देर पहले चांदनी चौक पर छोले-भटूरे खाने पहुंच गए। तीसरी गलती ये हुई कि सिंख विरोधी दंगे के आरोपी सज्जन कुमार और जगदीश टाइटलर को मंच पर बुलाने के बाद माकन ने उन्हें वहां से जाने को कहा दिया। तीनों घटनाएं सिलसिलेवार तरीके से हुई। इसके पीछे वजह क्या है ये तो कांग्रेस के नेता ही बता सकते हैं लेकिन यह राहुल गांधी के लिए काफी महंगा साबित हुआ।
इससे पहले कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी एससी-एसटी एक्ट के मुद्दे पर दलितों को खुलकर समर्थन कर बड़ी भूल कर चुके है। ऐसा इसलिए जिस मुद्दे पर उन्होंने राजनीतिक का ये बड़ा दाव खेला है उसको लेकर पार्टी पीएम मोदी सरकार को सीधे कटघरे में खड़ी नहीं कर सकती है। इसमें मोदी सरकार की प्रत्यक्ष तौर पर कोई भूमिका नहीं है। सारा बवाल सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों की वजह से मचा। ये सब जानते हुए कांग्रेस ने हिंसक दलित आंदोलन का खुलकर समर्थन किया। इससे कांग्रेस को गैर दलित और सवर्ण वोटों का नुकसान उठाना पड़ सकता है। कांग्रेस इसी कदम का परिणाम है कि आज सवर्णों और गैर दलितों ने बंद का आह्वान कर रखा है। इस बंद को एक बड़े तबके का मौन समर्थन हासिल है। यह बंद अपना मैसेज देने में सफल हो सकता है, भले ही दलितों के आंदोलन की तरह इस बंद का हिंसक असर न दिखे। इस मुद्दे पर राहुल की अति आक्रामकता भी पार्टी के लिए नुकसानदेह हो सकता है। क्योंकि ये सारी राजनीति केवल दलित वोट बैाक को लेकर केन्द्रित है।