दरअसल, स्मार्ट सिटी 5 साल पहले ऐसे टॉयलेट का प्रोजेक्ट लेकर आई थी जिसमें कोई काउंटर नहीं होगा। लोग सीधे मशीन में सिक्के डालेंगे और टॉयलेट की डोर ऑटोमेटिक खुल जाएगी। प्रत्येक ई-टॉयलेट की लागत 7 लाख रुपए के करीब बताई गई। इस प्रोजेक्ट के तहत सबसे पहले डॉ. भीमराव अंबेडकर अस्पताल के सामने काम किया गया था। यहां एकसाथ 7 ई-टाॅयलेट बनाए गए। 3 महिला, 3 पुरुषों और एक दिव्यांगों के लिए। विडंबना ही कहेंगे कि एक दिन भी जनता को इसका लाभ नहीं मिला। दरअसल, लोग जैसे ही इसका इस्तेमाल करने के लिए मशीन में सिक्का डालते हैं, घूमकर वापस आ जाता है। कभी-कभी सिक्का भी वापस नहीं आता और दरवाजा भी नहीं खुलता। जानकारों ने बताया कि दरवाजे जाम हो चुके हैं। मेंटेनेंस के बाद ही खुलेंगे।
मेंटेनेंस करने वाली कंपनी ही भाग गई इसलिए हुई परेशानी
दरअसल, स्मार्ट सिटी ने जिस कंपनी को ई-टॉयलेट बनाने का ठेका दिया था, उसे ही इसकी देखरेख भी करनी थी। कंपनी ने काम किया और पेमेंट लेकर चलती बनी। इधर, रेगुलर मेटेनेंस के अभाव में ई-टॉयलेट के दरवाजे जाम हो गए। स्मार्ट सिटी से हुए करार के अनुसार ठेका कंपनी को 2 वर्षों तक इनकी देखभाल करनी थी, लेकिन कंपनी उससे पहले ही काम समेटकर चली गई। मिली जानकारी के मुताबिक मेंटेनेंस को लेकर स्मार्ट सिटी के अफसर ठेका कंपनी को 4 बार पत्र लिख चुके हैं। लेकिन, अब तक इसका कोई रिजल्ट नहीं आया।
रायपुर को देश का सबसे साफ शहर बनाने में ये बड़ी अड़चन
2017 के स्वच्छता सर्वेक्षण में रायपुर जिन वजहों से फेल हुआ था, उसमें टॉयलेट और शौचालय की कमी प्रमुख थे। इसी के बाद स्मार्ट सिटी शहर में हाईटेक ई-टॉयलेट बनाने का प्रोजेक्ट लेकर आई। इसे लेकर किए गए तमाम बड़े दावों की तो हवा निकली ही, भविष्य में होने वाले स्वच्छता सर्वेक्षण में इस वजह से रायपुर के नंबर कटने के भी आसार हैं। यानी इस लापरवाही की वजह से नगर निगम का रायपुर को देश का सबसे साफ शहर बनाने का सपना भी चकनाचूर हो सकता है।