एम्स में इस महिला की कोविड-19 और को-मोरबिडिटी वाले रोगियों की सफलता का अनूठा केस माना जा रहा है। मुंबई के एक अस्पताल में महिला 4 वर्षों से डायलिसिस करा रही थी। 3 महीने पहले जब पीड़िता ने नियमित डायलिसिस के लिए अस्पताल में संपर्क किया, तो वह कोविड-19 अस्पताल (COVID 19 Hospital) बन गया था।
अस्पताल के डॉक्टरों ने डायलिसिस के लिए मना कर दिया। परिजनों ने नागपुर के अस्पतालों में संपर्क किया, तो उनके मुंबई से आने के कारण डायलिसिस के लिए मना कर दिया। थक-हार कर परिजनों ने रायपुर के एक निजी अस्पताल में संपर्क किया।
निजी अस्पताल ने भी रोगी के कोविड-19 लक्षण होने पर डायलिसिस के लिए मना कर दिया। परिजनों ने पीड़िता को एम्स में भर्ती कराया। यहां डाक्टरों ने पीड़िता को डायलिसिस की आवश्यकता को देखते हुए इलाज करने का निर्णय लिया।
कोविड-19 (COVID-19) टेस्ट में पीड़िता के साथ परिजन भी कोरोना संक्रमित पाए गए। महिला को एम्स में जबकि उनके पति और पुत्र को दूसरे अस्पतालों में भर्ती किया गया। एम्स के डॉक्टर और नर्सिंग स्टाफ ने महिला को मनोवैज्ञानिक संबल प्रदान किया, जिससे वह कोविड-19 की चुनौती का मुकाबला करने के लिए तैयार हुई।
एम्स रायपुर के निदेशक प्रोफेसर डॉ नितिन एम नागरकर ने बताया कि बुजुर्ग रोगियों में जिन्हें किडनी की गंभीर बीमारी है और वह कोविड-19 पॉजिटिव भी हैं, उनमें रिकवरी रेट अपेक्षाकृत काफी कम होता है। ऐसे में महिला का स्वस्थ हो जाना, नेफ्रोलॉजी विभाग के डॉक्टरों, तकनीकी कर्मचारियों और नर्सिंग स्टाफ की प्रतिबद्धता को परिलक्षित करता है।
डॉक्टरों के लिए था चुनौतीपूर्ण
45 दिनों तक लगातार पॉजिटिव आने के बाद अभी हाल ही में महिला के दो टेस्ट नेगेटिव आए हैं। इस बीच नेफ्रोलॉजी विभाग के डॉक्टरों ने उन्हें 23 सेशन का डायलिसिस दिया है। यह डॉक्टरों के लिए काफी चुनौतीपूर्ण था, क्योंकि उन्हें आईसीएमआर (ICMR) के प्रोटोकॉल के अनुसार पीपीई किट और अन्य सावधानियों के साथ इलाज करना था। पीड़िता अब ठीक होकर अपने परिजनों के साथ है। पीड़िता का कहना है कि एम्स के डॉक्टर व नर्सिंग स्टाफ की वजह से ही उन्हें दोबारा परिजनों के साथ समय व्यतीत करने का मौका मिला है।