इस बात की गवाही इंटरनेशनल गोल्डन अवार्ड विनर रमेश अग्रवाल के आरटीआई से मिल रही है। इस व्यवस्था से परेशान अग्रवाल ने तो बकायदा नजूल विभाग में आरटीआई लगाकर यह पूछा है कि आपके विभाग में बाबू से लेकर अधिकारी तक के सुविधा शुल्क की दर क्या है।
अग्रवाल ने कहा कि लालफीताशाही का आलम ये है कि अब लोगों को काम करवाने के लिये बाबू ले लेकर अधिकारियों को दिये जाने वाले सुविधा शुल्क की जानकारी के लिये सूचना का अधिकार अधिनियम का सहारा लेना पड़ रहा है।
रमेश अग्रवाल ने एक आवेदन देकर पट्टा नवीनीकरण के लिये लिपिक से लेकर अन्य अधिकारियों को दिये जाने वाले निर्धारित सुविधा शुल्क की जानकारी जिला जन सूचना अधिकारी से मांगी है। रमेश अग्रवाल का कहना है कि उनके घर के पट्टा नवीनीकरण का कार्य विगत दो वर्षो से नजूल शाखा में लंबित पड़ा है।
Read more : विवाहित प्रेमी ने प्रेमिका को उकसाया था खुदकुशी करने के लिए, पुलिस ने किया गिरफ्तार बाबू के पास जाओ तो वो फ़ाइल् नहीं दिखाता और न ही पेशी की तारीख बताता है। बड़ी मुश्किल से मालूम हुआ की किसी एएसएलआर के प्रतिवेदन नहीं देने के कारण उनका प्रकरण आगे नहीं बढ़ पा रहा है। इस सिलसिले में वो दो बार नजूल अधिकारी से भी मिले लेकिन समस्या का समाधान नहीं हो सका।
विवश होकर ऐसा किया
अग्रवाल ने कहा कि विवश होकर उनको सूचना का अधिकार का सहारा लेना पड़ा। उनका मानना है कि एक बार सुविधा शुल्क की जानकारी हो जाने पर वे संबंधित बाबू से लेकर अधिकारी तक शुल्क का भुगतान नगद या चालान से कर देंगें, ताकि उन्हें और ज्यादा परेशान न होना पड़े।
-जिस प्रकार की स्थिति है उससे तो यही लगता है कि बिना लेन-देन के काम ही नहीं होता है इसलिए विवश होकर मुझे सुविधा शुल्क के दर की जानकारी के लिए आरटीआई लगाना पड़ा।
-रमेश अग्रवाल, गोल्डमैन विनर