टीवी सीरियल से अच्छाई और बुराई भी
क्रोध के काल को मौन रहकर टाला जा सकता है
टीवी सीरियल से अच्छाई और बुराई भी
छोटीसादड़ी टीवी घर में बहू-बेटियों को झगड़ा करना सिखाती है। टीवी में आ रहे नाटक को देखकर बहू बेटी अपने आप को आदर्श घोषित करती है। भक्ति त्याग वैराग्य से दूर होती जा रही है। परिवार में दूरियां क्यों बढ़ रही है? क्योंकि सबकुछ डिजिटल हो गए हैं।
क्रोध के काल को मौन रहकर टाला जा सकता है। सबसे से बड़ा वशीकरण मंत्र कठोर वचनों का त्याग करना है। अपनी बेटियों-बहुओं को अध्यात्म से जोड़ लेना परिवार में सेवा-भाव अपने आप जागृत हो जाएगा। यह बात बाबा रामदेव मंदिर परिसर में आयोजित भागवत ज्ञान गंगा महोत्सव के छठे दिन पंडित भीमाशंकर शास्त्री ने कही। उन्होंने कहा है कि ईश्वर के दरबार में अमीर और गरीब बनकर नहीं जाना चाहिए। जो बन कर जाता है उसका सब कुछ चला जाता है। जो ईश्वर का बनकर जाता है, उसे वह सब प्राप्त हो जाता है, जो उसके पास नहीं है। आज जितने भी वृद्ध आश्रम है वन में किसानों के माता-पिता नहीं है। उनमें पद-प्रतिष्ठा वाले धनवानों के माता-पिता है। वे लोग अपने माता-पिता की सेवा तो नहीं करेंगे, लेकिन घर में पाले जा रहे हैं श्वान को घुमाने और उसकी सेवा करने में व्यस्त है। और अपने आप को समाज, देश सेवा करने वाले समाजसेवी बने हुए हैं।
भागवत कथा में भगवान को छप्पनभोग का भोग लगाया गया। इस अवसर पर बाबा रामदेव विकास समिति के संरक्षक घनश्याम आंजना, अध्यक्ष महिपालसिंह, पूर्व प्रधान नंदू देवी आंजना, समाज सेवी गोवर्धन लाल आंजना, रमेश चंद्र उपाध्याय, सज्जन बाई आंजना, अशोक कुमावत सहित बड़ी तादाद में ग्रामीण मौजूद थे।
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यहां गांव में आयोजित श्रीराम कथा के सातवें दिन दिवस पर देवकीनन्दन शास्त्री ने शिक्षा पर जोर देते हुए बताया कि शिक्षा प्राप्त करने का जीवन कोई निश्चित समय नहीं होता है। ना ही कोई छोटा और बड़ा होता है। कपिल मुनि ने अपनी माता को शिक्षा दी थी। गुरू की कोई सीमा नहीं होती है। दत्तात्रेय ने 24 गुरूओं से शिक्षा प्राप्त की थी। शास्त्री ने बताया कि राजपद को त्याग कर राम पद लें। दूसरों का दुख स्वयं में अनुभव करें। भरत को जब वन में कांटा लगा तो दुख श्रीराम को हुआ।
कथा में नारी महत्व को बताते हुए कहा कि बेटियां कभी मां, कभी बहन तो कभी बहु का रूप होती है। बेटी दो कूल का सम्मान होती है। अत: नारी का सम्मान करना चाहिए।
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