किडनी को नुकसान पहुंचाने वाले हानिकारक तत्व हैं पानी में
अभी नहीं हो रही जमीन की खरीदी-बिक्री
सुपेबेड़ा 2009 में चर्चा में आया था, जब यहां किडनी की बीमारी से 5-6 ग्रामीणों की मौत हुई। इसके बाद से लगातार मामला प्रमुखता से उठता रहा है। ग्रामीणों का कहना है कि फिलहाल जमीन की खरीदी-बिक्री का कोई कारोबार नहीं हो रहा है। ग्रामीणों को सिर्फ बीमारी की चिंता है। उनका कहना है कि सरकार को इस दिशा में जल्द ही बढ़ी पहल करनी चाहिए।
ग्रामीणों का कहना है कि गांव में ट्यूबवेल और हैंडपंप 1991 में चालू हुए थे। यदि पानी में तब से ही खराबी रही होती तो पहले भी लोगों में किडनी संबंधी समस्याएं देखी जातीं, लेकिन यह सब 2005 के बाद ही हुआ है। इससे ग्रामीणों की आशंका लगातार बढ़ते जा रही है। ग्रामीणों का मानना है कि जब मल्टीनेशनल कंपनी ने यहां अपने कदम रखे, उसी दौरान कोई बड़ा षड्यंत्र हुआ है, ताकि लोग गांव छोड़कर चले जाएं। हालांकि अब तक इस शक का कोई पुख्ता प्रमाण नहीं मिल सका है।
अभिलेखों में एक भी मौत नहीं
विधानसभा के मानसून सत्र में नेता प्रतिपक्ष टी.एस. सिंहदेव और मरवाही विधायक अमित जोगी ने सवाल किया था कि गरियाबंद जिले के देवभोग ब्लॉक के गांव सुपेबेड़ा में 2009 से जून 2017 तक कितने ग्रामीणों की किडनी की बीमारी से मौत हुई है। इसके जवाब में राज्य के स्वास्थ्य मंत्री अजय चंद्राकर ने कहा था कि इस अवधि में अस्पताल अभिलेख के अनुसार किडनी की बीमारी से कोई मौत नहीं हुई है।
यह है सरकार के प्रयास
– राजधानी रायपुर के अंबेडकर अस्पताल में ग्रामीणों के इलाज के लिए अलग से पांच बिस्तर के सुपेबेड़ा वार्ड का गठन किया गया।
– लगातार स्वास्थ्य शिविर का आयोजन किया जा रहा है।
– देवभोग में किडनी की बीमारी से पीडि़तों के लिए डायलिसिस मशीन लगाई गई है।
– सुपेबेड़ा में 16 में से 6 बोरवेल को बंद कराया गया है। वर्तमान में यहां 12 बोरवेल काम कर रहे हैं।