scriptरायबरेली में पत्नियों ने अपने पतियों की लंबी उम्र के लिए वट वृक्ष के नीचे बैठकर की पूजा अर्चना, इस वट वृक्ष पूजा का है पुराना इतिहास | In Rae Bareli, wives worship their husbands for long life by sitting under the Vat tree, this Vat tree is an old history of worship | Patrika News
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रायबरेली में पत्नियों ने अपने पतियों की लंबी उम्र के लिए वट वृक्ष के नीचे बैठकर की पूजा अर्चना, इस वट वृक्ष पूजा का है पुराना इतिहास

रायबरेली में पत्नियों ने अपने पतियों की लंबी उम्र के लिए वट वृक्ष के नीचे बैठकर की पूजा अर्चना, इस वट वृक्ष पूजा का है पुराना इतिहास

रायबरेलीMay 23, 2020 / 09:56 pm

Madhav Singh

रायबरेली में पत्नियों ने अपने पतियों की लंबी उम्र के लिए वट वृक्ष के नीचे बैठकर की पूजा अर्चना, इस वट वृक्ष पूजा का है पुराना इतिहास

रायबरेली में पत्नियों ने अपने पतियों की लंबी उम्र के लिए वट वृक्ष के नीचे बैठकर की पूजा अर्चना, इस वट वृक्ष पूजा का है पुराना इतिहास

रायबरेली . देश में जहां लॉक डाउन का समय चल रहा है कोरोना जैसी महामारी लोगों के दिलों में भय उत्पन्न कर चुकी है, लेकिन भारत के लोग अपने धर्म और अपने त्योहारों को किसी भी हालात में भूलने को तैयार नहीं है।त्योहारों को जैसे पहले मनाते थे उसी तरह मनाने की कोशिश करते चले आ रहे हैं,क्योंकि धर्म आज भी इस देश में सबसे बड़ा माना जाता है लोग अपने धार्मिक त्योहारों को नियमानुसार मना रहे है।इसी बीच आज वट सावित्री अमावस्या पर सुहागिनें वट वृक्ष के नीचे पहुँचकर वट वृक्ष का पूजन किया और सुहागिनों ने सदा सौभाग्यवती रहने का वरदान प्राप्त किया इस बीच महिलाओं ने सोशल डिस्टेंस का भी ध्यान नही दिया न ही मुँह पर मास्क का प्रयोग किया। महिलाओ ने वट वृक्ष के 3 या 5 फेरे लगाकर कच्चे धागे को पेड़ पर लपेटकर वस्त्र सहित चंदन, अक्षत, हल्दी, रोली, फूलमाला, चूड़ी, बिंदी, मेहंदी इन्हें पहना कर पति की लंबी उम्र के लिए वट से आशीर्वाद प्राप्त किया।
वट सावित्री अमावस्या पर महिलाओ का पूजा अर्चनाा

आपको बता दे कि आज सुबह से ही वट सावित्री अमावस्या पर सुहागिनें वट वृक्ष के नीचे पहुँची और पूजा अर्चन करते अपने पतियों के लिए भगवान से सदा सुहागिन रहने का आशीर्वाद प्राप्त किया इस बीच उन्होंने वट वृक्ष पर फल फूल और धूपबत्ती लगाकर पूजा अर्चना करते8 हुए अपने व्रत को तोड़ा। फिर हाल लॉक डाउन के चलते ज्यादातर महिलाओं ने घरो में वट वृक्ष की डाली लेकर पूजा अर्चना की वही वट वृक्ष के नीचे भीड़ कम ही देखने को मिली ।
जानिए क्यों की जाती है वट सावित्री की पूजा

ऐसी मान्यता है कि जेष्ठ अमावस्या के दिन वट वृक्ष की परिक्रमा करने पर ब्रह्मा, विष्णु और महेश सुहागिनों को सदा सौभाग्यवती रहने का वरदान देते हैं। गांवों-शहरों में हर कहीं जहां वट वृक्ष हैं, वहां सुहागिनों का समूह परंपरागत विश्वास से पूजा करता दिखाई देगा।
अपने सुहाग की लंबी उम्र की कामना के लिए वट सावित्री अमावस्या पर सुहागिनों ने वट सावित्री पूजा करेंगी। कई स्थानों पर वट वृक्ष के तले सुहागिनों का तांता नजर आएगा। सुहाग की कुशलता की कामना के साथ सुहागिनों ने परंपरागत तरीके से वट वृक्ष की पूजा कर व्रत रखेंगी। उनके द्वारा 24 पूड़ी, 24 पकवान और इतने ही प्रकार के फल व अनाज भी चढ़ाए जाएंगे। उसके बाद वट वृक्ष को धागा लपेटकर पूजा करके पति की लंबी उम्र की कामना की जाएगी।
इस दिन सुहागिन महिलाएं वट के पेड़ की पूजा-अर्चना कर अखंड सुहाग का वर मांगेगी। पूजा के लिए घर से सज-धज कर निकलीं सुहागिनें वट वृक्ष के नीचे कतारबद्ध रूप में पूजन करके दिखाई देंगी। कई जगहों पर वट की पूजा के लिए महिलाएं घरों से ही गुलगुले, पूड़ी, खीर व हलुआ के साथ सुहाग का सामान लेकर पहुंचेंगी। कहीं-कहीं जल, पंचामृत भी लेकर जाएंगी, जहां वे वट वृक्ष के 3 या 5 फेरे लगाकर कच्चे धागे को पेड़ पर लपेटकर वस्त्र सहित चंदन, अक्षत, हल्दी, रोली, फूलमाला, चूड़ी, बिंदी, मेहंदी इन्हें पहना कर पति की लंबी उम्र के लिए वट से आशीर्वाद प्राप्त करेंगी।वट अमावस्या के पूजन की प्रचलित कहानी के अनुसार सावित्री अश्वपति की कन्या थी, उसने सत्यवान को पति रूप में स्वीकार किया था। सत्यवान लकड़ियां काटने के लिए जंगल में जाया करता था। सावित्री अपने अंधे सास-ससुर की सेवा करके सत्यवान के पीछे जंगल में चली जाती थी।
एक दिन सत्यवान को लकड़ियां काटते समय चक्कर आ गया और वह पेड़ से उतरकर नीचे बैठ गया। उसी समय भैंसे पर सवार होकर यमराज सत्यवान के प्राण लेने आए। सावित्री ने उन्हें पहचाना और सावित्री ने कहा कि आप मेरे सत्यवान के प्राण न लें।
यम ने मना किया, मगर वह वापस नहीं लौटी। सावित्री के पतिव्रत धर्म से प्रसन्न होकर यमराज ने वर रूप में अंधे सास-ससुर की सेवा में आंखें दीं और सावित्री को सौ पुत्र होने का आशीर्वाद दिया और सत्यवान को छोड़ दिया। वट पूजा से जुड़ी है धार्मिक मान्यता के अनुसार ही तभी से महिलाएं इस दिन को वट अमावस्या के रूप में पूजती हैं।

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