कांठल के कोरोना योद्धा: घर-परिवार और लोगों से दूरी बनाकर लगातार जुटे हुए अपने काम में
प्रतापगढ़. कोरोना जैसी बीमारी का नाम सुनते ही जहां लोगों के पांव अपने आप ही पीछे हो जाते है। ऐसी स्थिति में जिला चिकित्सालय में कार्यरत चिकित्सकों और चिकित्सा स्टाफ ने ठाना है कि हर हाल में कोरोना को हराना है। कोरोना से जंग में कांठल के ये योद्धा हर संभव प्रयास कर रहे हैं। इनमें नमूने लेने वाले डॉ नरेश कुमावत ने तो खुद को परिवार से ही दूर कर रखा है। चिकित्सक और चिकित्सा स्टाफ बिना थके और रुके चिकित्सालय में सेवाएं दे रहे हैं।
कांठल के कोरोना योद्धा: घर-परिवार और लोगों से दूरी बनाकर लगातार जुटे हुए अपने काम में
कोरोना की जांच व उपचार कर रहे चिकित्सकों का एक ही लक्ष्य- हारे कोरोना
पत्रिका से विशेष बातचीत में डॉ. नरेश कुमावत ने बताई दिनचर्या
प्रतापगढ़. कोरोना जैसी बीमारी का नाम सुनते ही जहां लोगों के पांव अपने आप ही पीछे हो जाते है। ऐसी स्थिति में जिला चिकित्सालय में कार्यरत चिकित्सकों और चिकित्सा स्टाफ ने ठाना है कि हर हाल में कोरोना को हराना है। कोरोना से जंग में कांठल के ये योद्धा हर संभव प्रयास कर रहे हैं। इनमें नमूने लेने वाले डॉ नरेश कुमावत ने तो खुद को परिवार से ही दूर कर रखा है। चिकित्सक और चिकित्सा स्टाफ बिना थके और रुके चिकित्सालय में सेवाएं दे रहे हैं।
एक माह से नहीं मिले बच्चों से
मरीजों के नमूने लेने के दौरान खुद के संक्रमित हो जाने की आशंका को देखते हुए चिकित्सक नरेश कुमावत ने परिवार के बचाव के लिए अपने आप को उनसे दूर कर लिया है। इसके लिए उन्होंने अपने दो छोटे बच्चों को उनके ननिहाल भेज दिया है। उन्होंने बताया कि बच्चों को अलग रखने का कारण यह है कि रोजाना वे जब भी चिकित्सालय से घर जाते थे तो दोनों बच्चे उनसे लिपट जाते थे। अब कोरोना के सेम्पल लिए जा रहे है और आइसोलेशन वार्ड का भी जिम्मा है। जिससे संक्रमण का खतरा अधिक बना रहता है। बच्चे यहां रहते तो उनसे मिलने के लिए जिद करते जिन्हें समझा पाना काफी मुश्किल हो जाता। ऐसे में स्थिति को देखते हुए दोनों बच्चों को यहां से अलग रखना उचित समझा। अब जब भी वे घर जाते है तो दोनों बच्चों से मोबाइल पर बात करते है।
चिकित्सा स्टाफ भी जंग में बराबर का भागीदार: जिला चिकित्सालय में कार्यरत चिकित्सकों सहित चिकित्सा स्टाफ ने कोरोना की दस्तक के बाद कांठल में इसे हराने की ठानी। जिला चिकित्सालय में एक माह पहले आइसोलेशन वार्ड बना दिया था। जिसमें २० बेड लगाए गए हैं। कोरोना के संदिग्ध आने से पहले से ही उनके लिए अलग से कमरे में ओपीडी की व्यवस्था की गई। जिसमें सर्दी, खांसी, जुकाम के रोगी की जांच और उपचार किया गया। इसके बाद गत एक पखवाड़े से कोरोना सेम्पल लेने शुरू किए गए। जहां अब तक ५४ सेम्पल लिए जा चुके हैं। सेम्पल लेने के दौरान चिकित्सक कुमावत के साथ कोरोनो को हराने की इस जंग में उनका स्टाफ भी मौजूद रहता है। जिसमें दो कंपाउंडर, एक सहायक कर्मचारी और एक गार्ड रहता है। उन्होंने कहा कि उनका स्टाफ भी इस जंग में उनके बराबर भागीदारी निभा रहा है।
अलग कमरे में होम क्वोरेंटाइन: डॉ. कुमावत ने अपने दोनो बच्चों को तो ननिहाल भेज दिया है लेकिन उनकी पत्नी यहीं पर ही है। ऐसे में कुमावत ने अपने आपको घर में एक अलग कमरे में होम आइसोलेट किया हुआ है। इसी कमरे में उनके खाने-पीने के बर्तन से लेकर सारी सुविधाएं अलग की हुई है। वहीं चिकित्सक राजकुमार जोशी, राममोहन सिंह, संदीप राणा और अजीत कुमार भी कोरोना भी कोरोना संक्रमण से निजात दिलाने में जुटे रहे।
अन्य के साथ भी पूरी एहतियात: चिकित्सक जहां अपने परिवार से दूरी बनाकर रख रहे हैं वहीं अन्य लोगों से भी बहुत आवश्यक होने पर पूरी एहतियात बरतते हुए सोशल डिस्टेंस की पालना कर ही बातचीत करते हैं। ताकि किसी प्रकार के संक्रमण की आशंका नहीं रहे।
यह रहती है दिनचर्या: बतौर चिकित्सक कुमावत सुबह नौ बजे चिकित्सालय जाते है। जहां सेम्पलिंग, आइसोलेशन वार्ड में मरीजों के उपचार आदि में जुटे रहते हंै। इसके बाद उच्च स्तर से रोजाना मिलने वाले निर्देशों को पढऩा-समझना और उसकी पालना करती होती है। सुबह- शाम की रिपोर्टिंग भी करनी होती है। इसके बाद बीच में समय निकालकर दोपहर का भोजन करने जाते हैं। इसके बाद शाम का कोई समय निर्धारित नहीं है। अन्य की भी कमोबेश यही दिनचर्या है।
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