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रायगढ़

Video : दो बच्चों की मां रोजी-रोटी के लिए ऑटो लेकर उतरी सड़कों पर, उठने लगे सवाल तो बोली… कुछ तो लोग कहेंगे

प्रशंसाा व आलोचना पर महिला ऑटो ड्राइवर को दू टूक, कब तक डर-डर के जिएंगे

रायगढ़Sep 04, 2018 / 06:15 pm

Shiv Singh

प्रशंसाा व आलोचना पर महिला ऑटो ड्राइवर को दू टूक, कब तक डर-डर के जिएंगे

प्रशंसाा व आलोचना पर महिला ऑटो ड्राइवर को दू टूक, कब तक डर-डर के जिएंगे

रायगढ़. डर डर केे जीने से अच्छा है जिंदगी की हर चुनौतियों का सामना कर के आगे बढऩा। उस चुनौतियों को आज व अभी से शुरु करने की सोच के तहत करीब 950 पुरुष ऑटो चालकों के बीच में हंू। वहींं पुरुष ऑटो चालक भाईयों के साथ कंधा से कंधा मिला कर ऑटो चलाने रायगढ़ की सड़कों पर उतरी हंू।
लक्ष्मी के ई-रिक्शा के बाद अब किरोड़ीमल नगर की ललिता भी अपने परिवार का जीवन-यापन को लेकर इस व्यवसाय में उतरी है। जहां उसकी प्रशंसा के साथ कुछ लोगों द्वारा आलोचना भी हो रही है। पर खुद को उससे बेफ्रिक होकर ललिता का यह कहना है कि कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना…।
बड़े शहरों की तर्ज पर रायगढ़ की सड़कों पर भी महिला ऑटो चालकों को आसानी से देखा जा सकता है। ढिमरापुर क्षेत्र के लक्ष्मी के ई-रिक्शा के बाद अब किरोड़ीमल नगर की ललिता बासई कुर्रे पति भारत लाल कुर्रे ऑटो की हैंडिल संभाल रही है। दो बच्चों की मां ने जब ऑटो लेकर चलाने का मन बनाया तो किसी ने सराहा तो किसी ने आलाचना की। आलोचकों ने जिले के करीब 950 पुरुष ऑटो चालकों का हवाला दिया। जिनके बीच रह कर सवारी की खोज करना व उसके गंतव्य तक सुरक्षित पहुंचाने की चुनौतियों को बयां किया। पर ललिता के इरादे टस से मस नहीं हुआ।
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जिसका नतीजा यह हुआ कि ललिता ने करीब एक सप्ताह पहले ऑटो की खरीदारी की। वहीं पूज पाठ कर सवारी की खोज में सड़क पर उतर गई। किरोड़ीमल नगर से सवारी लेकर रायगढ़ पहुंची ललिता को देख कर रायगढ़ रेलवे स्टेशन के ऑटो चालक हैरान हो गए। वहींं ललिता के ऑटो चलाने के बखूबी अंदाज को देख कर अपने पैरों तले जमीन खिसक गई। कछ देर तक रेलवे स्टेशन पर रुकने के बाद ललिता सवारी लेकर किरोड़ीमल नगर की ओर चली गई।


पेट्रोल पंप मेंं कर चुकी है काम
ललिता ने पत्रिका से चर्चा के दौरान बताया कि ऑटो चलाने से पहले वो पेट्रोल पंप पर काम करती थी। ललिता ने बताया कि परिवारिक जिम्मेदारियों को पूरा करने के लिए जब मैं पेट्रोल पंप पर काम कर सकती है तो ऑटो क्यों नहीं चला सकती। ऐसे में्र लोगों की बातों को दरकिनार कर ऑटो लेकर शहर की सड़कों पर उतर गई। खुद का व्यवसाय कर आज मैं संतुष्ट हंू। इस हौसले के लिए मेरे पति ने भी भरपूर साथ दिया।

लोगों की सोच बदलने से अच्छा खुद को बदला
जब समाज में कुछ भी नया होता है तो जितनी मुंह, उतनी बातें सुनने का मिलती है। इससे यह भी सीख मिली कि रुढ़ीवादी सोच वाले लोगों की मनोदशा बदलना मुश्किल है। पर मैं तो अपना व्यवसाय जरुर बदल सकती हंू। जिसे ध्यान मेंं रख कर ऑटो चला कर अपना जीवन यापन करती हंू। सुबह घरेलू कार्य कर, बच्चों को स्कूल भेज कर ऑटो लेकर सवारी की खोज में निकलती हंू।

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