रोमांच से भरपूर था बचपन
बचपन की यादें ताजा करते हुए उन्होंने कहा- पटना में जहां हम थे, चारों तरफ तालाब हुआ करते थे। थोड़ा आगे जाने पर बाग-बागीचे और जंगल थे। मैं कह सकता हूँ कि मेरा बचपन बहुत ही अच्छा गुजरा। कभी मैं तालाब में मछलियां पकड़ता तो कभी स्विमिंग। कभी झाड़ पर बैठा हूँ तो कभी फल तोड़कर भाग रहा हूँ। इस तरह एक्टिव और एक्शन से भरपूर मेरा बचपन बीता।थिएटर से हुई शुरुआत
दिल्ली में पढ़ाई के दौरान मैंने शेक्सपीयर सोसायटी ज्वाइन करने की कोशिश की लेकिन मौका नहीं दिया गया। फ़ैशन शो के लिए मैं मुम्बई आया। वहां मुझे अंश थिएयर ग्रुप मिला। जिसे मकरंज देशपांडे चलाते हैं। पहले तो छोटा सा रोल दिया गया लेकिन जब उन्हें मेरी काबिलियत समझ आई तो मेन लीड देने लगे। मैंने 8 साल उनके साथ काम किया। मेरे लिए वो सुनहरा दौर था।इसलिए जरूरी है रंगमंच
एक नॉन एक्टर कैमरे के सामने खड़ा भी नहीं हो सकता। आप समझ जाते हैं। एक एक्टर की पूरी ट्रेनिंग थिएयर से होती है। मैं ऐसा नहीं कहता कि जो एक्टर थियेटर से नहीं आते हैं उनमें टैलेंट नहीं होता। ये एक ऐसी चीज है जो गॉड गिफ्टेड भी हो सकती है। भीतर के पोटेंशियल या भाव को कैसे प्रकट करूँ, उसका रास्ता क्या है ये आप थिएयर से सीख पाते हैं। एक अच्छी एक्टिंग के लिए बेहतर विकल्प है थियेटर।ऐसे पहुंचे फिल्मों में
मेरे थियेटर को देखने आशुतोष ग्वारिकर और गोविंद निहलानी जैसी हस्तियां आईं। आशुतोष ने कुछ सीरियल में मेरी कास्टिंग की। तो इस तरह टीवी और फिर फ़िल्म। स्टेप बाय स्टेप बढ़ता गया।रायपुर का माहौल अच्छा लगा
31 जुलाई को ओटीटी पर मेरी एक फ़िल्म रिलीज हो रही है। माय क्लाइंट्स वाइफ। इसकी शूटिंग के लिए मैं 2 दिन के लिए रायपुर आया था। मुझे रायपुर का माहौल काफी अच्छा लगा। वहां के लोग भी हेल्पिंग नेचर के लगे। वहां पॉल्यूशन भी कम है।