बिल की रकम और सर्जरी की संख्या देखकर योजना के अफसरों से कान खड़े हो गए। जांच करवाई तो फर्जीवाड़ा सामने आ गया। योजना के एडिशनल सीईओ विजेंद्र कटरे ने बताया कि अस्पताल में बहुत खामियां मिली हैं। एमआरआई रिपोर्ट विशेषज्ञों के पास भेजी गई हैं। अन्य बीमारियों के मामले में भी गड़बड़ी मिली हैं। चार डॉक्टरों की जांच टीम 21 अगस्त को अस्पताल पहुंची। जांच रिपोर्ट के अनुसार बाहरी मरीजों के विभाग (ओपीडी) को भी अंदरूनी मरीजों के विभाग में बदल दिया गया। टीम को आयुष्मान के तहत आईपीडी में 64 रोगी मिले। अधिकांश 4-5 दिन से भर्ती थे।
भ्रष्टाचार के दीमक को हटाना होगा
भ्रष्टाचार का दीमक अच्छी भली योजना का नाश करने के लिए काफी है। कई राष्ट्रीय योजनाओं को चट करने के बाद अब यह दीमक बहुचर्चित आयुष्मान भारत योजना में भी लग चुका है। गरीबों के लिए जोर-शोर शुरू की गई इस योजना में जिस तरीके से एक अस्पताल ने करोड़ों का वारा न्यारा करना चाहा उससे देश के अन्य राज्यों में भी ऐसा होने की आशंका पैदा होती है।
कई निजी अस्पताल पहले भी बीमा एजेंसियों, सरकारी अधिकारियों और राजनेताओं की मिलीभगत से आम जनता को लूटते रहे हैं। बेवजह जांच, जरूरत से ज्यादा दवाएं और गैर जरूरी ऑपरेशन करके रकम हड़पना निजी अस्पताओं की आर्थिक सेहत का जैसे जरूरी हिस्सा बना दिया गया है।
इसके लिए मरीजों की सेहत से खिलवाड़ करने से भी परहेज नहीं किया जाता। ऐसे अस्पतालों की बीमित मरीजों पर गिद्ध-दृष्टि रहती है। भ्रष्ट तंत्र उसे फलने-फूलने का मौका देता है। मरीजों का सर्तक रहना बेहद जरूरी है और उससे भी ज्यादा जरूरी है आधिकारियों को जवाबदेह बनाना।
अस्पताल के खिलाफ जांच की जा रही है। कई अनियमितता मिली है। अस्पताल प्रबंधन से कई कागजात मंगाए गए हैं। डॉ. श्रीकांत राजिमवाले, डिप्टी डायरेक्टर, आयुष्मान भारत